देसी गायों को बढ़ाने में क्यों जुटा भारत, जानिए किन देशों में कौन सी नस्ल का हो रहा है निर्यात  

देसी गायों को बढ़ाने में क्यों जुटा भारत, जानिए किन देशों में कौन सी नस्ल का हो रहा है निर्यात  

गायों की स्वदेशी नस्लें गर्मी झेलने में सक्षम होती हैं. ये नस्लें पानी की सीमित उपलब्धता में भी जीवित रह सकती हैं. इन पशुओं में निम्न गुणवत्ता वाले चारे को पर्याप्त पोषण में बदलने की क्षमता होती है. इन गुणों की वजह से भारत अब देसी गायों की संख्या बढ़ाने की कोश‍िश कर रहा है.  

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देसी गायों को बढ़ाने में क्यों जुटा भारत, जानिए किन देशों में कौन सी नस्ल का हो रहा है निर्यात  गाय की देसी नस्ल.

भारत में गायों की थारपारकर वेचूर, पुंगनूर, कृष्णा वैली, बरगुर, पोनवार, रेड सिंधी, बिंझारपुरी, साहीवाल और अमृतमहल जैसी देसी नस्लों की संख्या में गिरावट देखी जा रही है. इसल‍िए सरकार  स्वदेशी मवेशियों के संरक्षण और उनकी संख्या बढ़ाने के काम में जुट गई है. पशुपालन और डेरी विभाग स्वदेशी गोजातीय नस्लों के विकास के लिए कार्यक्रम शुरू किए हैं. राष्ट्रीय गोकुल मिशन के जर‍िए गिर और साहीवाल नस्लों के विकास पर काम क‍िया जा रहा है. यही नहीं बड़े पैमाने पर इनका दूसरे देशों में न‍िर्यात भी क‍िया जा रहा है. भारतीय कृष‍ि अनुसंधान पर‍िषद (ICAR) ने अपनी एक मैगजीन में इस बात का पूरा ब्यौरा द‍िया है क‍ि क‍िस देश में कौन सी स्वदेशी नस्ल की गाय का न‍िर्यात हो रहा है.

इन देशों की सूची जानने से पहले हम समझ लेते हैं क‍ि क‍िन प्रोजेक्ट के जर‍िए देसी गायों की संख्या को बढ़ाने का काम हो रहा है. दरअसल, राष्ट्रीय डेरी योजना के तहत विश्व बैंक की सहायता से 18 राज्यों में एक प्रोजेक्ट चल रहा है. ज‍िसमें मवेशियों की 6-6 स्वदेशी नस्लों का विकास और संरक्षण शामिल है. इसमें गिर, कांकरेज, थारपारकर, साहीवाल, राठी और हरियाणा शाम‍िल हैं. इसके ल‍िए सरकार ने केंद्रीय मवेशी प्रजनन फार्म, केंद्रीय झुंड पंजीकरण योजना और केंद्रीय वीर्य उत्पादन और प्रशिक्षण संस्थान खोला है. 

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निर्यात की जाने वाली स्वदेशी नस्लें

  • गिरः गिर को ब्राजील, संयुक्त राज्य अमेरिका और विभिन्न लैटिन अमेरिका आदि देशों में निर्यात किया गया है. 
  • कांकरेजः इस नस्ल के पशुओं को ब्राजील, मैक्सिको और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों में निर्यात किया गया है. 
  • साहीवालः इसे अफ्रीका, एशिया और मध्य पूर्व के देशों में निर्यात किया गया है. 
  • थारपारकरः इन्हें श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में निर्यात किया गया है. 
  • लाल सिंधीः इस नस्ल को अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया और मध्य पूर्व जैसे देशों में निर्यात किया गया है. 
  • देवनीः इन मवेशियों को अफ्रीकी देशों में निर्यात किया गया है. 
  • अमृत महलः इस नस्ल के मवेशियों को श्रीलंका में निर्यात किया गया. 
  • ओंगोलः इन्हें इंडोनेशिया और मलेशिया में निर्यात किया गया है.

स्वदेशी नस्लों की विशेषता 

स्वदेशी नस्लें प्राकृतिक चयन के माध्यम से अलग-अलग जलवायु और पारिस्थितिक क्षेत्रों में विकसित हुई हैं. देसी गायों का गोबर प्राकृत‍िक खेती के ल‍िए अच्छा होता है. शुष्क क्षेत्रों के लिए अनुकूलित मवेशियों में चिकने, छोटे, पतले बाल (स्लिक हेयर जीन) और उनका रंग हल्का होता है. थारपारकर, नागोरी और साहीवाल जैसी स्वदेशी नस्लें गर्म शुष्क रेगिस्तानी परिस्थितियों के लिए अनुकूल हैं. ये दूध, मांस और काम के लिए ऊर्जा का संरक्षण करती हैं.

गर्मी झेलने में सक्षम होती हैं. ये नस्लें अधिक जल-कुशल होने के कारण पानी की सीमित उपलब्धता में भी जीवित रह सकती हैं. इन पशुओं में निम्न गुणवत्ता वाले चारे को पर्याप्त पोषण में बदलने की क्षमता होती है. इन गुणों की वजह से भारत अब देसी गायों की संख्या बढ़ाने की कोश‍िश कर रहा है.

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