बीन्स की खेती से भी किसान अच्छी कमाई कर सकते हैं बीन्स के पौधे लताओं के रूप में फैलते है, इसके पौधों पर निकलने वाली फलियां सेम या बीन्स कहलाती है. इसकी फलियां भिन्न-भिन्न आकार की होती है, जो देखने में पीली, सफ़ेद और हरे रंग की पायी जाती है बीन्स की मुलायम फलियां सब्जी के रूप में अधिक इस्तेमाल की जाती है. फ्रेंचबीन को राजमा भी कहा जाता है. ये एक दलहनी फसल में आती है. इसमें सहजपाच्य प्रोटीन, विटामिन्स और कार्बोहाइड्रेटस की पर्याप्त मात्रा पायी जाती है, जिससे यह कुपोषण को दूर करने में अधिक लाभकारी है. इसलिए इसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती हैं. ऐसे में किसानों के लिए बीन्स की खेत फायदे का सौदा साबित हो सकती है.
इसकी खेती अगस्त से सितंबर में की जाती हैं. बीन्स को सुखाकर राजमा के रूप में खाया जाता है. और नवंबर से दिसंबर के बीच फूल आना शुरू हो जाता है और जनवरी से फरवरी के बीच तक फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती हैं. ऐसे में खरीफ सीजन शुरू हो चुका है ऐसे में किसान बीन्स खेती सही तरीके करें तो अच्छा उत्पादन और मुनाफा दोनों ले सकते हैं.
इसकी खेती की अच्छी पैदावार के लिए काली चिकनी मिट्टी की उचित मानी जाती है. बीन्स की खेती के लिए जल निकासी वाली जमीन अच्छी मानी जाती है इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 5.5से6.5 के मध्य होना जरूरी होता है. बीन्स का पौधा समशीतोष्ण जलवायु वाला होता है. ठंड में इसके पौधे अच्छे से विकास करते है, तथा गिरने वाले पाले को भी आसानी से सहन कर लेते है.
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फ्रेंचबीन या हरी बीन्स में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं जो सेहत के लिए लाभकारी होते हैं। इसमें मुख्य रूप से पानी, प्रोटीन, कुछ मात्रा में वसा तथा कैल्सियम, फास्फोरस, आयरन, कैरोटीन, थायमीन, राइबोफ्लेविन, नियासीन, विटामिन-सी आदि तरह के मिनरल और विटामिन मौजूद होते हैं. बीन्स विटामिन बी2 का मुख्य स्रोत हैं. बीन्स सोल्युबल फाइबर का अच्छा स्रोत होते हैं. इसका सेवन हृदय रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारी बताया गया हैं. ये शरीर में बढ़े कोलेस्टेरोल की मात्रा को कम करता है जिससे हृदय रोग का खतरा कम होता है.
बीन्स की ऐसे तो काफी सारी किस्म है लेकिन किसान को सबसे अच्छी पैदावार दीपाली, प्रीमियर, वाईसीडी 1, कंकन बुशन, अर्का सुमन, फुले गौरी और दसारा इन किस्मों से मिलता हैं.
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बीन्स की खेती में भी खरपतवारों का प्रकोप बना रहता है. खरपतवार वे अवांछिनीय पौधे होते हैं जो इसके आसपास उग जाते हैं और इसके विकास में बाधा पहुंचाकर फसल को हानि पहुंचाते हैं. ऐसे अवांछिनीय पौधों को हटाने के लिए दो से तीन बार निराई व गुडाई करके खरपवार को हटा देना चाहिए. यहां बता दें कि एक बार पौधे को सहारा देने के लिए मिट्टी चढ़ाना जरूरी होता है. यदि खरतवार का प्रकोप ज्यादा हो तो इसके लिए रासायनिक उपाय भी किए जा सकते हैं. इसके लिए 3 लीटर स्टाम्प का प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के बाद दो दिन के अंदर घोल बनाकर छिड़काव करने से खरपवारों पर नियंत्रण पाया जा सकता है.
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