झारखंड में आज प्रकृति पर्व करमा पूजा मनाया जा रहा है. झारखंड के छोटानागपुर इलाके में इस पर्व को आदिवासी समुदाय के अलावा अन्य लोग भी हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं. इस पर्व में करम पेड़ के डाली की पूजा की जाती है. इस त्योहार के जरिए प्रकृति संरक्षण के साथ-साथ धर्म और और अधर्म के बीच की दूरियों को समाज को समझाने का प्रयास किया जाता है. हमारे पूर्वजों ने इस पर्व को पर्यावरण सुरक्षा के साथ जोड़ा है, इसलिए इसे हर्षोल्लास भाईचारा और प्रेम के साथ मनाया जाता है. इस त्योहार में गेहूं, जौ, मकई और चना के बीज को एक सप्ताह पहले बालू में रखा जाता है और फिर उसकी जब छोटी कोंपले निकलती है हौ तो उससे करमा पूजा की जाती है.
इस त्योहार में आदिवासी खान-पान का बहुत महत्व है. इस दिन रात में पूजा पाठ में प्रसाद के तौर पर इस सीजन की नई फसल जैसे खीरा का इस्तेमाल प्रसाद के तौर पर होतै है साथ ही अरवा चावल के पारपंरिक पकवान बनाए जाते हैं. पर इस साल किसान चिंतित थे कि आखिर अरवा चावल के पकवान कैसे बनाएंगे क्योंकि घर में चावल खत्म हो चुका है. पिछले साल भी धान की उपज कम हुई थी और जो बचा हुआ धान था उसे या तो किसानों ने बेच दिया था या फिर खाने के लिए इस्तेमाल हो गया है.
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हालांकि कुछ किसानों ने बातचीत के दौरान बताया कि त्योहारको लेकर पहले जो उत्साह सभी के मन में रहता था वो इस साल दिखाई नहीं दे रहा है. करमा पूजा के दिन गांवों में खूब चहल पहल होती थी पर इस बार ऐसी चहल पहल गांवों में दिखाई नहीं दे रही है. किसान लगातार दो साल पड़े सूखे से परेशान है. अच्छी फसल नहीं होने का दुख उनके मन में है इसके लिए त्योहार को लेकर वो उत्साह दिखाई नहीं दे रहा है.
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गौरतलब है कि खरीफ सीजन की शुरुआत के दौरान बाहर में भी काम करने वाले लोग अपने गांव आते हैं और धान की खेती करते हैं फिर करमा पूजा बीतने के बाद वापस काम में चले जाते हैं. इस दौरान वो अपने खेत में धान लगाने के बाद बतौर कृषि मजदूर भी काम करते हैं. पर इस बार समय से बारिश नहीं हुई और धान की खेती भी बहुत कम हुई इसके कारण उन्हें काम नहीं मिला और वो आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं. इस कारण त्योहार में उनके मन में वो खुशी नहीं है.
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