उत्तर प्रदेश में रबी के सीजन में गेहूं की खेती करने वाले किसान अब सरसों की खेती की तरफ शिफ्ट होने लगे हैं. किसानों का मानना है कि सरसों की खेती में कम लागत में ज्यादा मुनाफा है तो वही इस खेती में कम पानी के साथ-साथ छुट्टा पशुओं के द्वारा भी कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाता है. सरकार के द्वारा सरसों की एमएसपी का रेट भी गेहूं के मुकाबले ढाई गुना ज्यादा है. ऐसे में किसानों का मुनाफा भी गेहूं के मुकाबले ज्यादा हो रहा है. यूपी के बुंदेलखंड में किसान तेजी से सरसों की खेती की तरफ अपनी रुचि दिखा रहे हैं.
एक बीघा खेत में गेहूं का उत्पादन 15 क्विंटल तक होता है जबकि सरसों की खेती करने वाले किसान मेघ सिंह का कहना है की एक सिंचाई में पूरी फसल तैयार हो जाती है जबकि उत्पादन लागत पर गेहूं के मुकाबले काफी कम रहती है. इस वजह से ज्यादातर किसान सरसों की खेती कर रहे हैं.
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गेहूं के मुकाबले सरसों की खेती में फसल लागत काफी कम रहती है. किसान घनश्याम ने बताया की गेहूं खेती करने में प्रति बीघा ₹20000 तक लागत आती है जबकि अच्छा उत्पादन होने पर 40 से 50000 ही मिल पाते हैं लेकिन सरसों में ₹10000 की लागत में ₹80000 तक मिल जाते हैं. इस तरह सरसों की खेती में किसानों को 6 से 8 गुना तक मुनाफा मिल रहा है. इसी वजह से पिछले दो सालों के भीतर बहुत से किसान गेहूं की खेती छोड़कर अब सरसों की खेती करने लगे हैं. वहीं उन्होंने बताया कि इस बार उन्होंने 15 एकड़ में सरसों की खेती की है. फसल भी अच्छी थी और उत्पादन भी बढ़िया मिला है. सरसों की फसल को जंगली जानवरों से बचने की चुनौती भी नहीं होती है और नहीं इसे नीलगाय खाती है जबकि गेहूं और चने की फसल में छुट्टा जानवरों का आतंक रहता है.
यूपी के बुंदेलखंड के इलाके में पानी की काफी कमी है. ऐसे में अब किसानों के द्वारा सरसों की खेती काफी बड़े क्षेत्रफल पर की जाने लगी है. सरसों को अधिकतम दो बार सिंचाई की जरूरत होती है. अगर एक बार भी सिंचाई की जाए तो फसल से उत्पादन अच्छा मिलता है. सरसों में नहीं कोई बीमारी लगती है. वहीं एक बार खाद का छिड़काव करने पर फसल तैयार हो जाती है. सरसो एक एकड़ में 12 से 15 क्विंटल तक उत्पादन मिलता है. वही इस समय बाजार में सरसों 5000 से लेकर 5500 प्रति क्विंटल के भाव में बिक रही है.
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