आलू महज कोई सब्जी या कोई कंद नहीं है. अगर आप ऐसा सोचते हैं तो भयंकर भूल में हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि आलू कई किसानों की आजीविका का साधन बन चुका है. कई किसानों का परिवार इस आलू पर चल रहा है. खासकर जब से आलू के रेट 40 रुपये किलो के रेट पर पहुंचे हैं. ऐसा ही एक मामला तेलंगाना के सिद्दीपेट में भी देखा जा रहा है. आलू की खेती से यहां के किसानों की कमाई लाखों में पहुंच गई है. ये किसान वारंगल मंडल के थुनकी खालसा के हैं. यहां के किसान आलू की खेती से ढाई-तीन लाख रुपये तक मुनाफा कमा रहे हैं.
वारंगल का थुनकी खालसा गांव आलू की खेती के लिए प्रसिद्ध है. यहां के किसानों ने कोई तीन दशक पहले ही आलू की खेती शुरू कर दी थी. यहां छोटे स्तर पर भी आलू की खेती करने वाले किसान 50,000 रुपये से 1 लाख रुपये तक का मुनाफा कमा रहे हैं. आलू कम दिनों में तैयार होने वाली फसल है. किसान आलू और मक्के की खेती करके जल्दी फसल काट लेते हैं. उसके बाद जल्द ही तीसरी फसल भी लगा लेते हैं. इस तरह एक साल में किसान तीन फसल लेते हैं. इससे फसल विविधीकरण के साथ कमाई भी बढ़ जाती है.
थुनकी खालसा के किसान जून और जुलाई में वनकलम फसल के रूप में मक्का या स्वीट कॉर्न की खेती करते हैं. अक्टूबर में फसल की कटाई के बाद, वे आगरा से बीज उधार लेकर अक्टूबर और नवंबर में आलू बोते हैं. किसानों ने इस साल आलू तीन खेप बीज उधार ली, जो 150 एकड़ में बोने के लिए पर्याप्त थे. जनवरी के अंत तक वे पूरे आलू की कटाई कर लेंगे और संक्रांति के बाद खीरा, लौकी और अन्य सब्जी की फसलें उगाएंगे.
इन फसलों की खेती से मिट्टी की सेहत को बेहतर बनाने में मदद मिल रही है, क्योंकि वे एक साल में एक फसल से दूसरी फसल की खेती कर रहे हैं और साथ ही अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं. 'तेलंगाना टुडे' से बात करते हुए, किसान बिंगी नरसिम्हुलु ने कहा कि वे इन तीन फसलों की खेती करके सालाना 1.5 लाख से 2.5 लाख रुपये का मुनाफा कमा सकते हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता और सरकारी शिक्षक पुली राजू, जो किसानों की आत्महत्याओं पर काम कर रहे हैं, ने पाया कि इस तरह की नई और लाभदायक खेती के तरीके राज्य में किसानों की आत्महत्याओं को कम करेंगे. राजू ने इन किसानों के प्रयासों की तारीफ की. सामाजिक कार्यकर्ता राजू ने अभी हाल ही में नरसिम्हुलु के खेत का दौरा किया था. दौरे के दौरान उन्होंने पाया कि किसान अपनी खेती में भरपूर लाभ कमा रहे हैं. सामाजिक कार्यकर्ता ने सरकार से आग्रह किया कि वह अन्य गांवों में भी ऐसे मॉडलों को बढ़ावा दें और किसानों को सब्सिडी वाले ड्रिप सिस्टम और अन्य औजार देने का काम करें.
यहां के बागवानी अधिकारी धरमेंदर ने बताया कि थुनकी खालसा के किसानों की सफलता से सीख लेकर मेनाजीपेट के किसानों ने भी आलू की खेती दूसरी फसल के तौर पर शुरू कर दी है. धरमेंदर ने बताया कि ये किसान अपनी उपज वंतिमामिडी और बोवेनपल्ली सब्जी मंडियों में बेचेंगे. इससे उन्हें तगड़ा मुनाफा होने की उम्मीद है.
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