झारखंड जंगलों से घिरा हुआ राज्य है. यहां के जंगलों में अनेक प्रकार के फल-फूल और औषधिय पौधे बड़ी मात्रा में पाए जाते हैं. झारखंड के वनों की यह विशेषता राज्य को वनोपज के क्षेत्र में भी अग्रणी भूमिका निभाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं. राज्य में इमली, लाह, चिरोंजी और महुआ जैसे वनोत्पाद भारी मात्रा में पाए जाते हैं. खास कर महुआ यहां पर बहुतायत में पाया जाता है. रांची, चतरा, लोहरदगा, पलामू और बोकारो समेत राज्य के कई दिलों में महुआ के पेड़ पाए जाते हैं. झारखंड में महुआ को इसलिए खराब माना जाता है क्योंकि इससे एक मादक पेय बनाया जाता है. लेकिन अब इसकी पहचान बदलने की कोशिश की जा रही है.
झारखंड में ऐसी कई संस्थाएं हैं, जो महुआ के वैकल्पिक इस्तेमाल पर जोर दे रही है और सफलता भी हासिल कर रही है. खास कर महिलाएं इसके लिए आगे आ रही है और महुआ से शराब की जगह कई प्रकार के पौष्टिक युक्त खाद्य पदार्थ बना रही है. बोकारो जिले के गोमिया प्रंखंड अतंर्गत सिंयारी पंचायत के द्वार गांव में युग मार्शल स्वयं सहायता समूह की महिलाएं भी कुछ इसी तरह के प्रयास में जुटी हैं और काफी हद तक सफल हो रही हैं. गांव में इसका व्यापक प्रभाव पड़ा है और गांव में बदलाव का दौर जारी है.
समूह की महिला पार्वती देवी बताती हैं की पहले गांव में महुआ से शराब बनाई जाती थी, इससे समाज में कुरीति फैल रही थी, लोगों का सेहत खराब हो रहा था, अपने बच्चों की शिक्षा पर ध्यान नहीं देते थे, लेकिन अब जब
से गांव में महुआ का इस्तेमाल बदला, गांव में काफी सुधार आया है. बच्चे अब अच्छी शिक्षा ले रहे हैं. लोगों की कमाई बढ़ी है. साथ ही अब वो महुआ के पौष्टिक सामग्री का सेवन कर रहे हैं. इस गांव की महिलाएं महुआ से लड्डू, आचार, जैम, महुआ हॉर्लिक्स, महुआ शक्ति पाउडर और महुआ शक्ति बार्ली बनाती हैं. साल 2015 में इसकी शुरुआत हुई थी. इसके बाद से ही गांव से बाहर भी महुआ से बने उत्पादों की खूब मांग होती है.
पार्वती देवी बताती हैं कि उनके खुद के 40 महुआ के पेड़ है, जिसमें पांच से छह क्विंटल महुआ का उत्पादन होता है. इसके साथ ही गांव में महुआ के 1000 से अधिक पेड़ हैं. महुआ से सीजन में हर रोज सूबह इन पेड़ों के नीचे महुआ चुनने वालों की भीड़ होती है. महुआ से लड्डू और अन्य समाग्री बनाने वाली महिलाएं अब इतनी जागरूक हो चुकी हैं की गांव में अब बुजुर्गों को शिक्षित करने के लिए प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम भी चला रही हैं. समूह की 15 महिलाएं यह कार्य कर रही हैं. सब कुछ अच्छा चल रहा है, लेकिन पार्वती देवी बताती हैं कि मौसम की मार का असर महुआ किसानों को भी झेलना पड़ता है. महुआ को चुनने के बाद कड़ी धूप में सुखाना पड़ता है, लेकिन इस बार बारिश और ओलो के कारण महुआ अच्छे से सूख नहीं पाया, इसलिए इसकी गुणवत्ता में कमी आई है. पार्वती देवी ने बताया कि इस बार बारिश के कारण 50 प्रतिशत महुआ को नुकसान हुआ है.
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