खाद्य मामलों के विभाग ने खुदरा दुकानदारों से कहा है कि वे दालों की कीमतें घटाएं क्योंकि थोक भाव में गिरावट दर्ज की गई है. खाद्य विभाग का कहना है कि मंडियों में दालों की कीमतें पहले से गिरी हैं. इसलिए खुदरा में इसका फायदा आम ग्राहकों को भी मिलना चाहिए. सूत्रों के हवाले से एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ महीनों में थोक बाजार में तुअर, मसूर, चना, मूंग और पीली मटर का भाव 5-20 फीसद तक कम हुआ है. मगर इस कम रेट का फायदा आम ग्राहकों को नहीं मिल रहा है.
थोक मंडियों में दालों के दाम गिरने के बावजूद खुदरा में लोगों को दालों की अधिक कीमतें चुकानी पड़ रही हैं. इसे देखते हुए केंद्र सरकार के खाद्य मामलों के विभाग ने रिटेलर्स से दाम घटाने की अपील की है. खाद्य मामलों के विभाग के मुताबिक, शनिवार को तुअर, उड़द और मसूर का बेंचमार्क मॉडल खुदरा दाम क्रमशः 160 रुपये, 120 रुपये और 90 रुपये प्रति किलो दर्ज किया गया. हालांकि मूंग के दाम में 8 परसेंट की गिरावट है और यह तीन महीने पहले के 120 रुपये के भाव से घटकर 110 रुपये किलो पर आ गया है.
महाराष्ट्र के लातूर स्थित कलांत्री फूड प्रोडक्ट्स के एमडी नितिन कलांत्री ने 'फाइनेंशियल एक्सप्रेस' से कहा कि थोक मंडियों में दालों के दाम गिरने और खुदरा में इसका असर दिखने में समय लगता है. उन्होंने उम्मीद जताई कि आने वाले हफ्तों में दालों के दाम में गिरावट दर्ज की जाएगी. मंडियों में दालों की ताजा आवक होने और आयात में तेजी की वजह से तुअर, उड़द और मूंग का मंडी भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य के आसपास चल रहा है.
महाराष्ट्र के लातूर में तुअर और उड़द की नई दाल एमएसपी के दाम पर बेची जा रही है जिसकी कीमत क्रमशः 7550 रुपये प्रति क्विंटल और 7400 रुपये प्रति क्विंटल है. दो साल पहले की बात करें तो दालों की पैदावार कम होने से मंडियों में इसके भाव 90-100 रुपये किलो तक चले गए थे जिससे खुदरा दाम में बड़ी तेजी दर्ज की गई थी. मंडियों में अधिक भाव होने से नेफेड और एनसीसीएफ जैसी सरकारी एजेंसियों ने दो साल दालों की खरीद नहीं की है.
दालों के आयात को कम करने के लिए कृषि मंत्रालय देश में इसकी खेती को बढ़ाने पर जोर दे रहा है. 2024-25 में दालों के उत्पादन लक्ष्य को 300 लाख टन तक ले जाने की योजना है. पिछले साल की तुलना में इसमें 23 परसेंट तक उछाल का टारगेट रखा गया है. पिछले साल दालों के उत्पादन में इसलिए कमी देखी गई क्योंकि मौसम का बुरा असर खेती पर पड़ा. सरकार ने छह साल का लक्ष्य तय किया है जिसमें देश को दालों के मामले में आत्मनिर्भर बनाना है. इसके लिए नेफेड और एनसीसीएफ किसानों से दालों की खरीद करेंगे और इसके लिए बजट में पैसा दिया गया है.
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