हरियाणा में खरीफ फसलों की सरकारी खरीद शुरू हो चुकी है. लेकिन इस बीच कई जिलों में किसान अपनी उपज को कम दाम में बेचने के लिए मजबूर है. दरअसल, सरकारी खरीद एजेंसियों की अनुपस्थिति में हिसार और भिवानी जिलों में बाजरे की कीमतें गिर गई है, जिसकी वजह से किसानों को मजबूरी में अपनी फसल बेचनी पड़ रही है, क्योंकि उन्हें रबी सीजन के लिए अपने खेतों को तैयार करने के लिए पैसे की जरूरत है. किसानों के इन्ही परेशानियों को देखते हुए अखिल भारतीय किसान सभा कल यानी 5 अक्टूबर को फतेहाबाद जिले के भट्टू कलां में राज्य स्तरीय रैली आयोजित करेगी, जिसमें अन्य मुद्दों के अलावा न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर बाजरा की खरीद की मांग करेगी.
हालांकि, भिवानी जिला प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि एमएसपी से कम पर की गई बिक्री की भरपाई भावांतर भरपाई योजना (बीबीवाई) के माध्यम से की जाएगी, जिसके तहत सरकार निजी खरीदारों को 2,200 रुपये प्रति क्विंटल पर अपनी उपज बेचने वाले किसानों को 575 रुपये प्रति क्विंटल का भुगतान करेगी. लेकिन किसानों का आरोप है कि आढ़ती 2,200 रुपये भी नहीं दे रहे हैं. नतीजतन, उन्हें 1,700 से 2,000 रुपये प्रति क्विंटल के बीच अपनी उपज बेचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है. इस प्रकार 575 रुपये की भावांतर भरपाई योजना मिलने के बावजूद, उन्हें अपनी उपज के लिए एमएसपी नहीं मिल पा रहा है.
उपायुक्त साहिल गुप्ता ने आज सभी संबंधित अधिकारियों को खरीद में पारदर्शिता बनाए रखने और केवल उन्हीं किसानों से बाजरे की खरीद तय करने के निर्देश दिए जो मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर रजिस्टर्ड हैं. उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए है कि वे हैफेड और हरियाणा वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन द्वारा जिले की सभी निर्धारित अनाज मंडियों में खरीद शुरू करें. डीसी ने चेतावनी जारी की है कि खरीद के दौरान गड़बड़ी में शामिल किसी भी अधिकारी या कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. उन्होंने अधिकारियों को मंडियों में किसानों को किसी भी तरह की असुविधा से बचाने के लिए व्यवस्था करने के भी निर्देश दिए है.
साहिल गुप्ता ने यह भी बताया कि सरकार ने हाल ही में पोर्टल प्रणाली में संशोधन किया है. पहले केवल 2200 रुपये की सरकारी दर पर ही प्रवेश स्वीकार की जाती थीं. लेकिन अब किसान 2,200 रुपये से कम या अधिक की कोई भी बिक्री दर दर्ज कर सकते हैं और फिर भी भावांतर भुगतान योजना के तहत 575 रुपये प्रति क्विंटल मुआवजे के पात्र होंगे. यह कदम ये तय करने के लिए उठाया गया है कि किसानों को लाभ मिल सके, भले ही वे निजी कंपनियों को कम दरों पर अपनी फसल बेचें.
हिसार जिले में लगभग 5,500 क्विंटल बाजरा अनाज मंडियों में आ चुका है, लेकिन किसी भी एजेंसी द्वारा एक भी दाना नहीं खरीदा गया है, जिससे किसान निजी व्यापारियों की दया पर निर्भर हो गए हैं, जो एमएसपी से काफी कम दाम दे रहे हैं. हालांकि, किसानों ने आरोप लगाया है कि बाजरे की खरीद के लिए सरकार द्वारा निर्धारित सभी गुणवत्ता मानकों को पूरा करने के बावजूद, एजेंसियां फसल को "रंगहीन" बताकर या अन्य कमियों का हवाला देकर अवैध रूप से अस्वीकार कर रही हैं.
अखिल भारतीय किसान सभा के संयुक्त सचिव बलबीर ठाकन ने भिवानी में कहा कि पहले से ही प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित किसान अपनी उपज औने-पौने दामों पर बेचने को मजबूर हो रहे हैं, जिससे न केवल उनकी आजीविका को नुकसान पहुंच रहा है, बल्कि हरियाणा सरकार की प्रतिष्ठा को भी नुकसान पहुंच रहा है. उन्होंने डीसी से आग्रह किया कि वे इस मुद्दे को जल्दी हल करने के लिए सभी एजेंसियों, एजेंटों और किसान यूनियनों के प्रतिनिधियों की एक संयुक्त बैठक बुलाएं.
उन्होंने तर्क दिया कि भावांतर भुगतान योजना के तहत 575 रुपये के मुआवजे के बावजूद, किसानों को केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित 2,775 रुपये प्रति क्विंटल का एमएसपी नहीं मिल रहा है. उन्होंने ये दावा किया कि सरकार द्वारा हर अनाज खरीदने के दावों के बावजूद जमीनी हालात कुछ और ही कहानी बयां करते हैं. साथ ही बाजार समिति के एक अधिकारी ने भी स्वीकार किया कि सरकारी खरीद नहीं हो रही है, क्योंकि उपज उचित औसत गुणवत्ता मानकों को पूरा नहीं कर रही है.
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