यह दिवाली असम के किसानों के लिए असली लक्ष्मी बनकर आई है. यहां नलबारी जिले के किसानों को दिवाली पर बंपर कमाई हुई है. किसानों ने बांस की डंडियां और केले के पौधे बेचकर भरपूर कमाई की है. नलबारी और कामरूप जिले के किसानों में इससे खुशी की लहर है. असम में दिवाली की ऐसी परंपरा है कि बांस और केले के किसानों की कमाई बढ़ जाती है. इस बार भी ऐसा ही हुआ है.
दरअसल, असम के लोग दिवाली पर दिया एक खास तरीके से जलाते हैं. यहां के लोग केले के पौधे पर दीया रखकर जलाते हैं. इस रिवाज ने असम में एक बड़े व्यापार को जन्म दिया है जिसमें किसानों की भूमिका बढ़ गई है. यही वजह है कि पिछले 20 साल में असम के कई जिलों में केले की खेती बड़े पैमाने पर होती है. किसान इस खेती से दिवाली के मौके पर बंपर कमाई करते हैं. गुवाहाटी की बात करें तो यहां 13 लाख लोग रहते हैं, लेकिन केले की खेती न के बराबर होती है.
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गुवाहाटी में केले की इस बड़ी मांग को पूरा करने के लिए अन्य जिलों के किसानों पर निर्भर होना पड़ता है. इसमें सबसे बड़ा रोल कामरूप और नलबारी जिला निभाते हैं क्योंकि यहां केले और बांस की बड़े पैमाने पर खेती होती है. इस बार दिवाली में इन दोनों जिलों के किसान सुबह-सुबह गुवाहाटी की सड़कों के किनारे अपनी छोटी दुकान लगाकर बिक्री करते दिखे. 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की एक रिपोर्ट बताती है कि गुवाहाटी की इन सड़कों पर लोगों ने केले के एक पौधे के लिए 100-150 रुपये चुकाए.
गुवाहाटी की इस भारी मांग पर किसान मृगेन मजूमदार जो कि पिछले 10 साल से केले की बिक्री करते हैं, वे कहते हैं कि एक बार केले के पौधे पर फल आ जाए तो पौधे यानी कि थंब का कोई इस्तेमाल नहीं रह जाता. ऐसे में हम दिवाली के दौरान इन पौधों को काटकर गुवाहाटी लेकर आ जाते हैं. इससे लोगों को अपनी पारंपरिक पूजा में मदद मिलती है और हमें मुनाफा हो जाता है. मैं इस सीजन 200 पौधे बेचने के लिए लाया जिसमें आधे की बिक्री हो चुकी है. उम्मीद है बाकी पौधे भी बिक जाएंगे.
मजूमदार बताते हैं कि इस बिजनेस से उन्हें 8,000 से 9,000 के बीच मुनाफा होता है. मजूमदार ने कहा, इस काम में 4,000 रुपये ट्रांसपोर्ट और 2,000 रुपये लेबर पर खर्च हुआ. वे कहते हैं कि 9,000 रुपये खर्च कर 20,000 रुपये का मुनाफा आराम से हो जाएगा.
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इसी तरह दिवाली में बांस की डंडी की मांग भी रहती है. इसकी एक छोटी डंडी 5 रुपये में बिकती है. इन डंडियों को पूजा के दौरान दीया पर रखा जाता है. नलबारी और कामरूप में बांस बड़े पैमाने पर उगता है. किसान इससे डंडी काट लेते हैं और उसे बेचकर कमाई करते हैं. इसके लिए किसानों को केवल ट्रांसपोर्टेशन पर खर्च करना होता है, बाकी उन्हें मुनाफा ही मुनाफा है.
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