खरीफ सीजन की शुरुआत होने वाली है, जो मुख्य तौर पर धान की खेती का समय है. इस सीजन में झारखंड के अंदर धान के बाद सबसे अधिक मक्के की खेती की जाती है. वैज्ञानिक मानते हैं कि मक्का उत्पादन के लिए झारखंड की भौगोलिक स्थिति काफी उपयुक्त है, लेकिन ये अधूरा सच है. मक्के के बेहतर उत्पादन के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान की जरूरत होती है, जबकि झारखंड मे खरीफ के मौसम में तापमान 28 से 40 डिग्री तक रहता है. इन सभी सवालों के जवाब आईसीएआर-आईआरआई के मक्का प्रजनन वैज्ञानिक डॉ संतोष कुमार ने दिए हैं. उन्होंने बताया कि झारखंड के लिए मक्के की खेती कितनी जरूरी है.
मक्के की खेती के लिए अच्छी और पर्याप्त बारिश की जरूरत होती है. झारखंड में औसत वर्षा 1200-1600 मिली के बीच होती है. यह बारिश खरीफ मक्का के लिए अनुकुल होती है क्योंकि जून से लेकर सितंबर तक मानसून यहां पर होता है. हालांकि बारिश के पैटर्न में बदलाव होने पर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए. मक्के के लिए मिट्टी के प्रकार के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि विभिन्न प्रकार की मिट्टी में मक्के की खेती की जा सकती है. हालांकि लैटेराइट और लाल मिट्टी मक्के की खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है.
किसान तक से बातचीत में डॉ संतोष कुमार ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के मामले में अन्य फसलों की तुलना में मक्के में अधिक प्रतिरोधक क्षमता होती है. यह अधिक गर्मी और सूखे के प्रति सहनशील होती है. इसके कारण यह मौसम के प्रभाव से कम प्रभावित होता है. इतना ही नहीं मक्के की खेती के लिए धान से कम पानी की जरूरत होती है. इसके कारण पानी के संकट वाले क्षेत्रों में मक्के एक से अधिक उपज देने वाली फसल बन जाता है. हालांकि जलवाय परिवर्तन के कारण मक्के की उत्पादकता पर असर होता है.
झारखंड में 2.72 लाख हेक्टेयर जमीन में मक्के की खेती की जाती है. झारखंड में खरीफ के मौसम में होने वाले मक्के की खेती पूरी तरह से बारिश पर निर्भर होती है. झारखंड में ऊपरी इलाकों में इसकी खेती की जाती है. झारखंड में इसका उपयोग खाने के लिए और पशुओं के चारे के लिए किया जाता है. मक्के की खेती के लिए 500-800 मिमी बारिश की जरूरत होती है. मक्के में फ्लावरिंग के समय और मक्के में दाना भरने के समय और इसके 10 दिन बाद यह पौधा काफी संवेदनशील होता है. इस समय बाऱिश नहीं होने पर सिंचाई जरूर करें.
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