रबीनामा: रबी मौसम की अहम तिलहनी फसल सरसों की खेती राजस्थान, मध्यप्रदेश, यूपी, हरियाणा, पश्चिम बंगाल, गुजरात, आसाम, झारखंड, बिहार और पंजाब में की जाती है. इसकी खासियत है कि इसे सिंचित और बारानी, दोनों ही अवस्थााओं में उगाया जा सकता है. यह एकल और मिश्रित फसल के तहत विविध कृषि जलवायु परिस्थितियों में उगाई जाती है. पिछले साल 2022-23 में कुल 98.02 लाख हेक्टेयर में सरसों की खेती हुई और उत्पादन लगभग 125 लाख टन हुआ था जो अपने आप में रिकॉर्ड था. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक खाद्य तेलों की जरूरत को पूरा करने के लिए विदेशों से बड़ी मात्रा में खाद्य तेल का आयात करना पड़ता है. इसलिए तिलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ाना सरकार की पहली प्राथमिकता है. राई सरसों की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता बढ़ाकर ही खाद्य तेलों में वृद्धि की जा सकती है और किसान भी अपनी इनकम बढ़ा सकते हैं. इसके लिए जरूरी है किसान सरसों की बेहतर किस्मों का चयन करें. आज रबीनामा में जानेंगे सरसों अनुसंधान निदेशालय द्वारा विकसित सरसों की पांच बेहतरीन किस्मों के बारे में.
सरसों की फसल से बेहतर उत्पादन मिले, इसके लिए आइसीएआर का सरसों अनुसंधान निदेशालय ICAR-DRMR-भरतपुर कई किस्मों और तकनीक विकसित करता है. सरसों की उपज को बढ़ाने के लिए इस सस्थान ने विभिन्न जलवायु क्षेत्रों को ध्यान में रखते हुए कई बेहतरीन किस्में विकसित की हैं. इन किस्मों की सरसों की किसान अक्टूबर में बुवाई शुरू कर देते हैं. आइए जानते हैं ICAR-DRMR- भरतपुर द्वारा सरसों की अधिक उपज देने वाली 05 बेहतरीन किस्मों के बारे में जिनकी खेती कर किसान बेहतर पैदावार ले सकते हैं.
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सरसों की राधिका किस्म से किसान एक एकड़ में औसतन 7.15 क्विंटल उपज प्राप्त कर सकते हैं. इसमें तेल की मात्रा सबसे अधिक होती है. इसमें लगभग 40 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है. इसको साल 2021 में रिलीज किया गया था. देर से बोने की स्थिति में भी ये किस्म बेहतर पैदावार देती है. राधिका किस्म मात्र 131 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इसकी एक फली में लगभग 14 दाने होते हैं. इस किस्म की सरसों की खेती मुख्य रूप से दिल्ली, हरियाणा, जम्मू और कश्मीर, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्सों के लिए अनुमोदित की गई है.
यह सरसों अनुसंधान निदेशालय द्वारा विकसित बृजराज सरसों की नवीनतम किस्म है. यह किस्म साल 2021 में जारी की गई थी. यह किस्म जलवायु और परिस्थितियों के आधार पर 120 से 149 दिनों के बाद पक तैयार हो जाती है. सरसों की यह किस्म प्रति एकड़ 06 से 07 क्विंटल तक पैदावार देने में सक्षम है. इसकी फलियों में 14 से 20 बीज पाए जाते हैं. इस किस्म के बीजों में 40 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती है. मिट्टी और जलवायु के अनुसार बृजराज किस्मों की खेती दिल्ली, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और राजस्थान के कुछ हिस्सों के लिए अनुमोदित की गई है.
रुक्मणी सरसों की किस्म राजस्थान, दिल्ली, हरियाणा, पंजाब और जम्मू-कश्मीर के लिए बेहतर है. इसमें उपज और तेल की मात्रा अधिक होती है. इसकी उपज 09 क्विंटल से लेकर 10 क्विंटल प्रति एकड़ तक होती है. इसके बीजों में तेल की मात्रा 42 प्रतिशत तक होती है. यह किस्म 135 से 140 दिनों में पक जाती है. यह सिंचित और असिंचित दोनों ही स्थितियों में बेहतर पैदावार देती है. इसे साल 2020 में जारी किया गया था.
भरतपुर में विकसित की गई डीआरएमआर 150-35 किस्म सिंचित और असिंचित (कम पानी) क्षेत्रों के लिए है. इसे बिहार, उड़ीसा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, असम, मणिपुर, छत्तीसगढ़ आदि के वर्षा आधारित क्षेत्रों में खेती करने के लिए संस्तुति दी गई है. इन राज्यों के किसान धान की कटाई के बाद इस किस्म की सरसों लगाते हैं. इसे साल 2020 में रिलीज किया गया था. इसकी प्रति एकड़ पैदावार 07 क्विंटल से उपर है. इसके दानों में तेल की मात्रा 39 फीसदी है.
सरसों की एनआरसीवाईएस-05-02 पीली सरसों की किस्म है. इस किस्म की खेती पीली सरसों उगाने वाले एरिया में की जा सकती है. ये जल्दी पकने वाली किस्म है. फसल 94 दिन में तैयार हो जाती है. इस किस्म की उपज छह-सात क्विंटल प्रति एकड़ है. इसमें तेल की मात्रा लगभग 46 प्रतिशत होती है. इस किस्म को साल 2008 में रिलीज किया गया था. ये किस्म फफूंदी और ब्लाइट रोग के प्रति रोगरोधी है.
सरसों के लिए प्रति एकड़ 2-2.5 किलोग्राम बीज पर्याप्त होता है. सरसों की बुवाई बारानी क्षेत्रों में 25 सितंबर से 15 अक्टूबर के बीच और सिंचित क्षेत्रों में 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच करनी चाहिए. फसल की बुवाई पंक्तियों में करनी चाहिए. इसकी खेती में लाइन से लाइन की दूरी 45- 50 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी रखनी चाहिए.
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सरसों की फसल के लिए सड़ी हुई या कम्पोस्ट खाद को बुवाई से कम से कम तीन से चार सप्ताह पहले खेत में अच्छी तरह मिला देना चाहिए. उसके बाद मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट के अनुसार सिंचित फसल को प्रति एकड़ 70 किलोग्राम यूरिया, 100 किलोग्राम सिंगल सुपर फॉस्फेट, 20 किलोग्राम म्यूरेट ऑफ पोटाश और 80 किलोग्राम जिप्सम की जरूरत होती है. बुवाई से पहले यूरिया की आधी मात्रा और शेष उर्वरकों को पूरी मात्रा में बुवाई के समय कुंडों में डालना चाहिए और यूरिया की शेष आधी मात्रा पहली सिंचाई के बाद देनी चाहिए. इन किस्मों के बीज के लिए किसान भाकृअनुप - सरसों अनुसंधान निदेशालय उदयपुर से संपर्क कर बीज मंगवा सकते हैं या अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र पर संपर्क कर जानकारी ले सकते हैं.
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