इन दिनों ज्वार, बाजरा और रागी की खूब बात हो रही है. इंटरनेशनल मिलेट ईयर ने मोटे अनाजों के प्रति लोगों में दिलचस्पी बढ़ा दी है. किसान खेत में और उपभोक्ता अपनी थाली में इन्हें जगह दे रहा है. एक मोटा अनाज कौनी भी है, जिसकी चर्चा कम होती है लेकिन इसके गुण बहुत हैं. इसे अंग्रेजी में फॉक्सटेल मिलेट कहते हैं. देश के कुछ हिस्सों में इसे कंगनी या टांगुन के नाम से भी जाना जाता है. लेकिन कृषि वैज्ञानिक इसे कौनी के नाम से आगे बढ़ा रहे हैं. इसीलिए समस्तीपुर पूसा ने राजेंद्र कौनी-1 के नाम से इसकी किस्म विकसित की है. किसान अब नई किस्मों के साथ इसकी खेती की ओर लौट रहे हैं.
कृषि वैज्ञानिक डॉ. अरविंद कुमार सिंह ने बताया कि राजेंद्र कौनी -1 कम समय में पकने वाली फसल है. यह तीन महीने से कम समय लगभग 80 दिन में ही पक कर तैयार हो जाती है. खास बात यह है कि इसमें बहुत कम खाद और पानी की जरूरत पड़ती है. यह ऊंची जमीनों पर भी उगाई जा सकती है. किसान करीब 25 साल बाद मोटे अनाज की ओर लौट रहे हैं.
पूर्वी चंपारण, बिहार स्थित कृषि विज्ञान केंद्र परसौनी के स्वायल साइंटिस्ट आशीष राय ने बताया कि जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत किसानों को मोटा अनाज लगाने के लिए ट्रेनिंग देकर प्रेरित किया गया था. जिसका परिणाम अब खेतों में दिखने लगा है. राजेंद्र कौनी-1 का परसौनी के किसान ने गर्मी में बुवाई की थी, जो फसल अब पक कर तैयार हो गई है. किसान अब इसे काट रहे हैं. इसकी बुवाई अप्रैल में गेहूं काटने के बाद की जाती है. किसान मैनेजर प्रसाद ने कौनी के खेत में ही कृषि विज्ञान केंद्र से मिले धान की उन्रत किस्म को सीधी बिजाई भी की है. किसानों के बीच मोटा अनाज के प्रति उत्साह बढ़ रहा है.
कृषि वैज्ञानिक अंशू गंगवार ने इसके खानपान के बारे में जानकारी दी. उन्होंने बताया कि इसे चावल की तरह पकाकर खाया जाता है. इसके आटे से चपाती भी बनाई जाती है. इसके दाने में प्रोटीन, फाइबर, आयरन, जिंक और भरपूर कैल्शियम पाया जाता है. यह शुष्क क्षेत्र की उपयुक्त फसल है. इसमें विपरीत परिस्थितियां सहने की क्षमता होती है. राजेंद्र कौनी-1 को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है पर अच्छी उपज के लिए उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है. सिंचित क्षेत्रों में अप्रैल-मई में भी इसकी खेती की जा सकती है. इसकी खेती अधिकांश छिटकवां की जाती है पर यह उत्तम विधि नहीं है.
ये भी पढ़ें- Tomato Price Hike: टमाटर का दाम 200 रुपये किलो के पार, क्या कह रहे हैं किसान?
कौनी को 25-30 सेंटीमीटर की दूरी वाली कतारों में 2-3 सेंटीमीटर की गहराई पर रोपना चाहिए. इसके लिए 8-10 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है. यदि इस फसल की खेती बरसात के मौसम में की गई हो तो इसे सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती. यदि बरसात के मौसम में अधिक पानी लगा हो तो इसे निकालना आवश्यक है, क्योंकि यह फसल ज्यादा पानी सहन नहीं कर पाती है. जब पौधे 15 दिन के हो जाएं तो इसकी निराई-गुड़ाई कर खरपतवार को निकाल देना चाहिए. इस फसल में बहुत कीड़े मकोड़े का प्रकोप न के बराबर होता है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today