पंजाब सरकार ने इस वर्ष धान की रोपाई 1 जून से शुरू करने का निर्णय लिया है, जल्द ही इसको लेकर अधिसूचना जारी होने की उम्मीद है. हालांकि, कृषि विशेषज्ञ सरकार के इस फैसले से चिंतित हैं. क्योंकि राज्य में भूजल का संकट तेजी से बढ़ रहा है और इसके लिए राज्य सरकार ने 2009 में एक कानून के माध्यम से भूजल के उपयोग को नियंत्रित करना शुरू कर दिया था.
दरअसल, 2009 में, शिरोमणि अकाली दल और भाजपा की अगुवाई वाली पंजाब सरकार ने ने पंजाब सबसॉइल वाटर एक्ट को लागू किया, जिसके तहत किसानों को 10 मई से पहले धान की नर्सरी उगाने पर रोक लगा दी गई थी, जबकि रोपाई की शुरुआत की तारीख सरकार को अधिसूचना के माध्यम से घोषित करने के लिए खुली छोड़ दी गई थी.
जल कानून के मसौदे से जुड़े एक सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा कि विचार यह था कि 15 जून से पहले रोपाई पर रोक लगाई जाए, क्योंकि नर्सरी में उगाए गए धान को रोपाई के लिए तैयार होने में 30-35 दिन लगते हैं. हाल के वर्षों में, अधिसूचनाओं के माध्यम से रोपाई की शुरुआत 25 जून तक भी टाल दी गई थी. ऐसे में सरकार का ये नया फैसला भूजल संरक्षण में एक महत्वपूर्ण झटका होगा.
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का तर्क है कि धान की खेती में इस परिवर्तन से अलग-अलग चरणों में कटाई हो सकती है, जिससे पराली जलाने का प्रभाव कम हो सकता है. वहीं, एक दूसरे कृषि विशेषज्ञ ने कहा कि इससे भूजल पर असर पड़ेगा. पंजाब पहले से ही पानी की समस्या से जूझ रहा है और 1 जून गर्मी का मौसम होता है और इस दौरान बहुत पानी की खपत होती है. उन्होंने कहा कि नहीं पता कि सरकार ऐसा क्यों कर रही है लेकिन यह घटते भूजल के लिए अच्छा नहीं है.
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हालांकि, पंजाब के कृषि मंत्री गुरमीत सिंह खुदियन ने कहा कि कानून में बदलाव की कोई जरूरत नहीं है और यह अधिसूचना के जरिए किया जाएगा. किसानों द्वारा लंबी अवधि की धान की किस्मों (जो अधिक उपज देती हैं) के उपयोग और अधिक पानी का उपयोग करने की किसी भी संभावना को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार किसानों के खेतों को केवल तीन महीने के लिए बिजली की आपूर्ति करेगी. इससे अधिक भूजल की खपत को रोकने में मदद मिलेगी. उन्होंने कहा कि यह निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि पिछले अक्टूबर में नमी का स्तर मानक से अधिक होने के कारण कई किसानों को धान बेचने में कठिनाई हुई थी. वहीं, रोपाई की अवधि को आगे बढ़ाने से यह सुनिश्चित करने में मदद मिलेगी कि खरीद के समय अनाज पर्याप्त रूप से सूखा हो.
पंजाब में चावल के अंतर्गत आने वाला क्षेत्र 2019-20 से हर साल लगातार बढ़ रहा है, क्योंकि राज्य सरकार अपने किसानों को अलग-अलग फसलों की खेती के लिए राजी नहीं कर पाई है. दूसरी ओर, स्थानीय अधिकारी किसानों से गैर-बासमती से बासमती की ओर रुख करने को कह रहे हैं, जबकि दोनों ही चावल की फसलें हैं. 2019-20 में चावल का रकबा 29.20 लाख हेक्टेयर था, जो अगले साल 29.28 लाख हेक्टेयर, 2021-22 में 29.69 लाख हेक्टेयर, 2022-23 में 30.98 और 2023-24 में 31.79 लाख हेक्टेयर हो गया. साथ ही 2024-25 में यह बढ़कर 32.43 लाख हेक्टेयर हो गया.
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