प्याज एक्सपोर्ट बैन हुए लगभग दो महीने होने वाले हैं. इस दौरान महाराष्ट्र के किसानों को लाखों रुपये का नुकसान हो चुका है. राज्य की ज्यादातर मंडियों में प्याज का दाम 100 से 500 रुपये प्रति क्विंटल तक ही रह गया है, जिससे उनकी लागत भी नहीं निकल रही है. आवक बढ़ने से दाम काफी कम रह गया है. सोलापुर मंडी में पांच फरवरी को 39369 क्विंटल प्याज बिकने के लिए आया. यहां न्यूनतम दाम घटकर सिर्फ 100 रुपये क्विंटल यानी 1 रुपये किलो रह गया. इस मंडी में अधिकतम दाम सिर्फ 1900 और औसत दाम 1100 रुपये क्विंटल रहा.
किसानों का कहना है कि सरकार ने अगस्त 2023 से उन्हें दाम के मामले में परेशान करके रखा है. लेकिन निर्यात बंदी की वजह से पिछले दो महीने में सबसे ज्यादा घाटा हुआ है. पूरा बाजार सरकार ने चौपट कर दिया है. सरकार कोई न कोई तरकीब लगाकर दाम बढ़ने ही नहीं दे रही है. इसकी वजह से अब किसान हताश हो चुके हैं और वह प्याज की खेती कम कर रहे हैं. क्योंकि प्याज की खेती पर सरकार कुंडली मारकर बैठी है.
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धुले जिला भी महाराष्ट्र में प्याज का प्रमुख उत्पादक है. यहां की मुख्य फसल प्याज है. इसलिए ज्यादातर किसानों की आजीविका इसी की खेती पर चलती है. धुले की मुख्य प्याज मंडी में 5 फरवरी को सिर्फ 102 क्विंटल प्याज की आवक हुई थी, इसके बावजूद किसानों को न्यूनतम दाम सिर्फ 100 रुपये क्विंटल यानी कि 1 रुपये किलो मिला. अधिकतम दाम 1620 रुपये प्रति क्विंटल जबकि औसत दाम सिर्फ 1300 रुपये प्रति क्विंटल रहा.
महाराष्ट्र कांदा उत्पादक संगठन के संस्थापक अध्यक्ष भारत दिघोले का कहना है कि सरकार किसानों को मिलने वाली चीजों को सस्ता नहीं करवा रही, जबकि किसानों के घर पैदा होने वाली कृषि उपज को सस्ता करवाने के लिए पूरा जोर लगा रही है. जिसकी वजह से आज देश में किसानों की बद से बदतर स्थिति हो गई है. सरकार हाथ धोकर प्याज के पीछे पड़ी है. पता नहीं प्याज को लेकर सरकार की क्या मंशा है. अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में प्याज की खेती से महाराष्ट्र के किसान पूरी तरह से पीछे हट जाएंगे. क्योंकि जब दाम ही नहीं मिलेगा तो इतनी मेहनत करके क्या करेंगे.
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