‘अवैध बूचड़खानों में न गाय कटने देंगे, न गोवंश की तस्करी होने देंगे. सरकार का हर संभव प्रयास होगा कि सड़कों पर बेसहारा गोवंश भी न दिखें. सरकार अपने तरीके से तो हर संभव कोशिश करेगी ही, इस गोमाता को बचाने में जन सहयोग भी बेहद जरूरी है.’ गोवंश संरक्षण के साथ गोमाता के प्रति प्रेम के ये भाव मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हैं. अपने 8 साल के कार्यकाल में योगी सरकार ने गोवंश संरक्षण के क्षेत्र में मिसाल प्रस्तुत की है.
गोवंश संरक्षण की मंशा उसकी हो सकती है जिसे दिखावे के लिए नहीं हकीकत में गाय और गोवंश से दिल से प्रेम हो. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ऐसे ही व्यक्ति हैं जिनको गोवंश से प्रेम है. यह प्रेम दोतरफा है. जितना वह गायों को प्रेम करते हैं, उतना ही गाय और उनके बच्चे भी उनसे. जब भी गोरखपुर में वह अपने गोरखनाथ मंदिर परिसर स्थित मठ में रहते हैं, उनके दिनचर्या की शुरुआत मंदिर स्थित गोशाला से ही होती है. जैसे ही वह गोशाला की ओर बढ़ते हैं, गोवंश उनके कदमों की आहट को पहचान जाते हैं.
उनमें मुख्य गेट तक सबसे पहले पहुंचने की होड़ मच जाती है. गोशाला के अंदर जाने पर भी कमोबेश यही हालत रहते हैं. गाय और उनके बच्चे उनको घेर लेते हैं. वह हर किसी को नाम से पुकारते, पुचकारते हैं और चना, गुड़, रोटी या हरा चारा भी खिलाते हैं.
खास बात ये है कि इस गोशाला के सारे गोवंश देशी नस्ल के हैं. इनकी कुल संख्या करीब 400 होगी. गोवंश से इसी प्रेम के नाते मार्च 2017 में जब वह पहली बार मुख्यमंत्री बने तब अवैध बूचड़खानों, गोवंश और उसके मांस की तस्करी पर बेहद सख्ती से रोक लगा दिया. उनका मानना है कि "गो माता के गर्दन और बूचड़ के छुरे के बीच भगवान के साथ भी बहुत कुछ है.” उन्होंने सिर्फ सख्ती ही नहीं की बल्कि बेसहारा गायों को सरकारी खर्च से गोआश्रयों में रखने की भी नायब पहल की.
इसी पहल के तहत अब तक प्रदेश में योगी सरकार 7700 से अधिक गोआश्रय बना चुकी है. इनमें करीब 12.5 लाख निराश्रित गोवंश रखे गए हैं. इसके अलावा मुख्यमंत्री सहभागिता योजना के तहत करीब 1 लाख लाभार्थियों को 1.62 लाख निराश्रित गोवंश दिए गए हैं. योजना के तहत हर लाभार्थी को प्रति माह 1500 रुपये भी दिए जाते हैं. सीएम योगी की मंशा के अनुसार गोआश्रय केंद्रों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए संबंधित विभाग कृषि विभाग से मिलकर सभी जगहों पर वहां की क्षमता के अनुसार वर्मी कंपोस्ट इकाई लगाएगा.
गोबर और गोमूत्र को प्रसंस्कृत करने के लिए उचित तकनीक की जानकारी देने के बाबत इन केंद्रों और अन्य लोगों को प्रशिक्षित किया जाएगा. इसमें चारे की उन्नत प्रजातियों के बेहतर उत्पादन उनको फोर्टीफाइड कर लंबे समय तक संरक्षित करने के बाबत भी प्रशिक्षत किया जाएगा. इसमें राष्ट्रीय चारा अनुसंधान केंद्र झांसी की मदद ली जाएगी.
