'खेती किसानी के खर्च में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी', पढ़ें योगेंद्र यादव समेत बाकी किसान नेताओं ने क्या कहा

'खेती किसानी के खर्च में गिरावट का सिलसिला लगातार जारी', पढ़ें योगेंद्र यादव समेत बाकी किसान नेताओं ने क्या कहा

बजट पर अपनी राय जाहिर करते हुए पॉलिटिकल एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव ने कहा कि साल 2019 से कृषि क्षेत्र का आवंटन लगातार घट रहा है. उन्होंने अपनी बात को पुष्ट करने के लिए एक चार्ट का हवाला दिया. इस चार्ट के जरिये उन्होंने 2019-20 से 2024-25 के बजट का आंकड़ा दिया है.

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'खेती किसानी के खर्च में गिरावट का सिलसिला जारी', पढ़ें योगेंद्र यादव समेत बाकी किसान नेताओं ने क्या कहाbudget 2024

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मंगलवार को बजट पेश कर दिया. बजट में कृषि क्षेत्र के लिए 1.52 लाख करोड़ रुपये का आवंटन निर्धारित किया गया है. बजट में कृषि क्षेत्र के आवंटन को लेकर कई तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. इसमें पक्ष और विपक्ष दोनों है. बजट पर अपनी राय जाहिर करते हुए पॉलिटिकल एक्टिविस्ट योगेंद्र यादव ने कहा कि साल 2019 से कृषि क्षेत्र का आवंटन लगातार घट रहा है. उन्होंने अपनी बात को पुष्ट करने के लिए एक ट्वीट में चार्ट का हवाला दिया है. इस चार्ट के जरिये उन्होंने 2019-20 से 2024-25 के बजट का आंकड़ा दिया है. ट्वीट में योगेंद्र यादव ने लिखा है, बजट का सच:खेती किसानी के खर्च में गिरावट का सिलसिला लगातार पांचवें साल जारी. 2019 में किसान सम्मान निधि की घोषणा के बाद से बजट में कृषि+ का हिस्सा 5.44% से घटते हुए क्रमशः 5.08%,4.26%,3.82%, 3.20% हुआ. इस बजट में और घटकर सिर्फ़ 3.15% है.
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क्या कहा राकेश टिकैत ने

बजट के बारे में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत ने कहा, मोदी सरकार 3.0 के द्वारा जारी बजट में फिर से किसानों के हाथ खाली ही रह गए. आज जारी बजट का कुल आकार 48 लाख करोड़ रुपये है जिसमें से देश की अर्थव्यवस्था की सबसे मजबूत धुरी और देश को कृषि प्रधान कहलाने का दर्जा देने वाले कृषकों के हिस्से में 1.52 लाख करोड़ रुपये ही आए. इससे तो यह प्रतीत होता है कि 65 प्रतिशत किसानों की आबादी को सरकार ने सिर्फ 3 प्रतिशत बजट में ही सीमित कर दिया है. ये ग्रामीण भारत के लिए सबसे बड़ा भेदभाव है.

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टिकैत ने कहा, देश का किसान कमेरा वर्ग कई वर्षों से आंदोलनों के माध्यम से सरकार से फसल के वाजिब दाम के लिए एमएसपी गारंटी कानून की मांग कर रहा है. अगर फसल बेचने के समय दाम की गारंटी होगी तो किसान उत्पादकता खुद बढ़ा देगा, लेकिन सरकार एमएसपी को गारंटी कानून का दर्जा नहीं देना चाहती जिसका इस बजट में कोई प्रावधान नहीं है. इसके साथ-साथ सी2 50 का फार्मूला हो, संपूर्ण कर्जमाफी, कृषि उपकरणों से जीएसटी खत्म करने, बिजली कानून और प्रत्येक किसान परिवार को 10 हजार रुपये प्रति माह पेंशन देने की मांग का भी बजट में कोई प्रावधान नहीं किया गया है. 

सरकार उत्पादकता बढ़ाने के नाम पर कारपोरेट की बड़ी कंपनियों को बीज बनाने के नाम से खेती में लेकर आना चाहती है. इसीलिए सरकार ने भारत में आयात करने वाली कारपोरेट कंपनियों पर 5 प्रतिशत तक का कर घटा दिया है. इसी से स्पष्ट होता है कि कारपोरेट को छूट देकर देश के ग्रामीण परिवेश को लूटने की एक नई योजना का निर्माण सरकार के द्वारा इस बजट में किया गया है. सरकार आज बाजार पर कारपोरेट का एकाधिकार स्थापित करने के लिए पूर्ण रूप से उनकी मदद कर रही है.

क्या कहा रामपाल जाट ने

बजट के बारे में किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कहा, कृषि प्रधान देश में कृषि और किसानों की उपेक्षा से समृद्ध भारत की आशाओं पर तुषारापात हुआ है. वहीं बजट दिशाहीन है, युवाओं को तनाव से मुक्ति दिलाने और उनके परिजनों की चिताओं को समाप्त करने की दिशा होती तो इस बजट में कृषि एवं ग्रामोद्योगों के तालमेल से 65 करोड़ बेरोजगारों को आजीविका के अवसर प्रदान करना संभव था. इस बजट में किसानों पर ध्यान केंद्रित रखने की बात तो कही गई किंतु बजट में उनकी उपजो के लाभकारी मूल्य दिलाने की चर्चा तक नहीं है, जबकि सरकार निरंतर इसकी घोषणा करती रहती है. इतना ही नहीं तो घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद नहीं होने के कारण किसानों को उनकी उपजों के लागत मूल्य भी प्राप्त नहीं होते हैं.

