महाराष्ट्र में आने वाले पालघर के बहडोली जामुन को जीआई टैग (भौगोलिक संकेतक) मिल गया है. किसानों के एक समूह द्वारा इस दिशा में पांच साल से प्रयास किए जा रहे थे. पालघर तालुका के बहडोली गांव में यह जामुन पैदा होता है. जिसे जंबुलगांव के नाम से भी जाना जाता है. इस गांव का जामुन अपने अद्वितीय आयताकार फल के लिए मशहूर है. अब जीआई टैग मिलने के बाद बहडोली के जामुन उत्पादक किसानों ने कहा कि अब इस फल को ऐसी पहचान मिल गई है कि इसकी बिक्री को इससे बढ़ावा मिलेगा. जिसकी खेती यहां के लोग दशकों से की जा रही है. टैग मिलने के बाद इसकी इंटरनेशनल मार्केटिंग भी आसान हो जाएगी. इस क्षेत्र में जामुन हजारों किसानों के लिए आजीविका का प्राथमिक स्रोत है.
जामुन की खेती करने वाले किसान प्रकाश किनी ने कहा, 'जीआई टैग से दाम बढ़ाने में भी मदद मिलेगी. दहानू चीकू के बाद अब पालघर जिले में जामुन दूसरा ऐसा फल है जिसे जीआई टैग मिला है. किसानों का कहना है कि जिला कलेक्टर गोविंद बोडके सहित विभिन्न सरकारी अधिकारियों के प्रयासों की सराहना की जानी चाहिए. इसी वजह से जीआई रजिस्ट्री ने टैग दिया. इससे किसानों की इनकम बढ़ाने में मदद मिलेगी.
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वर्ष 2018 में बहडोली के निवासी जगदीश पाटिल ने जामुन उगाने वाले किसानों का एक संगठन बनाने की पहल की. फिर इस फल के लिए जीआई टैग प्राप्त करने के लिए दस्तावेज़ दाखिल किए थे. अब पांच साल बाद जीआई टैग मिलने से किसान खुश हैं. टैग किसी संगठन की पहल पर ही मिलता है. बहडोली में जामुन की खेती दशकों से की जा रही है. यहां के हजारों किसान जामुन के खेती पर ही निर्भर रहते हैं. जिले में अधिकतर आदिवासी किसान हैं. जामुन उत्पादक प्रकाश किनी ने कहा कि जीआई टैग मिलने से बहुत खुशी हैं. इससे बाज़ार में जामुन का अच्छा दाम भी मिलेगा और हमें थोड़ा अच्छा मुनाफा कमा पाएंगे.
बहडोली जामुन की लंबाई लगभग 3.10 सेमी और चौड़ाई 2.87 सेमी है. वजन 18.32 ग्राम है. इसी 29 नवंबर को प्रकाशित ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जर्नल के अंक के अनुसार, यह महाराष्ट्र के नौ फलों, दालों, सब्जियों और अन्य में से एक है, जिसे विशेष पहचान मिली है. राज्य में विभिन्न फलों के लिए जीआई टैग प्राप्त करने की पहल करने वाले गणेश हिंगमिरे ने कहा, सूची में बदलापुर जामुन भी है, लेकिन दोनों किस्मों की अपनी अलग-अलग विशेषताएं हैं.
बहडोली में जामुन की खेती 55 हेक्टेयर में फैली हुई है. किसानों के मुताबिक दो पेड़ एक सौ साल से अधिक पुराने हैं. जबकि कई अन्य 50 से 80 साल के बीच पुराने हैं. अप्रैल में शुरू होने वाले दो महीने के सीजन के दौरान काश्तकारों को औसतन 250 रुपये प्रति किलोग्राम की दर मिलती है. जीआई टैग मिलने से जामुन का उत्पादन करने वाले किसानों में एक नई उम्मीद जगी है. पालघर का चीकू भी अपनी मिठास और बेहतरीन उत्पादन के लिए पूरी दुनिया में चर्चित है. जिसके चलते यहां चीकू को साल 2016 में भारत सरकार ने चीकू के लिए GI टैग देकर, राष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान दिलाई थी. जिले में करीब 5000 हेक्टेयर भूभाग पर चीकू की खेती होती है.
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