आलू और सरसों की खेती के बाद खाली खेतों में खरबूजे की खेती करके किसान 60-70 दिनों में लाखों रुपये कमा सकते हैं. इन खरबूज की खेती में जुताई, बुवाई और सिंचाई में. प्रति एकड़ लागत 10,000 से 15,000 रुपये आती है और 60-70 क्विंटल प्रति एकड़ उपज मिल सकती है. बाजार में खरबूजे की कीमत 15-20 रुपये प्रति किलोग्राम होने से किसान आसानी से 1-1.5 लाख रुपये कमा सकते हैं. मैदानी क्षेत्रों में खरबूजे की बुवाई फरवरी माह में और पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल से मई तक की जाती है.
एक एकड़ खरबूज की खेती के लिए 1.5 किलोग्राम बीज की जररूत होती है. इसके लिए खरबूजे की किस्में इन किस्मों का चयन कर सकते है.
काशी मधु: ये किस्म पकने पर पीले रंग धारीधार होता है. इसका गुदे रंग हल्के नांरगी रग के होते है. इस औसत वजन 800 ग्राम का होता है. इसकी औसत उपज प्रति एकड 80 से 100 कुंतल तक होती है.
अर्का अजीत: फल छोटा (350 ग्राम), चपटा, गोलाकार, सुनहरा नारंगी रंग, गूदा सफेद सुगंधित और मीठा (13%), उपज क्षमता 140-150 क्विंटल/हेक्टेयर.
हरा मधु: फल का औसत भार 1 किलोग्राम, भंडारण और परिवहन के लिए उपयुक्त, औसत उपज 60 क्विंटल प्रति एकड़.
पंजाब संकर-1: बेल मध्यम लंबाई की, छिलका जालीदार और हल्का पीला, गूदा नारंगी रंग का, सुगंधित और मीठा (12%), औसत उपज 50-60 क्विंटल प्रति एकड़ है.
मैदानी क्षेत्रों में 1.5-2.0 मीटर की दूरी पर 30-40 सेमी चौड़ी नालियां बनाते हैं. बीज की बुवाई नाली के किनारों पर 50-60 सेमी की दूरी पर करते हैं. बीज को 15-20 सेमी की गहराई पर बोआई की जाती है और नदियों के किनारे गड्ढों में बुवाई करते हैं. इसके 60 x 60 x 60 सेमी गहरा गड्ढा बनाकर उसमें 1:1:1 के अनुपात में गोबर की खाद और बालू मिलाते हैं. बीजों को बोने से पहले कार्बेन्डाजिम से उपचारित जरूर करना चाहिए, 2 ग्राम दवा को 1 किलो बीज में मिलाकर बीजों को उपचारित करें. इस बात ध्यान देना चाहिए. खरबूज की बेड की लंबाई पूर्व से पश्चिम होनी चाहिए.
आलू वाले खेतों में खाद और उर्वरक की ज्यादा जरूरत नहीं होती है. खरबज की खेती खरबूज की खेती के प्रति एकड़ 35 किग्रा नाइट्रोजन, 25 किग्रा फास्फोरस और 25 किग्रा पोटाश की जरूरत होती है. खरबूज की खेती में नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस और पोटाश की पूरी मात्रा खेत में नालियां बनाते समय देना चाहिए.
नाइट्रोजन की शेष मात्रा दो बराबर भागों में बांटकर बुवाई के 20 और 45 दिनों बाद दें. बोरान, कैल्शियम और मोलिब्डेनम का 3 ग्राम प्रति लीटर की दर से पर्णीय छिड़काव करने से फलों की संख्या और उपज में वृद्धि होती है. खरबूजे की फसल में मौसम में जरूरत पानी लगाते रहें. ग्रीष्मकाल में 4-7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें. नदियों के किनारे बोई गई फसल को केवल 1-2 सिंचाई की जरूरत होती है.
इस बात का ध्यान दें तना बढ़ते समय, फूल आने से पहले और फल विकास की अवस्था में पानी की कमी होने पर उपज में कमी हो जाती है. फल पकते समय सिंचाई न करें, अन्यथा मिठास कम हो जाती है. जब फल पूरी तरह पक जाएं, तभी तुड़ाई करें. फल अंतिम छोर से पकना शुरू करता है, जिससे फल का रंग बदल जाता है और छिलका मुलायम हो जाता है. पके हुए फल से कस्तूरी जैसी सुगंध आती है. कुछ किस्में पकने पर पौधे से अलग हो जाती हैं. फलों की तुड़ाई सावधानी से करें और उन्हें छायादार स्थान पर रखें.
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