महाराष्ट्र में चना प्रमुख दलहन फसल के तौर पर देखा जाता है. इससे किसान अच्छी कमाई करते हैं. यही वजह है महाराष्ट्र में हर साल चने की खेती बड़े पैमाने पर होती है. इसके बाद किसान अनपी उपज को बेचते हैं. लेकिन इस साल राज्य में नाफेड की तरफ से लेट खरीद केंद्र खोला जा रहा है जिसकी वजह से किसानों को इस साल नुकसान हो रहा है. वहीं राज्य में नाफेड के माध्यम से चना खरीद के लिए किसानों का पंजीकरण 27 फरवरी यानी आज से शुरू हो गई है. एमएसपी पर चना खरीदी के लिए पानन महासंघ ने गुरुवार 16 तारीख को केंद्र सरकार को पत्र लिखा था. जिसके बाद अब किसानों का पंजीकरण शुरू होगा और जल्दी खरीद केंद्र खोला जाएगा. वहीं किसानों का कहना है कि इस साल लेट केंद्र खोला जा रहा है इससे हमें भारी नुकसान हुआ है.
राज्य के किसान कम दामों में खुले बाज़ारों में चना बेचने के लिए मजबूर हैं. किसानों का कहना है कि इस साल इतना देरी से खरीद केंद्र खोला जा रहा है. किसान कब तक इंतजार करते इसलिए बहुत से किसानों ने खुले बाजार में अपनी उपज बेच दी है. किसानों का कहना है कि खुले बाज़ार में किसान 4,500 रुपये से लेकर 4,900 रुपये प्रति कम भाव में बेच रहे हैं, जबकि किसानों का प्रति एकड़ चने की खेती में 7 से 8 हज़ार रूपये का खर्च आता है. और उत्पादन 6 से 8 क्विंटल तक मिलता हैं.
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केंद्र सरकार ने इस साल चने के लिए 5,335 रुपये एमएसपी तय की है, लेकिन वर्तमान में चना उत्पादकों को भारी नुकसान हो रहा है. क्योंकि खरीद केंद्र नहीं खुलने से किसान मजबूरन खुले बाज़ार मे उपज बेच रहे हैं और खुले बाज़ार में किसानों को चना का दाम 4,500 रुपये से लेकर 4,900 रुपये तक मिल रहा है. इसलिए किसान नाफेड से जल्द से जल्द चना खरीद केंद्र खोने की मांग कर रहे हैं. महाराष्ट्र में 28 लाख 30 हजार हेक्टेयर में चने की खेती की गई है, पिछले साल की तुलना में रकबा 5 लाख हेक्टेयर बढ़ा है, उत्पादन भी बढ़ा है.
जालना के रहने वाले किसान गणपत मिसल ने कहा, "27 फरवरी से सिर्फ पंजीकरण होगा और खरीदी केंद्र पता नहीं कितने दिनों बाद खुलेगा, तब तक किसान खुले बाज़ारों में अपनी उपज को बेच देंगे, क्योंकि किसान ज्यादा समय तक चना अपने घरों में नहीं रख सकते हैं. ज्यादा दिन रखने पर चना खराब हो जाएगा." ने आगे कहा कि पिछले साल इस समय किसान खरीद केंद्र पर अपनी उपज बेच चुके थे. किसान मिसल ने कहा कि इस सीजन में उन्होंने एक एकड़ में चने की खेती की थी जिसमें उन्हें 8 क्विंटल उत्पादन मिला है. वहीं लागत 8 हज़ार रुपये आई थी.
मिसल ने आगे कहा कि अब ऐसे में किसान यदि खुले बाज़ार में कम कीमत में अपनी उपज को बेचेगा तो कहा से फायदा होगा. किसान पहले से ही कॉटन और प्याज की कीमतों से परेशान थे और अब चने के दाम से भी परेशान हैं. अगर नाफेड सही समय पर खरीद केंद्र खोलता तो किसानों कोइतना नुकसान नहीं उठाना पड़ता.
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