Indian Horse: इंटरनेशनल गेम्स में छलांग भरेंगे मारवाड़ी और काठियावाड़ी घोड़े, पढ़ें डिटेल Indian Horse: इंटरनेशनल गेम्स में छलांग भरेंगे मारवाड़ी और काठियावाड़ी घोड़े, पढ़ें डिटेल
Indian Horse Disease विदेशों में अब भारतीय घोड़ों की बोली लगेगी और इंटरनेशनल गेम्स में ये घोड़े हिस्सा भी लेंगे. एक और खास बात ये है कि इन घोड़ों को विदेशी जमीन पर कदम रखने से पहले अब क्वारंटाइन भी नहीं होना पड़ेगा. और ये सब मुमकिन हुआ है डीजीज फ्री जोन घोषित होने के चलते. डीजीज फ्री जोन में पलने वाले घोड़े भी एक्सपपोर्ट हो सकेंगे.
नासिर हुसैन - New Delhi,
- Dec 09, 2025,
- Updated Dec 09, 2025, 11:41 AM IST
Indian Horse Disease मारवाड़ी और काठियावाड़ी घोड़े भी अब इंटरनेशनल गेम्स का हिस्सा बनेंगे. विदेशी धरती पर जाकर छलांग भरेंगे. अब भारतीय घोड़ों को क्वारंटाइन में लंबा वक्त नहीं बिताना होगा. कागजी कार्रवाई की लंबी प्रक्रिंया से भी नहीं गुजरना होगा. भारत में घोड़ों की सात नस्ल रजिस्टर्ड हैं. कुछ को खेलों के लिए पाला जाता है तो कुछ पहाड़ी और ठंडे इलाकों में सामान के साथ यात्रा करने के लिए पाले जाते हैं. एक नस्ल ऐसी भी है जिसे उसकी ऊंची कद-काठी और फुर्ती के चलते शौक के लिए पाला जाता है. लेकिन अभी कुछ महीने पहले तक विदेशों में इन घोड़ों की एंट्री नहीं थी.
लेकिन अब इन घोड़ों की बोली भी लगेगी और इंटरनेशनल गेम्स में ये घोड़े हिस्सा भी लेंगे. और ये सब मुमकिन हुआ है डीजीज फ्री जोन घोषित होने के चलते. डीजीज फ्री जोन में पलने वाले घोड़े भी एक्सपपोर्ट हो सकेंगे. भारत में मारवाड़ी, काठियावाड़ी, स्पीती, जंसकारी और मणिपुरी आदि सात नस्ल के घोड़े हैं. अभी तक इन घोड़ों की खूबसूरती और काबलियत सिर्फ भारत तक ही सीमित थी. दूसरे देशों में रहने वाले घोड़ों के शौकीन लोग इन्हें खरीद सकेंगे.
ये है मारवाड़ी-काठियावाड़ी की खासियत
- मारवाड़ी घोड़ों को मुख्य रूप से सवारी और खेल के लिए पाला जाता है. देश में यह सबसे ऊंचे और लम्बे घोड़े की भारतीय नस्ल है.
- कठियावाड़ी नस्ल गुजरात के सौराष्ट्र की है. इसके अलावा यह राजकोट, अमरेली और जूनागढ़ जिलों में भी मिलते हैं. इसका रंग ग्रे और गर्दन लंबी होती है. मारवाड़ी नस्ल जैसा ही कीमती होता है.
- स्पीती घोड़े कम चारे पर, कम तापमान वाले पहाड़ी इलाकों और ऊंची, लंबी दूरी की यात्रा के लिए इन्हें बहुत अच्छा माना जाता है. ये घोड़े कद में छोटे होते हैं.
- जंसकारी घोड़े पहाड़ों पर सवारी और सामान ढोने के काम आते हैं. लेह-लद्दाख में बहुत हैं. संख्या कम होने के चलते इनकी नस्ल बचाने पर काम चल रहा है. कारगिल की लड़ाई में इनका बड़ा योगदान रहा था.
- मणिपुरी नस्ल के घोड़ों को पोलो खेल में इस्तेमाल होने के चलते इन्हें पोलोपोनी भी कहा जाता है. इस नस्ल के घोड़े काफी ताकतवर और फुर्तीले होते है. यह एक ऐसी नस्ल है जो 14 अलग-अलग रंगों में पाई जाती है.
- भूटिया नस्ल के घोड़े सिक्किम और दार्जिलिंग इलाके में पाए जाते हैं. इनका इस्तेमाल मुख्य रूप से घुड़दौड़ और सामान ढोने के लिए किया जाता है. इस नस्ल के घोड़े ज्यादातर नार्थ-ईस्ट में मिलते हैं.
- कच्छी-सिंधी घोड़े की नस्ल रेगिस्तानी इलाके की है. इस नस्ल के घोड़े गुजरात के कच्छ और राजस्थान के जैसलमेर-बाड़मेर में खुद को बड़ी आसानी से ढाल लेते हैं. दूसरे घोड़ों के मुकाबले यह ज्यादा से ज्यादा गर्मी को भी सहन कर लेते हैं.
घोड़ों को इसलिए विदेशों में मिलेगी एंट्री
- विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (WOAH) ने इसकी अनुमति दे दी है.
- घोड़ों के संबंध में होने वाले एक्सपोर्ट मार्केट के रास्ते भी खुल जाएंगे.
- रिमाउंट पशु चिकित्सा कोर (RVC) केंद्र और कॉलेज, को ये कामबायी मिली है.
- रिमाउंट पशु चिकित्सा कोर मेरठ छावनी यूपी में है.
- आरवीसी को घोड़ों की बीमारी के संबंध में मान्यता दी है.
- इस सेंटर को घोड़ों की बीमारियों के संबंध में डीजीज फ्री घोषित किया गया है.
- यानि की आरवीसी के घोड़ों में ऐसी कोई बीमारी नहीं है जो सभी घोड़ों को होती हैं.
- यहां के घोड़े ग्लैंडर्स, सुर्रा और इक्विन इन्फ्लूएंजा समेत आधा दर्जन बड़ी बीमारियों से फ्री हैं.
- घोड़ों में ग्लैंडर्स, सुर्रा और इक्विन इन्फ्लूएंजा जैसी बीमारियां खतरनाक मानी जाती हैं.
- ये बीमारियां न सिर्फ घोड़ों बल्कि इंसानों के लिए भी खतरनाक होती हैं.
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