Himachal Pradesh: कांगड़ा में बंदरों का आतंक, किसानों ने छोड़ दी मक्के की खेती 

Himachal Pradesh: कांगड़ा में बंदरों का आतंक, किसानों ने छोड़ दी मक्के की खेती 

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र के किसान पिछले दो सालों से काफी परेशान हैं. मक्‍का की खेती करने वाले कुछ किसानों ने तो अपने खेतों को खाली छोड़ दिया है जबकि कुछ और किसानों ने मक्के के खेतों में चारा उगाना शुरू कर दिया है. वजह है बंदरों का बढ़ता आंतक और प्रशासन की तरफ से इसकी अनदेखी करना. एक रिपोर्ट के अनुसार इस खरीफ सीजन में बंदरों के आतंक के कारण करीब 4,000 एकड़ जमीन खाली रह गई है.

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Himachal Pradesh: कांगड़ा में बंदरों का आतंक, किसानों ने छोड़ दी मक्के की खेती हिमाचल में बंदरों के आतंक से परेशान किसान

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र के किसान पिछले दो सालों से काफी परेशान हैं. मक्‍का की खेती करने वाले कुछ किसानों ने तो अपने खेतों को खाली छोड़ दिया है जबकि कुछ और किसानों ने मक्के के खेतों में चारा उगाना शुरू कर दिया है. वजह है बंदरों का बढ़ता आंतक और प्रशासन की तरफ से इसकी अनदेखी करना. एक रिपोर्ट के अनुसार इस खरीफ सीजन में बंदरों के आतंक के कारण करीब 4,000 एकड़ जमीन खाली रह गई है. लोअर कांगड़ा के किसानों में इसे लेकर नाराजगी बढ़ रही है. मौजूदा सरकार समेत सभी राज्य सरकारें इस आतंक के खिलाफ कोई कारगर उपाय अपनाने में असफल रही हैं. 

एक दशक में समस्‍या और गहरी 

द ट्रिब्‍यून की रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक दशक में राज्य में बंदरों की आबादी कई गुना बढ़ गई है. साल 2009 में तत्कालीन मुख्‍यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने बंदरों की नसबंदी के लिए अभियान शुरू किया था.  कुछ समय बाद इस प्रोजेक्‍ट को रोक दिया गया. बाद में वन विभाग को राज्य में नसबंदी केंद्र स्थापित करने का काम सौंपा गया. सूत्रों की मानें तो वन विभाग के उदासीन रवैये के कारण इन सेंटर्स पर बुनियादी ढांचे की कमी के कारण उपाय अप्रभावी रहे. धूमल के नेतृत्व वाली सरकार के बाद किसी भी सरकार ने इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं लिया. इसका नतीजा है कि आज पूरे राज्य में बंदरों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है. 

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बंदर तबाह कर देते हैं खेती 

कोपरा ग्राम पंचायत के जसवंत सिंह, सुभाष सिंह और शाम सिंह ने कहा है कि वे पांच साल पहले तक मक्के की खेती करते थे.  अपनी फसल की रक्षा के लिए कई रातें जागने के बावजूद, उनकी फसल का एक बड़ा हिस्सा बंदरों ने तबाह कर दिया. इसी तरह, गेओरा पंचायत के नरेश सिंह, अनुज कुमार, जोगिंदर ने कहा कि पिछले तीन सालों में, वो अपनी मक्के की फसल की लागत भी वसूल नहीं कर पाए हैं क्योंकि बंदरों और आवारा जानवरों ने उनकी खड़ी फसल को तबाह कर दिया है. 

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बाड़ लगाने पर सब्सिडी 

उनका कहना है कि बंदर और आवारा पशुओं का खतरा खेती को बिगाड़ रहा है और किसानों को परेशान कर रहा है. लेकिन सरकार ने फिर भी इस समस्या से निपटने के लिए कोई प्रभावी नीति नहीं बनाई है. जबकि कृषि अधिकारियों की मानें तो मक्का और धान की फसल क्रमशः करीब 52,000 और 55,000 हेक्टेयर में उगाई जा रही है. उनका कहना है कि किसानों को अपनी अनाज की फसलों की सुरक्षा के लिए कंपोजिट और चेन लिंक बाड़ लगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. राज्य सरकार इस तरह की बाड़ लगाने पर 70 प्रतिशत सब्सिडी दे रही है. उन्होंने कहा कि किसान इसके लिए विभाग के पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं. 

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