पशुपालक गोवंश का पालन करें, इसके लिए सरकार उनको लगातार प्रोत्साहन दे रही है. 25 प्रजाति की देशी नस्ल की गायों के संरक्षण, संवर्धन एवं दुग्ध उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार ने नायाब पहल की है. इसके लिए शुरू की जाने वाली 'नंदनी कृषक समृद्धि योजना' के तहत बैंकों के लोन पर सरकार पशुपालकों को 50% सब्सिडी देगी. इसी क्रम में सरकार ने अमृत धारा योजना भी लागू की है. इसके तहत दो से 10 गाय पालने पर सरकार बैंकों के जरिये 10 लाख रुपये तक अनुदानित ऋण आसान शर्तों पर मुहैया कराएगी. योजना के तहत तीन लाख रुपये तक अनुदान के लिए किसी गारंटर की भी जरूरत नहीं होगी.
हाल ही प्रस्तुत बजट में सरकार ने छुट्टा गोवंश के संरक्षण के लिए 2000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया. इसके पहले अनुपूरक बजट में भी इस बाबत 1001 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था. यही नहीं बड़े गोआश्रय केंद्र के निर्माण की लागत को बढ़ाकर 1.60 करोड़ रुपये कर दिया है। ऐसे 543 गोआश्रय केंद्रों के निर्माण की भी मंजूरी योगी सरकार ने दी है. मनरेगा के तहत भी पशुपालकों को सस्ते में कैटल शेड और गोबर गैस लगाने की सहूलियत दी जा रही.
सरकार की मंशा है कि सभी गोआश्रय केंद्र अपने सह उत्पाद (गोबर, गोमूत्र) के जरिये स्वावलंबी बनें. साथ ही जन, जमीनकी सेहत के अनुकूल इकोफ्रेंडली प्राकृतिक खेती का आधार भी.
दरअसल जन, जमीन और जल की सेहत योगी सरकार के लिए प्राथमिकता है. इसका प्रभावी हल है प्राकृतिक खेती. ऐसी खेती जो रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से मुक्त हो. गोवंश इस खेती का आधार बन सकते हैं. उनके गोबर और मूत्र को प्रसंस्कृत कर खाद और कीटनाशक के रूप में प्रयोग से ही ऐसा संभव है. इससे पशुपालकों को दोहरा लाभ होगा. खुद और परिवार की सेहत के लिए दूध तो मिलेगा ही जमीन की सेहत के लिए खाद और कीटनाशक भी मिलेगा. इनके उत्पादन से गोआश्रय भी क्रमशः स्वावलंबी हो जाएंगे. इस तरह ये गोआश्रय प्राकृतिक खेती के आधार बन जाएंगे.
इकोफ्रेंडली इस खेती पर सरकार का खासा जोर भी है. यही वजह है कि जिस बुंदेलखंड में सर्वाधिक निराश्रित गोवंश हैं, उसके सभी सात जिलों को इस खेती के लिए सबसे पहले प्राथमिकता दी गई. मालूम हो कि वैश्विक महामारी कोरोना के बाद पूरी दुनिया स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हुई है. हर जगह स्थानीय और प्राकृतिक खेती से पैदा ऑर्गेनिक उत्पादों की मांग बढ़ी है.
ऐसे उत्पादों का निर्यात बढ़ने से अन्नदाता किसान खुशहाल होंगे. खास बात यह है कि प्राकृतिक खेती से जो भी सुधार होगा वह टिकाऊ (सस्टेनेबल), ठोस और स्थायी होगा. इन्हीं वजहों के नाते योगी सरकार छुट्टा गोवंश के संरक्षण का हर संभव प्रयास कर रही है. हाल ही में महाकुंभ के दौरान इस विषय पर पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्रालय ने भी गहन चर्चा की. साथ ही इस बाबत रणनीति भी बनाईं.
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