जलवायु बदलावों का असर खेती पर तेजी से दिखने लगा है. ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि बीते 5 साल के दौरान गुजरात और महाराष्ट्र में कपास की खेती पर सर्वाधिक विपरीत असर देखा गया है. जलवायु बदलाव का बुरा असर 50 फीसदी से अधिक किसानों को झेलना पड़ा है. फसलों को बाढ़, बारिश, गर्मी और अधिक तापमान के चलते फसलों के नुकसान का झेलना पड़ा. जबकि, आने वाले समय में नुकसान और बढ़ने की आशंका जताई गई है.
यूके थिंक टैंक इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट (IIED) और अखिल भारतीय आपदा न्यूनीकरण संस्थान (AIDMI) की ओर से 360 किसानों पर किए गए सर्वेक्षण में से लगभग दो-तिहाई को लंबे समय तक सूखे, अधिक तापमान और अत्यधिक गर्मी के अधिक दिनों का सामना करना पड़ रहा है. कहा गया है कि महाराष्ट्र और गुजरात में 5 साल में सर्वेक्षण किए गए सर्वे में कपास किसानों में से 50 फीसदी से अधिक को जलवायु बदलावों का बुरा असर देखना पड़ रहा है.
एजेंसी के अनुसार सितंबर 2023 में किए गए सर्वे में गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले और महाराष्ट्र के संभाजी नगर जिले के बीच समान रूप से बंटे कपास किसानों को शामिल किया गया था. अधिकांश किसान जमीन के मालिक थे, जिनमें से अधिकांश के पास 10 एकड़ से कम जमीन थी. इनमें से 50 फीसदी से अधिक किसानों को जलवायु बदलावों के चलते खेती करने में परेशानियों और उत्पादन दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं.
भारत वैश्विक स्तर पर कपास का सबसे बड़ा उत्पादक है. 2023 में इसने 130 लाख हेक्टेयर में लगभग 58.4 लाख मीट्रिक टन कपास उत्पादन हासिल किया है. जबकि, जलवायु बदलावों के चलते पिछले खरीफ सीजन में कपास किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है. इसी वजह से इस साल कपास की खेती करीब 11 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में घट गई है. केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार इस बार खरीफ सीजन में देशभर में 112.76 लाख हेक्टेयर में कपास की बुवाई की गई है. जबकि, बीते साल समान अवधि में 123.71 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में कपास की बुवाई की गई थी.
सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि किसान जलवायु बदलावों से निपटने के लिए अपनी फसलों में विविधता लाने पर फोकस कर रहे हैं. खेती के तरीके को बदलकर या सिंचाई संसाधनों में निवेश करके जलवायु खतरों का मुकाबला करने के प्रयासों में जुटे हैं. जबकि, कई मामलों में किसानों को कर्ज लेना पड़ रहा है या फिर अपने मवेशी बेचकर घाटा पूरा करने की कोशिशों में जुटे हैं. हालांकि, पीएम फसल बीमा का लाभ भी कुछ किसान उठा रहे हैं.
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