झारखंड का एक नशामुक्त गांव, जहां जंगल बचाने के अभियान से बदल गई कृषि की तस्वीर

झारखंड का एक नशामुक्त गांव, जहां जंगल बचाने के अभियान से बदल गई कृषि की तस्वीर

ग्रामीण बताते हैं कि गांव की भौगौलिक स्थिति ऐसी है कि गांव में पहले पानी की बेहद समस्या थी. 200 फीट तक की बोरिंग करने पर भी पानी नहीं निकलता था. गर्मी में तालाब कुएं और चापाकल सूख जाते थे. पानी के लिए काफी परेशानी होती थी.

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झारखंड का एक नशामुक्त गांव, जहां जंगल बचाने के अभियान से बदल गई कृषि की तस्वीरघरों की दिवार पर लिखे स्लोगन और रक्षा बंधन करता युवक फोटोः किसान तक

कृषि और जंगल का रिश्ता बेहद पुराना है, कृषि के लिए जंगल बेहद जरूरी है, इस बात को समझते हुए झारखंड के ओरमांझी प्रखंड के बनलोटवा गांव के ग्रामीण हर साल 14 जनवरी को वन रक्षा बंधन मनाते हैं. इस दिन गांव के लोग गांव मे स्थित जंगल मे जाकर पेड़ों में लाल रंग का कपड़ा बांधते हैं जिसे रक्षा सूत्र कहा जाता है और पेड़ों की रक्षा का संकल्प लेते हैं. ग्रामीणों के संकल्प का ही परिणाम है कि आज गांव में हरे-भरे खेत लहलहा रहे हैं. ग्रामीणों के पास सिंचाई के लिए पानी की कमी नहीं है. 

गांव में वनों को बचाने की शुरुआत साल 1985 में हुई थी. जब ग्रामीणों ने बैठक करके वन रक्षा समिति का गठन किया था और पेड़ों की रक्षा करने का संकल्प लिया था. हालांकि, उस समय तक रक्षा सूत्र बांधने का रिवाज उस वक्त नहीं था, पर 2014 में हजारीबाग से आए महादेव महतो ने ग्रामीणों के साथ बैठक की और वनों की सुरक्षा करने का सकल्प लिया.इस बार अधिक जोश के साथ काम हुआ. पुराने बनाए गए नियमों का सख्ती से पालन हुआ. जिसका असर आज दिखा रहा है. गांव में घना जंगल है.

जलस्तर में हुआ सुधार खेती से आई खुशहाली

ग्रामीण बताते हैं कि गांव की भौगौलिक स्थिति ऐसी है कि गांव में पहले पानी की बेहद समस्या थी. 200 फीट तक की बोरिंग करने पर भी पानी नहीं निकलता था. गर्मी में तालाब कुएं और चापाकल सूख जाते थे. पानी के लिए काफी परेशानी होती थी. पर अब जब जंगल घना हो गया है तो गांव के जलस्तर में काफी सुधार आया है. अब कुओं में सालोंभर पानी रहता है. इससे ग्रामीण अच्छे से खेती कर पा रहे हैं. क्योंकि यहां पर लगभग 95 फीसदी परिवार कृषि से जुड़े हुए हैं. जलस्तर में सुधार आने के बाद अब जंगल के किनारे से होकर बहने वाले छोटे नाले में भी पानी रहता है.

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जंगल बचाने के नियम

ग्रामीणों ने गांव में 350 एकड़ जमीन में वनों को संरक्षित करने के लिए नियम बनाया है. नियम के मुताबित ग्रामीण अपने मवेशियों को जंगल के अंदर जाने नहीं देंगे. मवेशियों को चराने के लिए एक अलग से क्षेत्र बना हुआ है. संरक्षित वन क्षेत्र से ग्रामीणों को एक दातुन या पत्ता तक भी तोड़ने की इजाजत नहीं है. पकड़े जाने पर अर्थदंड का प्रावधान रखा गया है. ग्रामीणों द्वारा बनाए गए नियम के मुताबिक ग्रामीण जंगल से सूखी लकड़ी तक नहीं ले जाते हैं. सूखी लकड़ी को जंगल में दीमक खाते हैं और और दीमक को पक्षी खाते हैं, इस तरह से जंगल का इकोसिस्टम काम करता है. 

हर साल होता है आयोजन

बनलोटवा वन सुरक्षा समिति के सचिव रंजीत कुमार महतो ने वन रक्षा बंधन का इतिहास बताते हुए कहा कि इसी दिन से बनलोटवा गांव से वनों को बचाने के लिए महादेव महतो की अगुवाई में पदयात्रा की शुरुआत हुई थी. 100 दिनों की यह पदयात्रा 108 किलोमीटर चली थी. इस यात्रा के बीच जितने गांव आए थे, उन सभी गांवों में जल     और जंगल बचाने का संकल्प लिया गया था. इसका परिणा है कि आज भी उन गांवों में वन रक्षा बंधन मनाया जाता है. 

स्वच्छ गांव-नशा मुक्त गांव

बनलोटवा गांल में जब आप प्रवेश करते है तो आपको एक बोर्ड नजर आता है नशा मुक्त गांव बनलोटवा. गांव में ग्रामीण वनो वनो को बचाने के लिए एकजुटु हुए तो सबसे पहले नशा पर पाबंदी लगाई, इससे गांव में आपसी झगड़े कम होते हैं और जंगलों की रक्षा करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं. गांव में घरों के दिवारों पर जल जंगल और जमीन को बचाने के लिए नारे लिखे हुए ताकि गांव में आने वाले लोग और आने वाली पीढ़ियां इसे सीख सके और इनके महत्व को समझ सकें. 

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