पंजाब में सिकुड़ने लगी सरसों की खेतीपंजाब में कम मुनाफे के कारण किसान सरसों की खेती से दूर हो रहे हैं. देश में सरसों के तेल की कीमतें लगातार बढ़ रही हैं, जबकि तिलहन फसलों के रकबे में गिरावट देखी जा रही है. पंजाब में 1970 और 1975 के बीच सोयाबीन, तोरिया, सरसों और सूरजमुखी सहित तिलहन फसलों के तहत रकबा लगभग 5 लाख हेक्टेयर था. यह अब घटकर सिर्फ 51,000 हेक्टेयर रह गया है.
पिछले साल सरसों की खेती का रकबा लगभग 41,000 हेक्टेयर था. यह पंजाब में तिलहन की खेती में बड़ी गिरावट दिखाता है. इसकी बड़ी वजह है पंजाब के किसान तिलहन बोने के लिए पारंपरिक गेहूं-धान के रोटेशन से बाहर निकलने में हिचकिचा रहे हैं.
चालू वित्तीय वर्ष में, लगभग 51,000 हेक्टेयर में तिलहन फसलों की खेती की गई थी. अच्छी सरसों की फसल के लिए बुवाई का सही समय सितंबर के अंत से अक्टूबर के अंत तक होता है, कुछ किस्मों को नवंबर के अंत तक बोया जा सकता है. पंजाब में, उगाई जाने वाली मुख्य किस्मों में भूरी और पीली सरसों, राया-तोरिया और गोभी सरसों शामिल हैं.
सरसों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) लगभग 6,200 रुपये प्रति क्विंटल है. प्रति एकड़ औसत उपज 6 से 8 क्विंटल तक होती है, हालांकि कुछ किस्मों से 15 क्विंटल तक उपज होती है. अभी पंजाब का सरसों उत्पादन अपनी तेल की जरूरतों का केवल 3 प्रतिशत ही पूरा करता है, जिससे 97 प्रतिशत तेल विदेश से आयात करना पड़ता है.
राष्ट्रीय स्तर पर, देश 120 लाख टन तेल का उत्पादन करता है लेकिन मांग को पूरा करने के लिए 140 लाख टन आयात करता है. देश में सरसों और अन्य तिलहन फसलों के तहत कुल क्षेत्रफल 9.18 लाख हेक्टेयर है. सरसों उत्पादन में राजस्थान देश में सबसे आगे है, उसके बाद उत्तर प्रदेश का स्थान है.
अन्य प्रमुख उत्पादकों में गुजरात, पश्चिम बंगाल, हरियाणा और असम शामिल हैं. पंजाब के भीतर, फाजिल्का, होशियारपुर, गुरदासपुर और बठिंडा जिले सरसों उगाने में क्रमशः पहले, दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर हैं.
किसानों का तर्क है कि उन्हें तिलहन फसलों के लिए मार्केटिंग की बुनियादी ढांचे की जरूरत है. उनका मानना है कि अगर MSP और मार्केटिंग से जुड़े मुद्दों को हल किया जाता है, तो पंजाब में सरसों के तहत क्षेत्र बढ़ सकता है. गेहूं और धान के लिए मार्केटिंग का एक पूरा सिस्टम बना हुआ है. यही मुख्य कारण है कि किसान धान-गेहूं के रोटेशन से बाहर नहीं निकलते हैं. सरसों की सरकारी खरीद की कमी के कारण, किसानों को प्राइवेट डीलरों पर निर्भर रहना पड़ता है, जो अक्सर अपनी मर्जी से कीमतें तय करते हैं.
मद्दोके गांव के एक किसान गुरमेल सिंह ने बताया कि पिछले साल 25 एकड़ में सरसों बोकर उन्हें अच्छा मुनाफा हुआ था, जिससे उन्हें इस साल अपनी खेती बढ़ाकर 40 एकड़ करने की प्रेरणा मिली.
उन्होंने बताया कि प्रति एकड़ लगभग 16 क्विंटल की पैदावार हुई. इसी तरह, चारिक गांव के जसपाल सिंह ने 2.5 एकड़ में सरसों की खेती की है, और बधनी कलां के रमनप्रीत सिंह, जिन्होंने पिछले साल 2.5 एकड़ में सरसों बोई थी, उन्होंने इस साल अपना रकबा बढ़ाकर 3 एकड़ कर दिया है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार को सही मार्केटिंग की व्यवस्था करनी चाहिए और अच्छी क्वालिटी के बीज उपलब्ध कराने चाहिए, क्योंकि अभी वे बहुत महंगे हैं.
पंजाब कृषि विभाग की जॉइंट डायरेक्टर डॉ. हरप्रीत कौर ने 'दि ट्रिब्यून' को बताया कि इस साल लगभग 51,000 हेक्टेयर जमीन पर तिलहन की खेती की गई है. उन्होंने कहा कि हालांकि पंजाब के किसान गेहूं और धान को प्राथमिकता देते हैं, लेकिन तिलहन के तहत रकबा बढ़ाने के प्रयास जारी हैं. उन्होंने आगे कहा कि सरसों की खेती वाकई बहुत फायदेमंद हो सकती है.
कृषि विभाग के रिटायर्ड डिप्टी डायरेक्टर डॉ. जसविंदर सिंह बरार ने कहा कि पंजाब की मिट्टी सरसों की खेती के लिए बहुत अच्छी है और उन्होंने किसानों से इस फसल की ओर लौटने का आग्रह किया. तिलहन के रकबे में गिरावट पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि पंजाब अपनी तेल की जरूरतों का सिर्फ 3% ही उत्पादन करता है, जिससे 97% जरूरतें, मुख्य रूप से सूरजमुखी का तेल यूक्रेन और रूस से ज्यादा कीमतों पर आयात करना पड़ता है.
मुख्य कृषि अधिकारी डॉ. गुरप्रीत सिंह ने बताया कि मोगा जिले में सरसों और तिलहन के तहत रकबा 2022-2025 के बीच लगभग 834-957 हेक्टेयर से बढ़कर मौजूदा वित्तीय वर्ष में 2,048 हेक्टेयर हो गया है. उन्होंने बताया कि पंजाब एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी (PAU), लुधियाना ने नई किस्में विकसित की हैं जो ज्यादा पैदावार और बेहतर मुनाफा देती हैं.
मोगा के डिप्टी कमिश्नर सागर सेतिया ने 'दि ट्रिब्यून' से कहा कि पंजाब के किसानों के लिए तिलहन फसलों का भविष्य उज्ज्वल है. उन्होंने मोगा में सरसों के रकबे का दोगुना होना एक अच्छा संकेत बताया. उन्होंने बताया कि नेशनल मिशन ऑन एडिबल ऑयल्स-ऑयलसीड्स प्रोग्राम के तहत, किसानों को 'FPOs' (किसान उत्पादक संगठनों) के जरिए हर दिन 10 टन क्षमता वाली तेल प्रोसेसिंग यूनिट लगाने के लिए 9.90 लाख रुपये की फाइनेंशियल मदद दी जाती है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today