बाढ़ में अगर फसल हो गई हो बर्बाद, तो ढैंचा की खेती है बेहतर विकल्प, यूपी सरकार देगी 50% की सब्सिडी

बाढ़ में अगर फसल हो गई हो बर्बाद, तो ढैंचा की खेती है बेहतर विकल्प, यूपी सरकार देगी 50% की सब्सिडी

IFCO के मुख्य क्षेत्र प्रबंधक डॉ. डीके सिंह के अनुसार अगर हरी खाद के लिए ढैंचा बोया गया है तो फसल की पलटाई बोआई के लगभग 6-8 हफ्ते बाद फूल आने से पहले कर लें. इसके बाद खेत में पानी में लगा दें. 

Advertisement
बाढ़ में अगर फसल हो गई हो बर्बाद, तो ढैंचा की खेती है बेहतर विकल्प, यूपी सरकार देगी 50% की सब्सिडीकिसानों की तकदीर के साथ ही खेतों की तस्वीर भी बदलेगा ढैंचा (Photo-Kisan Tak)

UP Farmers News: अगर रबी की फसल (गेंहू,आलू, तोरिया, सरसों) के लिए आपने खेत को खाली छोड़ा हो तो मौसम देखकर आप ढैंचा बो सकते है. यही नहीं जलजमाव या बाढ़ के कारण अगर किसी क्षेत्र की फसल नष्ट हो गई हो तो भी मौजूदा समय में उसमें ढैंचे (Dhaincha Farming) की खेती सबसे आसान विकल्प है. इससे न केवल रबी की फसलों का उत्पादन बेहतर होगा, बल्कि उर्वरक खासकर नेत्रजन कम लगने से खेती की लागत भी करीब 25 फीसद घट जाएगी. और उपज इसी अनुपात में बढ़ जाएगी. भूमि में कार्बनिक तत्त्वों की वृद्धि से लंबे समय में भूमि की भौतिक संरचना बदलने से होने वाला लाभ बोनस होगा. जैविक खेती के लिए ढैंचा और हरी खाद की अन्य फसलें संजीवनी साबित होगी. पूर्व उप निदेशक भूमि संरक्षण डॉक्टर अखिलानंद पांडेय के अनुसार रबी की फसलों के लिए अब भी ढैंचा बोने का पर्याप्त समय है.

कृषि केंद्रों पर POS मशीन से बिक्री

ढैचें की खूबियों के मद्देनजर ही यूपी सरकार लगातार किसानों को ढैंचा और हरी खाद की अन्य फसलों को बोने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. इनके बीजों पर 50 फीसद अनुदान भी दे रही है. इस साल भी प्रति किलो दाम 90 रुपए था. इस बार अनुदान की राशि घटाकर कृषि केंद्रों पर POS मशीन से बिक्री हुई. पहले किसान को पूरा दाम देना पड़ता था. अनुदान की राशि संबंधित किसान के खाते में बाद में डीबीटी की जाती थी.

हरी खाद के प्रति जागरूक हुए किसान

डॉक्टर पांडेय के अनुसार सरकार और के प्रयासों की वजह से पिछले दो दशकों के दौरान किसान हरी खाद (ढैचा, सनई, उड़द एवं मूंग) की उपयोगिता को लेकर जागरूक हुए हैं. लिहाजा इनके बीजों की मांग भी बढ़ी है. प्राकृतिक एवं जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए यूपी सरकार भी भूमि में कार्बनिक तत्वों को बढ़ाने के लिए हरी खाद को प्रोत्साहित कर रही है. इन सबमें हरी खाद के लिहाज से सबसे उपयोगी ढैंचा ही है.

उर्वरता के साथ भूमि की जलधारणा में वृद्धि

ढैंचा की फसल की जड़ों में ऐसे जीवाणु होते हैं जो हवा से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी में स्थिर कर देते हैं. इसका लाभ अगली फसल को मिलता है. उनके मुताबिक कार्बनिक तत्व मिट्टी की आत्मा होते हैं. भूमि में ऑर्गेनिक रूप से इसे बढ़ाने का सबसे आसान एवं असरदार तरीका है हरी खाद. कार्बनिक तत्वों की उपलब्धता खुद में सभी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होती है. साथ ही यह रासायनिक खादों के लिए भी उत्प्रेरक का काम कर उसकी क्षमता को बढ़ाती है.

खेत खाली न रहने से अगली फसल में खर-पतवारों का प्रकोप भी कम हो जाता है. इससे उर्वरता के अलावा संबंधित भूमि में जलधारणा, वायुसंचरण व लाभकारी जीवाणुओं में वृद्धि होती है. लगातार फसल चक्र में इसे स्थान देने से भूमि की भौतिक संरचना बदल जाती है.

बोआई के 6 से 8 हफ्ते बाद पलट दें फसल

IFCO के मुख्य क्षेत्र प्रबंधक डॉ. डीके सिंह के अनुसार अगर हरी खाद के लिए ढैंचा बोया गया है तो फसल की पलटाई बोआई के लगभग 6-8 हफ्ते बाद फूल आने से पहले कर लें. इसके बाद खेत में पानी में लगा दें. फसल का ठीक तरीके से और जल्दी डीकंपोजिशन (सड़न) हो, इसके लिए फसल पलटने के बाद और सिंचाई के पहले प्रति एकड़ 5 किलोग्राम यूरिया का बुरकाव भी कर सकते हैं. फसल के अवशेष करीब 3-4 हफ्ते में सड़ जाते हैं. इसके बाद अगली फसल की बोआई करें. प्रति हेक्टेअर खेत में 60-80 किग्रा बीज लगता है.

सनई, मूंग, उर्द भी हरी खाद के कारगर विकल्प

ढैंचा के अलावा सनई ,मूंग, उर्द भी हरी खाद के कारगर विकल्प हैं. बोआई का समय, मौसम, बीज की उपलब्धता व जरूरत के अनुसार इनमें से किसी का भी चयन कर सकते हैं. इसमें से ढैचा एवं सनई हरी खाद के लिहाज से सर्वाधिक उपयुक्त हैं. मूंग एवं उड़द की बोआई से हरी खाद के साथ प्रोटीन से भरपूर दलहन की अतिरिक्त फसल भी संबंधित किसान को मिल जाती है. अलबत्ता इनके लिए खुद का सिंचाई का संसाधन होना जरूरी है. प्रति हेक्टेअर 15-20 किग्रा बीज की जरूरत होती है.

 

POST A COMMENT