मोहिनी मोहन मिश्रा का बयान

केंद्र सरकार द्वारा संसद में पेश आम बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए देश के सबसे बड़े किसान संगठन भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय महामंत्री मोहिनी मोहन मिश्र ने कहा कि भारतीय किसान संघ कृषि और किसान हितैषी और इनसे जुड़े क्षेत्रों के हित संवर्धन वाले इस बजट का स्वागत करता है. सरकार ने इस बजट में अनाज की अधिक उत्पादकता और प्राकृतिक खेती को प्राथमिकता दी है. जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से कृषि क्षेत्र में होने वाले परिवर्तन के लिए अनुसंधान और शोध के लिए सरकार ने बजट में प्रावधान किया है. साथ ही जलवायु के अनुसार कृषि क्षेत्र के लिए 32 और बागवानी फसलों की अधिक उपज वाली देने वाली नई 109 किस्में किसानों को देने की बात कही है, जो कि अच्छा कदम है. मिश्र ने आगाह करते हुए कहा कि अधिक उत्पादन के नाम पर यदि जी एम फसलों को अनुमति दी जाएगी तो किसान संघ इसका विरोध करेगा. साथ ही अनुसंधान और शोध कार्यों के लिए निजी क्षेत्र की बजाय आईसीएआर को अधिक बजट राशि देने की बात मिश्र ने कही.

क्या कहा सरवन पंढेर ने

बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए किसान मजदूर संघर्ष समिति के महासचिव ने कहा कि इस बजट में किसान, मजदूरों को नजरअंदाज किया गया है. खेती के बजट पर पंढेर ने निराशा जताते हुए कर्ज माफी के मुद्दे को उठाया. उन्होंने कहा कि सरकार ने बजट में MSP पर कुछ नहीं जबकि किसान इसकी मांग लगातार कर रहे हैं. किसान इसके लिए आंदोलन भी कर रहे हैं. उन्होंने बजट को पूरी तरह से दिशाहीन बताया.

एसकेएम (गैर-राजनीतिक) की टिप्पणी

संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा ने साझा बयान जारी करते हुए कहा कि इस बजट से किसानों को बहुत निराशा हुई है. बजट में MSP गारंटी कानून, किसानों और मजदूरों की कर्ज़मुक्ति और स्वामीनाथन आयोग के C2+50% फॉर्मूले के अनुसार MSP देने संबंधी मुद्दों पर कोई भी कदम नहीं उठाया गया. इस वर्ष कृषि बजट कुल बजट का 3.15% रहा. किसान नेताओं ने कहा कि हम देश की आबादी का 50 फीसदी हिस्सा हैं और हमारे लिए बजट मात्र 3.15 %, यह किसानों और मजदूरों के साथ घोर अन्याय है.  किसान नेताओं ने कहा कि सरकार ने बजट में खाद्यान्न तेल औक दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनने के लिए अभियान चलाने की बात कही, लेकिन जब तक MSP गारंटी कानून नहीं बनेगा तब तक खाद्यान्न तेलों, दालों के मामलों में आत्मनिर्भरता और फसलों का विविधिकरण संभव नहीं है. किसान नेताओं ने कहा कि सरकार ने खेती में 108 नई वैरायटी के बीजों को लाने की बात कही है, लेकिन सरकार को पहले इस बात का जवाब देना चाहिए कि हमारे देशी बीजों को संरक्षित करने के लिए सरकार क्या कर रही है? केंद्र सरकार की नीतियां किसानों को आत्मनिर्भरता से बाजार पर निर्भरता की तरफ लेकर जाने का प्रयास कर रही हैं. किसानों ने ये भी कहा कि पिछले 5 सालों में वित्त मंत्रालय ने जितना बजट कृषि मंत्रालय को दिया उसमें से भी कृषि मंत्रालय ने 1 लाख करोड़ वापस लौटा दिया जिससे यह साबित होता है कि वर्तमान सरकार खेती-किसानी के मुद्दों पर गंभीर नहीं है.

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क्या कहा शेतकरी संगठन ने

बजट को लेकर शेतकरी किसान संगठन शरद जोशी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललित बिहारी ने कहा कि महाराष्ट्र के विदर्भ में किसानों की सबसे ज्यादा आत्महत्या पश्चिम विदर्भ के अमरावती, अकोला, बुलढाणा, यवतमाल, वाशिम और वर्धा में होती है जिसको लेकर इस बजट में कुछ प्रावधान होना चाहिए था. पूरे देश में एग्रीकल्चर के बाद सबसे बड़ी इंडस्ट्री अगर कोई है तो टेक्सटाइल है. उस टेक्सटाइल इंडस्ट्री को उभारने के लिए केंद्र सरकार को इस बजट में कुछ करना चाहिए था.

 

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