अभी तक चिंता इस बात को लेकर थी कि पता नहीं इस बार कपास की पैदावार कैसी रहेगी. लेकिन अब ये चिंता दूर हो गई है. कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया (CAI) ने अपने एक पूर्वानुमान में बताया है कि इस बार कपास की पैदावार अच्छी रहेगी. हालांकि इसी संस्था ने पहले कपास की पैदावार कुछ गिरने का अंदेशा जताया था. लेकिन ताजा रिपोर्ट में इसमें सुधार की बात कही गई है. सीएआई के मुताबिक इस साल यानी कि अक्टूबर 2022 से सितंबर 2023 के सीजन में देश में 311.18 लाख बेल्स कपास के उत्पादन का लक्ष्य है. यहां एक बेल में 170 किलो कपास होता है. पैदावार अधिक होने का मतलब है कि इस बार भी किसानों को उपज के सही रेटन नहीं मिलेंगे क्योंकि सप्लाई अधिक बनी रहेगी जबकि मांग में गिरावट देखी जा रही है.
इससे पहले सीएआई ने देश में 310 लाख बेल्स कपास उत्पादन का लक्ष्य जाहिर किया था. लेकिन हालिया रिपोर्ट में इसमें सुधार करते हुए इसे 311 लाख से अधिक कर दिया गया है. इस तरह किसानों और व्यापारियों की चिंता को दूर करते हुए सीएआई ने कहा है कि कपास की पैदावार अच्छी रहेगी. पिछली बार से यह पैदावार अधिक है क्योंकि पिछले सीजन में देश में 299.16 लाख बेल्स कपास का उत्पादन हुआ था.
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मंडियों और निर्यात के लिए आने वाले कपास के आधार पर उत्पादन का अंदाजा लगाया जाता है. कॉटन एसोसिएशन ऑफ इंडिया का कहना है कि कपास की आवक पर उसकी गंभीर निगरानी है जिससे कि पता चल सके उत्पादन की क्या स्थिति है.
भारत ऐसा देश है जहां से कपास का निर्यात होने के साथ आयात भी होता है. इसलिए आयात और निर्यात का आंकड़ा भी जारी किया गया है. एसोसिएशन का कहना है कि इस बार पहले के 14 लाख बेल्स की तुलना में 15 लाख बेल्स कपास का आयात होने का अनुमान है. दूसरी ओर, निर्यात में बड़ी बढ़ोतरी हो सकती है. 'बिजनेसलाइन' की एक रिपोर्ट में लिखा गया है कि इस बार निर्यात में 63 फीसद की बढ़ोतरी हो सकती है और यह 16 लाख बेल्स से 43 लाख बेल्स पर जा सकती है.
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कपास की खपत की भी जानकारी दी गई है. इसके मुताबिक इस सीजन में 311 लाख बेल्स की खपत होगी जबकि एक साल पहले यह खपत 318 लाख बेल हुआ करती थी. एक्सपर्ट का कहना है कि इस बार कपास उत्पादन का सटीक आंकड़ा इसलिए नहीं मिल पा रहा क्योंकि कई किसानों ने अपनी उपज को दबा कर रखा है. अच्छे दाम की चाह में किसान उपज को नहीं निकाल रहे हैं.
दूसरी ओर कॉटन इंडस्ट्री ठंडी मांग की समस्या से जूझ रही है क्योंकि देश-विदेश में इसकी डिमांड घटी है. इसकी बड़ी वजह आर्थिक मंदी बताई जा रही है. दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में मंदी का दौर देखा जा रहा है जिसका असर कॉटन की मांग पर भी है. यही वजह है कि कपास के दाम में भी बड़ी गिरावट है. जो कपास प्रति कैंडी पहले एक लाख रुपये पर चल रहा था, अभी उसका भाव 61,000 रुपये पर आ गया है. आगे भी हालात सुधरने के संकेत नहीं हैं. यही वजह है कि कपास किसान अब तिलहन की खेती की तरफ मुड़ रहे हैं.
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