निर्यात के लिए बासमती उगा रहे हैं तो इन खास बातों का रखें ध्यान, नर्सरी से पहले जरूर करें ये काम

निर्यात के लिए बासमती उगा रहे हैं तो इन खास बातों का रखें ध्यान, नर्सरी से पहले जरूर करें ये काम

अगर आप निर्यात के लिए बासमती धान का उत्पादन कर रहे हैं, तो बेहतर गुणवत्ता वाले बासमती धान के बीज का चयन से लेकर धान की कटाई तक बेहतर मानकों और खेती की उचित प्रक्रियाओं का पालन करें. इससे आप अच्छी गुणवत्ता और मुनाफेदायक बासमती धान का उत्पादन कर सकते हैं और निर्यात के लिए तैयार हो सकते हैं. इससे ग्लोबल मार्केट में आपकी बासमती को बेहतर दाम मिल सकते हैं.

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निर्यात के लिए बासमती उगा रहे हैं तो इन खास बातों का रखें ध्यान, नर्सरी से पहले जरूर करें ये कामबासमती धान की खेती

भारत पिछले एक दशक से दुनिया में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक है. बासमती भारतीय उपमहाद्वीप के एक विशेष भौगोलिक क्षेत्र में 200 से अधिक वर्षों के रिकॉर्ड इतिहास के साथ खेती किया जाने वाला एक विशेष लंबे दाने वाला सुगंधित चावल है. अपने अनूठे पकने और खाने के गुणों की वजह से बासमती चावल दुनिया में खाद्य और रेस्तरां उद्योग के बीच प्रीमियम चावल के रूप में एक खास स्थान रखता है. भारतीय बासमती चावल की मांग इन दिनों तेजी से बढ़ रही है. साल 2023-24 में भारत से 40000 करोड़ रुपये मूल्य का चावल निर्यात किया गया है. अगर आप निर्यात के लिए बासमती धान का उत्पादन कर रहे हैं बेहतर गुणवत्ता वाले बासमती धान के बीज का उत्पादन, खेती और कटाई की प्रक्रिया में समझदारी से काम करना जरूरी है. उत्पादन की प्रक्रिया में गुणवत्ता के मानकों का पालन करना अहम है, जिससे आप बाजार में अच्छी कीमत प्राप्त कर सकें. उचित खेती की प्रक्रिया को ध्यान में रखते हुए, आप अच्छी गुणवत्ता और लाभ देने वाली बासमती धान की खेती कर सकते हैं. 

बासमती उत्पादकों को गाइड करता BEDF

बासमती धान की निर्यात गुणवत्ता बनाए रखने के लिए एपीडा द्वारा सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मोदीपुरम, जिला मेरठ के परिसर में स्थापित बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान ((BEDF) ने अच्छा काम किया है. इस संस्थान के प्रशिक्षण फार्म ने निर्यात के उद्देश्य के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले बासमती के उत्पादन के लिए विभिन्न स्रोतों से जानकारी जुटाकर किसानों को जागरूक किया है. इससे बासमती धान उत्पादक किसान निर्यात गुणवत्ता का बासमती धान उगा सकते हैं और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच सकते हैं.

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इन राज्यों का बासमती धान होता है निर्यात

डॉ. रितेश शर्मा, बासमती निर्यात विकास प्रतिष्ठान मेरठ के प्रधान वैज्ञानिक ने बताया कि 15 फरवरी 2016 को जीआई रजिस्ट्री चेन्नई द्वारा जारी पंजीकरण के प्रमाण पत्र के अनुसार बासमती चावल अब एक पंजीकृत भौगोलिक संकेत (जीआई) उत्पाद है. भारत में बासमती चावल के उत्पादन के लिए स्वीकृत जीआई क्षेत्र में सात राज्य - जम्मू, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश शामिल हैं, जहां के किसान बासमती धान का उत्पादन कर निर्यात कर सकते हैं. अन्य जिलों और राज्यों के किसान भी बासमती धान का उत्पादन कर सकते हैं, लेकिन यह केवल घरेलू उपयोग के लिए मान्य होता है. देश में बासमती धान का रकबा हर साल 10 फीसदी बढ़ रहा है. इस समय किसान बासमती चावल की करीब 40 प्रजातियों की बुवाई कर रहे हैं. बासमती चावल भारत से चीन, पाकिस्तान, अमेरिका, खाड़ी देशों सहित दुनिया के लगभग 125 देशों में निर्यात किया जाता है.

