तेजी से हो रहे जलवायु परिवर्तन ने उत्तराखंड में कई फलों उत्पादन को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिसके चलते स्थानीय किसान पारंपरिक फलों की खेती से मुंह मोड़ रहे हैं. उत्तराखंड के पारंपरिक फलों की खेती में सेब, नाशपाती, आलूबुखारा और खुबानी के उत्पादन की जगह ट्रापिकल यानी उष्णकटिबंधीय मतलब गर्म मौसम में उगने वाले फलों जैसे अमरूद, करौंदा, कीवी, अनार और आम की कुछ किस्मों की खेती बढ़ी है. क्लाइमेट सेंट्रल की स्टडी में फल उत्पादन को लेकर कई रोचक तथ्य सामने आए हैं.
उत्तराखंड में वर्ष 2016-17 से 2022-23 के दौरान पारंपरिक फलों के क्षेत्रफल में भारी कमी देखी जा रही है. हिमालयी क्षेत्र में ऊंचाई वाले स्थानों पर आड़ू, खुबानी, आलूबुखारा और अखरोट जैसे फलों के उत्पादन में सबसे अधिक कमी देखी गई है. जबकि, ट्रापिकल फल यानी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों यानी गर्म इलाकों में होने वाले फल जलवायु परिवर्तन से कम प्रभावित रहे हैं. आम और लीची का बुवाई क्षेत्र में कमी जरूर आई है, लेकिन उत्पादन में स्थायी बना रहा है.
जलवायु परिवर्तन के चलते मौसम अनुकूल फलों की खेती को किसानों ने तरजीह दी है. इसके चलते अमरूद उगाने के क्षेत्रफल में वर्ष 2016-17 की तुलना में वर्ष 2022-23 में 36.64 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है. वर्ष 2016-17 में अमरूद का क्षेत्रफल 3,432.67 हेक्टेयर था जो वर्ष 2022-23 में बढ़कर 4,609.32 हेक्टेयर हो गया. अमरूद के लिए उत्पादन आंकड़ा 94.89 फीसदी. अमरूद के अलावा करौंदा के उत्पादन में भी 63.77 फीसदी का उछाल दर्ज किया गया है. फसल उत्पादन की उसी अवधि में अमरूद और करौंदा के लिए सकारात्मक बदलाव दिखा रहा है.
अमरूद और करौंदा के उत्पादन में वृद्धि यह बताती है कि अब इस प्रकार के फलों को उगाने में किसान दिलचस्पी ले रहे हैं जो स्थानीय मांग और परिस्थितियों के हिसाब से अधिक अनुकूल हैं. बागवानी में इस प्रकार के बड़े बदलावों को कुछ हद तक धरती के बढ़ते तापमान से समझा जा सकता है.
बढ़ते तापमान से ट्रापिकल फलों को लाभ होता है जिससे किसान इनकी ओर रुख कर रहे हैं. उत्तराखंड के कुछ जिलों में किसान सेब की कम तापमान पर होने वाली प्रजातियों को चुन रहे हैं और नाशपाती, आड़ू, आलूबुखारा, खुबानी जैसे फलों की जगह कीवी और अनार जैसे ट्रापिकल फल लगा रहे हैं. निचले क्षेत्रों में आम्रपाली आम के अधिक घनत्व वाली खेती का भी प्रयोग किया गया है. जिससे किसानों को अधिक लाभ हुआ है.
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