पोल्ट्री फार्म में पलने वाले मुर्गे और मुर्गियों को भी हॉर्ट अटैक आता है. हॉर्ट अटैक के चलते उनकी मौत तक हो जाती है. चिकन मार्केट में रेट के उतार-चढ़ाव के दौरान ऐसे हालात ज्यादा बनते हैं जब हॉर्ट अटैक से मुर्गों की मौत होती है. वजन बढ़ने के चलते हॉर्ट अटैक आता है. यही वजह है कि एक तय वक्त पर खास वजन के दौरान ही मुर्गों को बाजार में बेच दिया जाता है. लेकिन बाजार में बीते एक महीने से भी ज्यादा वक्त से चिकन के रेट में 10 से 20 रुपये किलो का लगातार उतार-चढ़ाव बना हुआ है.
कोरोना-लॉकडाउन के दौरान हजारों ब्रॉयलर मुर्गे और मुर्गियों की मौत हॉर्ट अटैक के चलते हुई थी. इतना ही नहीं जब भी चिकन बाजार की चाल बदलती है तो मुर्गों पर हॉर्ट अटैक की आफत टूट पड़ती है. पोल्ट्री एक्सपर्ट का कहना है कि मुर्गों को हॉर्ट अटैक सर्दी-गर्मी में कभी भी आ सकता है. ठंड का मौसम इसमे कोई वजह नहीं है.
पोल्ट्री एक्सपर्ट और एसोसिएशन के पदाधिकारी कौशलेन्द्र सिंह बताते हैं जब मुर्गा 3.5 किलो से ऊपर का हो जाता है तो उसे चलने-फिरने में परेशानी होती है. वो ज्यादातर एक ही जगह बैठा रहता है. उसी जगह पर खाने को मिल गया तो खा लेता है. हिम्मत हुई तो थोड़ी दूर चलकर पानी भी पी लेता है. नहीं तो ऐसे ही भूखा पड़ा रहता है. कुछ इसी तरह के हालात में मुर्गों को हॉर्ट अटैक आ जाता है. या फिर कुछ मामलों में मुर्गा भूख से भी मर जाता है.
पोल्ट्री एक्सपर्ट मनीष शर्मा का कहना है कि 15 दिन का ब्रॉयलर मुर्गा 500 से 600 ग्राम का हो जाता है. 15 दिन के बाद मुर्गे की भूख और खुल जाती है. इसके बाद उसे दिन तो दिन रात में भी खाने के लिए कुछ न कुछ चाहिए होता है. यही वजह है कि 30 दिन में ब्रॉयलर मुर्गा 900 से 1200 ग्राम तक का हो जाता है. इस वजन का मुर्गा तंदूरी चिकन के काम आता है. वहीं 35 दिन का ब्रॉयलर मुर्गा 2 किलो और 40 दिन का मुर्गा 2.5 किलो तक का हो जाता है. इस वजन तक के मुर्गे की बाजार में अच्छी खासी डिमांड रहती है. लेकिन 2.5 किलो के बाद का मुर्गा मोटा और 3 किलो से ऊपर वजन का मुर्गा सुपर मोटा की कैटेगिरी में आ जाता है. इस वजन का मुर्गा सस्ता हो जाता है, लेकिन उसकी डिमांड ज्यादा नहीं रहती है.
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