बिहार के मुजफ्फरपुर में इन दिनों लीची की बागवानी करने वाले किसानों की समस्या बढ़ती हुई नजर आ रही है. राज्य में बारिश की कमी की वजह से कई फसलों का बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ है. वहीं अब मुजफ्फरपुर के विश्व प्रसिद्ध लीची के बगीचों में स्टिंग बग नामक कीटों का अटैक तेज़ी से बढ़ रहा है. किसानों का कहना है कि इस साल बारिश कम होने से लाल कीटों के झुंड लीची के कोमल पत्तों के साथ ही साथ डलियों और कलश चट कर जा रहे हैं. इन कीटों की तेज़ी से बढ़ती संख्या को देख लीची उत्पादक किसानों के साथ वैज्ञानिक भी चिंतित हैं.
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र मुशहरी के लीची बागानों में भी इस कीट के लगने के कारण चिंता बढ़ गई है. लीची के बगीचे में कीट लगने के कारणों की पहचान कर उस पर नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केन्द्र के निदेशक डॉ. विकास दास ने दवा छिड़काव करने की सलाह दी है. लीची की तुड़ाई और बरसात के बाद अब इसके बागानों में तेजी से नए पत्ते निकल रहे हैं, लेकिन इस वर्ष कम बारिश के कारण लीची के बागाें में निकल रहे नए पत्तों पर स्टिंग बग का तेजी से प्रकोप हाे गया है.
मुजफ्फरपुर जिले की सीमावर्ती लीची उत्पादक मेहसी के बाद अब मुशहरी, बाेचहां, मीनापुर प्रखंड के लीची बागानों में इस कीट का प्रकोप देखने को मिल रहा है. जिसको लेकर लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह ने राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र को जानकारी दी है. इसके बाद कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों काे अपने बागाें का निरीक्षण करते रहने और इस कीट के मिलने पर तत्काल दवा छिड़काव करने की सलाह दी है. अनुसंधान केंद्र के बगीचों में इसका प्रकोप हाेने के कारण अब आसपास के क्षेत्र में भी बागानों में बड़ी संख्या में स्टिंग बग का हमला तेज हाेने की संभावना जताई गई है. इस कीट के कुछ ही समय में बागान में तेजी से संख्या बढ़ने के कारण इस पर नियंत्रण के लिए विशेष रूप से ध्यान देने काे कहा है.
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राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक विकास दास ने बताया कि कम बारिश हाेने के कारण इस बार बागानों में लीची स्टिंग बग का तेजी से प्रकोप हाेने की संभावना है. अभी यह बागानों के एक या दाे पेड़ में नये पत्ते वाली डालाें पर जमा हैं. इसकाे चिह्नित करते हुए किसानों काे अभी ही बचाव के लिए कीटनाशी का छिड़काव करना आवश्यक है. अभी स्टिंग बग का कीड़ा यंग हैं. इसके पंख बन जाने के बाद यह तेजी से आसपास के क्षेत्रों के बागाें में फैलेगा.
किसान लेम्डा सायहेलाेथिन का 5 प्रतिशत 1.5 एमएल और प्रोफानोफस 10 प्रतिशत एक एमएल प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें. इसका छिड़काव 10 दिनों के अंतराल पर दो बार करें. इसके साथ ही इस पौधे के नीचे पॉलिथीन बिछा देने पर कीट के गिरने पर उसे एकत्र कर बागान से बाहर मिट्टी में दबा दें. ऐसा नहीं करने पर बाद में यह बड़ी समस्या पैदा कर सकते हैं. राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ विकास दास के मोबाइल नंबर 8797795113 पर संपर्क करके भी किसान कीट से बचाव का सुझाव ले सकते हैं.
स्टिंक बग को बदबूदार कीट भी कहा जाता है. इसका विज्ञानी नाम टेसारोटोमा जावानिका है. यह कीट झुंड में होते हैं. नए पत्ते-कलियों व फल से रस चूस लेते हैं. इससे फूल व फल पेड़ से टूट कर गिर जाते हैं. फल काले पड़ जाते हैं. इस कीट के मादा में अत्यधिक जनन क्षमता होती है. ये लीची को 80 प्रतिशत से भी अधिक नुकसान पहुंचाते हैं.
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