आलू की फसल को कभी पाला, कभी कोहरा तो कभी सर्द हवाएं प्रभावित करती हैं. कई बार तो मौसम में हुए अचानक से बदलाव की वजह से भी आलू की फसल झुलसा रोग की चपेट में आ जाती है. वहीं, आलू की खेती करने वाले किसानों को सबसे अधिक नुकसान झुलसा रोग से उठाना पड़ता है. आलू की फसल में दो तरह के झुलसा रोग लगते हैं, पहला अगेती झुलसा रोग और दूसरा पछेती झुलसा रोग.
झुलसा रोग की चपेट में आने से आलू के पौधे मुरझा कर सूखने लगते हैं. ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों ने एक ऐसी दवा तैयार की है, जिसके जरिए किसानों को आसानी से अगेती झुलसा रोग से छुटकारा मिल जाएगा-
आलू की फसल में अगेती झुलसा रोग अल्टरनेरिया सोलेनाई नाम के कवक की वजह से होता है. झुलसा रोग के लक्षण आमतौर पर बुवाई के 3 से 4 सप्ताह बाद नजर आने लगते हैं. इसके अलावा, पौधों की निचली पत्तियों पर छोटे-छोटे धब्बे दिखाई देने लगते हैं और रोग बढ़ने के साथ धब्बों के आकार और रंग में भी वृद्धि होने लगती है. साथ ही रोग का प्रकोप बढ़ने पर पत्तियां सिकुड़ कर गिरने लगती हैं. तनों पर भी भूरे और काले धब्बे नज़र आने लगते हैं और आलू का आकार छोटा ही रह जाता है.
खबरों के मुताबिक, आचार्य नरेंद्र देव कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, अयोध्या, उत्तर प्रदेश के कृषि वैज्ञानिकों ने जीवाणु की सहायता से कल्चर तैयार किया है, जो आलू की फसल को झुलसा रोग से बचाएगा. कल्चर को विकसित करने वाले कृषि वैज्ञानिक डॉ आदेश कुमार के मुताबिक, हमने मिट्टी से ही बैसिलस सीरियस बैक्टीरिया को निकालकर, लैब में झुलसा रोग फैलाने वाले फंगस के विरुद्ध टेस्ट किया, हमने देखा कि 99% तक यह आलू के झुलसा रोग के खिलाफ कारगर है.
उसके बाद भी हमने कई टेस्ट किए जिसका बहुत अच्छा परिणाम मिला. हमने इस बैक्टीरिया कल्चर को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीव कल्चर संग्रह, मऊ में भी भेजा, वहां पर भी इस पर टेस्ट किए हैं, जोकि पूरी तरह से कारगर हैं.
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