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Basil cultivation: कम खर्च में तुलसी से कमाई करें भरपूर, जानें किस्में और खेती के आसान तरीके

Basil cultivation: कम खर्च में तुलसी से कमाई करें भरपूर, जानें किस्में और खेती के आसान तरीके

तुलसी की खेती बहुत लाभकारी हो सकती है, खासकर उन लोगों के लिए जो कम लागत में अधिक आय कमाना चाहते हैं. तुलसी की खेती संभावनाओं से भरपूर है, लेकिन इसके लिए सही किस्म और योजना की जरूरत होती है. पवित्र तुलसी की खेती किसानों के लिए एक लाभदायक विकल्प है जो कम लागत और कम समय में अच्छी कमाई प्राप्त कर सकते हैं.

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तुलसी की खेती से किसान पा सकते हैं अच्छी कमाई तुलसी की खेती से किसान पा सकते हैं अच्छी कमाई

खेती का ना सिर्फ रूप बदला रहा है बल्कि इसका दायरा भी बढ़ रहा है. वो ज़माना गया, जब खेती को लोग कमतर मानते थे. अब नई पीढ़ी के किसानों ने नए ज़माने की फ़सलों को अपनाते हुए एक नए युग की शुरुआत कर दी है. वो खेती का कायाकल्प करने में लगे हैं. मौसम के मिज़ाज पर भी उनकी नज़र है और बाजार मांग से भी वो भलीभांति परिचित हो रहे हैं. यही कारण है कि धीरे-धीरे औषधीय पौधों का दायरा देश में बढ़ रहा है. दुनिया के बाजार में तुलसी के तेलों की कीमत 2000 से 8000 रुपये किलो है. तुलसी में गजब की रोगनाशक शक्ति होती है. विशेषकर सर्दी, खांसी बुखार में यह अचूक दवा का काम करती है. ऐसे में देश में इसकी खेती का दायरा बढ़ रहा है. औषधीय फसलों की खेती करने वाले किसानों के लिए यह समय तुलसी की खेती के लिए अधिक फायदेमंद साबित हो सकता है.

बिना झंझट पाएं ज्यादा मुनाफ़ा

तुलसी के तेल का इस्तेमाल कई रोगों की दवा बनाने के लिए किया जाता है. बुखार, खांसी और पाचन से जुड़ी समस्या रहने पर इसकी पत्तियों के रस का उपयोग करते हैं. इसका प्रतिदिन सेवन करने से कई प्रकार के रोगों से राहत मिलती है. देश में हर साल फैलने वाली डेंगू और मलेरिया जैसी बीमारियों से बचने के लिए इसी से बनी दवाओं का इस्तेमाल होता है. इसके अलावा तुलसी का उपयोग साबुन, इत्र, शैंपू और लोशन बनाने में भी किया जा रहा है. पत्तियों के लिए आयु और अंगना किस्मों को लगाया जाता है, जिसका इस्तेमाल चाय या सूखी पत्ती के रूप में इम्यून सिस्टम को बढ़ाने के लिए किया जाता है. दूसरा ओसिमम वैसिलिकम यानी बबुई तुलसी है जिसका तेल निकाला जाता है. इस तेल का इस्तेमाल एरोमा इंडस्ट्री में साबुन और सौंदर्य प्रसाधन के लिए किया जाता है.

तुलसी की बहुपयोगी उन्नत किस्में

तुलसी की मुख्य प्रजातियां रामा और श्यामा हैं, जिन्हें अधिकांश घरों में लगाया जाता है. रामा के पत्तों का रंग हल्का होता है, इसलिए उसे 'गौरी' कहा जाता है, जबकि श्यामा तुलसी के पत्तों का रंग काला होता है और इसमें कफनाशक गुण होते हैं. इसलिए इसे दवा के रूप में अधिक उपयोग में लाया जाता है.

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तुलसी के तेल का उपयोग लंबे समय से कई दवा कंपनियों द्वारा दवा बनाने के लिए किया जा रहा है. इसके लिए पवित्रा तुलसी की विभिन्न किस्में हैं. इसमें सिम-आयु और सिम-कंचन की खेती की जाती है. बैंगनी प्रकार की कृष्णा तुलसी भी उगाई जाती है. ये सभी प्रजातियां सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय तथा सुगंध पौधा संस्थान (सीमैप), लखनऊ द्वारा विकसित की गई हैं.

रोग और बीमारी दूर भगाए तुलसी

भारत में बोबई तुलसी की खेती मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश में केंद्रित है. परंतु भारत के विभिन्न राज्यों जैसे मध्यप्रदेश, बिहार, असम, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु में भी इसके महत्वों को देखते हुए खेती की जा रही है. सीएसआईआर-सीमैप, लखनऊ द्वारा सुधा, सिम-सौम्या, सिम-सुरभि और सिम-शारदा नामक किस्में विकसित की गई हैं. विकास सुधा लंबी, जबकि सिम सौम्या बौनी किस्म है.

