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...तो इसलिए पंजाब के किसान जला रहे हैं गेहूं की पराली, जानें इससे मिट्टी को कितना होगा नुकसान

...तो इसलिए पंजाब के किसान जला रहे हैं गेहूं की पराली, जानें इससे मिट्टी को कितना होगा नुकसान

विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2023 में पंजाब के अंदर 2.5 लाख एकड़ में वसंत मक्के की फसल लगी थी. ऐसे भी पश्चिमी विक्षोभ के कारण भारी बारिश की आशंका है. इससे फसल कटाई का मौसम छोटा हो सकता है और खेतों में आग लगने की घटनाएं बढ़ सकती हैं.

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पंजाब में पराली जलाने के मामले में आई तेजी. (सांकेतिक फोटो) पंजाब में पराली जलाने के मामले में आई तेजी. (सांकेतिक फोटो)

पंजाब में किसान गेहूं की पराली में आग लगाने से बाज नहीं आ रहे हैं. जैसे- जैसे गेहूं कटाई में तेजी आ रही है, वैसे-वैसे प्रदेश में पराली में आग लगाने के मामले भी बढ़ रहे हैं. राज्य में 1 अप्रैल से शनिवार तक खेत में आग लगने की 45 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जबकि साल 2023 और 2022 में इसी अवधि के दौरान क्रमशः 27 और 21 घटनाएं दर्ज की गई थीं. वहीं, साल  2022 में खेतों में आग लगने की कुल 14,511 घटनाएं और 2023 में खेतों में आग लगने की कुल 11,355 घटनाएं दर्ज की गईं.

द ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, गुरदासपुर जिले में सबसे अधिक पराली जलाने के 11 मामले सामने आए हैं. उसके बाद जालंधर और होशियारपुर का स्थान आता है, जहां क्रमशः नौ और आठ मामले दर्ज किए गए हैं. खेत में आग लगाने की अधिकांश घटनाएं होशियारपुर, रूपनगर, शहीद भगत सिंह नगर, अमृतसर, गुरदासपुर, जालंधर, कपूरथला, पटियाला, लुधियाना, एसएएस नगर और फतेहगढ़ साहिब में भी हुई हैं, जहां वसंत मक्के की फसल की खेती की जाती है.

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मक्के की खेती में बढ़ोतरी

वहीं, एक्सपर्ट का कहना है कि गेहूं के अवशेषों को अब पुश चारे के रूप में उतना इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है. इससे पराली जलाने के मामले बढ़ रहे हैं. हालांकि, पहले गेहूं के अवशेषों का उपयोग मवेशियों के चारे के रूप में किया जाता था. लेकिन अब किसानों द्वारा विकल्प के रूप में ग्रीष्मकालीन और वसंत मक्के को प्राथमिकता दी जाती है. वसंत और ग्रीष्मकालीन मक्के की खेती में पानी की अधिक खपत होती है. इसका राज्य में क्षेत्रफल भी हर साल बढ़ रहा है.

किसान क्यों जला रहे पराली

वसंत मक्के की फसल फरवरी के दौरान और ग्रीष्मकालीन मक्के की फसल अप्रैल में बोई जाती है और जून के आसपास पक जाती है. इसके लिए लगभग 25 चक्र पानी की आवश्यकता होती है. इसे किसानों द्वारा पसंद की जाने वाली नकदी फसल माना जाता है और पशुपालकों के बीच इसकी अत्यधिक मांग है. यही वजह है कि किसान ग्रीष्मकालीन मक्के की बुवाई करने के लिए तेजी से गेहूं की पराली जला रहे हैं.

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पीपीसीबी का बड़ा बयान

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) के चेयरमैन आदर्शपाल विग ने कहा कि जो भी बेकार चीज है उसे जलाने की आदत को रोकना होगा. शहरी इलाकों में, हम लोगों को सूखी पत्तियों में आग लगाते हुए और कभी-कभी कचरे में आग लगाते हुए देख सकते हैं. इसी तर्ज पर कृषि अवशेषों में आग लगाने की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है. इसे रोकने की जरूरत है. प्रकृति में विघटित होने की एक प्रक्रिया है. यह धीमा है लेकिन निश्चित रूप से प्रभावी है. लेकिन हम अधीर हो रहे हैं और चीजों को आग लगाकर प्रक्रिया को तेज करने की कोशिश कर रहे हैं, जो पर्यावरण के लिए दुर्भाग्यपूर्ण और हानिकारक है.

मिट्टी को होगा नुकसान

पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के विस्तार शिक्षा निदेशक एमएस भुल्लर ने किसानों से फसल अवशेषों को आग न लगाने का आग्रह किया है. उनका कहना है कि फसल अवशेष एक खाद है और मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इसे आग लगाकर किसान मिट्टी को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं. इससे 60 प्रतिशत तक पानी बचाता है.