चना एक दलहनी फसल है, जिसकी खेती पूरे भारत में की जाती है. पूरी दुनिया का 75 प्रतिशत चना भारत में ही उगाया जाता है. खरीफ सीजन शुरू हो चुका है. ऐसे में किसान अब मुख्य फसलों को छोड़ ऐसी फसलों की ओर रुख कर रहे हैं जिसमे उन्हें कम लागत और समय लगे और साथ ही अच्छा अच्छा मुनाफा मिल पाए. चना भी ऐसी ही एक फसल है जो कम समय में तैयार हो जाती है. इसे दलहनी फसलों का राजा भी माना जाता है.
चने में 21 प्रतिशत प्रोटीन, 61.5 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट और 4.5 प्रतिशत वसा होती है. इसमें कैल्शियम, आयरन और नियासीन की अच्छी मात्रा होती है. चने का उपयोग इसके दाने और दाने से बनाई गई दाल के रूप में खाने के लिए किया जाता है. हरी अवस्था में चने के दानों और पौधों का उपयोग सब्जी के रूप में किया जाता है. चने का भूसा चारे और दाना पशुओं के लिए पोषक आहार के रूप में प्रयोग किया जाता है. इसके चलते बाजार में मांग बनी रहेती है. ऐसे में किसान इसकी आसान तरीके से खेती कर अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों ले सकते हैं.
चने का उत्पादन उत्तर भारत मे बहुत बड़े पैमाने पर किया जाता है. संरक्षित नमी वाले शुष्क क्षेत्रों में इसकी खेती बेहद उपयुक्त मानी जाती है. किसान ध्यान रखें, इसकी खेती ऐसे स्थानों पर करें जहां 60 से 90 सेमी बारिश होती है. सर्द मौसम वाले क्षेत्र में अगर आप इसकी खेती करते हैं तो सबसे बेहतर है. 24 से 30 डिग्री सेल्सियस के तापमान में इसके पौधे अच्छे तरीके से विकास करते हैं.
चने की खेती हल्की से भारी मिट्टी में की जाती है. इसकी खेती के लिए ऐसे भूमि का चयन करें जहां जल निकासी की पर्याप्त व्यवस्था हो. पौधों के अच्छे विकास के लिए 5.5 से 7 पी एच वाली मिट्टी काफी अच्छी मानी जाती है.
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जी. एन. जी. 2171 (मीरा)
इसकी फली में 2 या 2 से अधिक दाने पाए जाते हैं. ये किस्म लगभग 150 दिन में पक जाती है. इसकी औसत उपज 24 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आंकी जाती है.
जी.एन. जी. 1958 (मरुधर)
इसके बीज का रंग हल्का भूरा होता है. इसकी फसल 145 दिन में पक जाती है. इसकी औसत उपज 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक आंकी गई है.
आर. वी. जी . 202
इस किस्म के पौधे की ऊंचाई दो फीट से भी कम रहती है. इसपर पाले का असर कम पड़ता है. इसकी खेती करने पर आपको एक हेक्टेयर में 22 से 25 क्विंटल तक पैदावार मिलती है.
हिम
चने की यह क़िस्म पौध रोपाई के 140 दिन बाद उत्पादन देने के लिए तैयार हो जाती है. इसके पौधे अधिक लंबे होते हैं, जिसमें निकलने वाले दाने हल्के हरे होते हैं जिसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 17 क्विंटल होता है.
सिंचित चने की बुवाई 20 अक्टूबर से 15 नवंबर तक कर सकते हैं. हालांकि, इसके लिए सबसे उपयुक्त समय 25 अक्टूबर से 5 नवंबर तक का माना जाता है. जिन क्षेत्रों में उकसा प्रकोप है, वहां बुवाई देरी से करनी चाहिए. चने के खेत मे 15 टन गोबर की खाद या 5 क्विंटल वर्मी कम्पोस्ट मिला लें.अच्छी पैदावार के लिए 20 किलो नाइट्रोजन और 40 किलो फास्फोरस प्रति हेक्टेयर खेतों में मिलाएं.
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