शोध से पता चलता है कि इस तुलसी को जीवाणुरोधी, ऐंटीफंगल, एंटी सूक्ष्मजीवी जैसी कई गतिविधियों में प्रभावी पाया गया है. इसका तेल भोजन सामग्री, कन्फेक्शनरी, मसालों और सुगंध उद्योग में उपयोग में लाया जाता है. व्यावसायिक दृष्टिकोण से खेती के लिए सीमैप ने सिम सौम्या नाम की तुलसी की एक उम्दा किस्म तैयार की है जिसकी पैदावार लगभग 80 से 100 किग्रा प्रति हैक्टेयर होती है. तुलसी की यह किस्म 90 दिनों में कटाई के लिए तैयार हो जाती है.

कैसे करें तुलसी की खेती? 

तुलसी की खेती के लिए अप्रैल-मई महीने से ही तैयारी शुरू की जाती है. अच्छी तरह से सड़ी हुई गोबर की खाद को मिट्टी में मिलाया जाता है और बारीक जुताई करके खेत को तैयार किया जाता है. तुलसी के नर्सरी पौधे तैयार करने के लिए 4.5x1.0x0.2 मीटर आकार की क्यारियां तैयार की जाती हैं. 1 हेक्टेयर खेत के लिए लगभग 700 ग्राम से लेकर 1 किलो बीज की जरूरत होती है.

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चूंकि बीज बहुत महीन होते हैं, इसलिए जरूरी मात्रा में बीज को 1:4 के अनुपात में रेत के साथ मिलाया जाता है और मॉनसून की शुरुआत से  6  से 7 सप्ताह पहले में नर्सरी में बोया जाता है. बीज 8-12 दिनों में अंकुरित हो जाते हैं और 4-5 पत्तियों की अवस्था में लगभग 6 सप्ताह में रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं.  6-7 सप्ताह में तैयार पौधे को जून में रोपा जाता है. प्रति हेक्टेयर अधिक उपज और अच्छे तेल उत्पादन के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से मीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20-25 से मीटर रखनी चाहिए. तुलसी की रोपाई के लिए केवल स्वस्थ पौधे का ही चयन करना चाहिए, ताकि अच्छी पैदावार मिल सके.

रासायनिक खाद देने से बचें 

तुलसी के पौधों के सभी भागों को औषधीय इस्तेमाल में लिया जाता है. इसलिए बेहतर होगा कि रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल न किया जाए. एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में 10-15 टन पूर्णतया सड़ी हुई गोबर की खाद या 5 टन वर्मी कंपोस्ट का उपयोग किया जाना चाहिए. अगर रासायनिक उर्वरकों की जरूरत पड़ ही जाए तो मिट्टी की जांच के अनुसार ही इनका इस्तेमाल करना चाहिए. जमाव के 15-20 दिन बाद 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से नत्रजन डालना उपयोगी होता है. फास्फोरस और पोटाश की मात्रा जुताई के समय और नाइट्रोजन की कुल मात्रा 3 भागों में बांट कर 3 बार में इस्तेमाल करनी चाहिए.

तुलसी में कब दें सिंचाई

तुलसी की फसल में पहली सिंचाई रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए. उसके बाद मिट्टी की नमी के मुताबिक सिंचाई करनी चाहिए. गर्मियों में प्रत्येक महीने 3 बार सिंचाई की जरूरत पड़ सकती है. बरसात के मौसम में अगर बरसात होती रही तो सिंचाई की कोई जरूरत नहीं पड़ती है. लगभग बुवाई के लगभग तीन महीने के बाद, जब पौधों में पुष्पन पूरी तरह हो जाए, तब कटाई का बेहतर समय माना जाता है. ध्यान रखना जरूरी है कि तेल निकालने के लिए तुलसी के पौधे के 25-30 से मीटर ऊपरी भाग की कटाई करनी चाहिए.

खेती के मुनाफे का गणित

तुलसी की औसत पैदावार 20-25 टन प्रति हेक्टेयर और तेल का उत्पादन 80-100 किग्रा हेक्टेयर तक होता है. खेती में प्रति हेक्टेयर 10-12 रुपये का खर्च आता है. तेल की कीमत 500-600 रुपये प्रति किलो होती है. इस तरह 80 से 90 दिनों में 30 हजार से 40 हजार की कमाई हो जाती है. इसके बीज के लिए सीमैप लखनऊ से संपर्क कर सकते है.