नर्सरी बुवाई से पहले करें ये जरूरी काम

डॉ. रितेश शर्मा ने बताया कि बासमती धान की नर्सरी बुवाई से पहले खेत को लेजर लेवलर द्वारा समतल जरूर कराएं और संभव हो तो छोटी-छोटी क्यारियां बना लें. बासमती के बीज हमेशा प्रमाणित संस्थान या अनुसंधान केंद्र से ही खरीदें. नर्सरी में बीज बुवाई से पहले बीज का शुद्धीकरण जरूर करें. इसके लिए एक टब या बाल्टी में एक प्रतिशत नमक और 10 लीटर पानी का घोल बनाकर उसमें बीज डालें. हल्के बीज सतह पर तैर जाएंगे, इन्हें निकालकर अलग कर दें. अच्छे बीजों को पानी में धोकर 20 ग्राम कार्बेंडाजिम और एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के घोल में 24 घंटे के लिए भिगोकर रखें.

रोपाई के समय रखें इन बातों का ध्यान

डॉ. रितेश शर्मा ने कहा कि बासमती धान की खेती करने वाले किसान अपने खेतों को रबी फसल की कटाई के बाद लेजर लेवलर द्वारा समतल कराएं. बासमती धान की खेती के लिए अच्छी जल धारण क्षमता वाली चिकनी मिट्टी उपयुक्त होती है. धान की खेती के लिए समय से 2 से 3 बार जुताई करनी चाहिए और खेतों की मजबूत मेंड़ बनानी चाहिए. हरी खाद की बुवाई जरूर करें और जैविक खाद की उपल्बधता हो ज्यादा प्रयोग करना चाहिए.

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बासमती धान की रोपाई के लिए 20 से 25 दिन की पौध का प्रयोग करें. पूसा बासमती 1509 की 18-22 दिन की पौध की रोपाई कर देनी चाहिए. पौध को उपचारित करने के लिए 2 ग्राम कार्बेंडाजिम या 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा हरजेनियम प्रति लीटर पानी के घोल में 30 मिनट तक डुबोकर रखें. पौध की रोपाई पंक्तियों में करें और 40 सेंटीमीटर के अंतराल पर रास्ता छोड़ें. पंक्ति से पंक्ति और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखें. पौध की रोपाई 2 से 3 सेंटीमीटर से ज्यादा गहरी न करें.

बासमती निर्यात गुणवत्ता बनाए रखें 

यूएसए, यूरोपीय संघ और ईरान जैसे विभिन्न बाजारों में कीटनाशकों के अंश अधिकतम अवशेष सीमा (MRL) से अधिक पाए जाने के कारण चावल के निर्यात में परेशानी आई थी. यूरोपीय संघ ने ट्राइसाइक्लाजोल के MRL को 0.01 मिलीग्राम/किग्रा निर्धारित किया है. इसी तरह संयुक्त राज्य अमेरिका 0.01 मिलीग्राम/किग्रा से अधिक आइसोप्रोथिओलेन के अवशेषों की अनुमति नहीं देता है. इसलिए किसानों द्वारा केवल उन कीटनाशकों का उपयोग किया जाना चाहिए जो धान की फसल के लिए राज्य कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा अनुशंसित हैं. इसके साथ ही अनुशंसित कीटनाशक की सही मात्रा का उपयोग किया जाना चाहिए और संबंधित कीटनाशक की पैकिंग के लेबल पर कटाई के बाद के अंतराल (PHI) को देखा जाना चाहिए. इन सभी बातों का ध्यान रखकर किसान बेहतर गुणवत्ता और अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं, जिससे निर्यात गुणवत्ता का बासमती धान का उत्पादन कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में अच्छा मूल्य प्राप्त कर सकते हैं.

 

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