खासतौर पर दूध देने वाले पशुओं के लिए हरा चारे को संजीवनी बूटी के तौर पर देखा जाता है. लेकिन क्याौ आपको पता है कि हरे चारे में दवाईयों के भी गुण मौजूद हैं. ऐसे बहुत सारे पेड़-पौधे हैं जिनके हरे पत्तेर खिलाने के बाद बकरियों को दवाई खिलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इन पेड़-पौधों की पत्ति्यों में ही प्राकृतिक रूप से दवाईयों के गुण मौजूद हैं. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थानन (सीआईआरजी), मथुरा के साइंटिस्ट का कहना है कि इसी गुण के चलते बकरी बीमार होने पर खुद ही उस पेड़-पौधे की पत्तियों को खा लेती हैं.
वहीं ऐसे फार्म जहां बकरियों को खुले में चरने का मौका नहीं मिलता है वहां आप उन्हें समय-समय पर चारे के रूप में नीम, अमरुद, जामुन, मोरिंगा और बेल आदि खिलाकर कई तरह की बीमारियों को दूर रख सकते हैं. साइंटिस्ट की मानें तो बकरियां जमीन पर पड़ी पत्ती खाने के बजाए सीधे पेड़-पौधों से तोड़कर खाने में ज्यादा यकीन रखती हैं.
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सीआईआरजी की सीनियर साइंटिस्ट नीतिका शर्मा ने किसान तक को बताया कि अमरुद,नीम और मोरिंगा में टेनिन कांटेंट और प्रोटीन की मात्रा बहुत होती है. अगर वक्त पर हम तीनों पेड़-पौधे की पत्तियां बकरियों को खिलाते हैं तो उनके पेट में कीड़े नहीं होंगे. पेट में कीड़े होना बकरे और बकरियों में बहुत ही परेशान करने वाली बीमारी है. पेट में अगर कीड़े होंगे तो उसके चलते बकरे और बकरियों की ग्रोथ नहीं हो पाएगी. पशुपालक जितना भी बकरे और बकरियों को खिलाएगा वो उनके शरीर को नहीं लगेगा. खासतौर पर जो लोग बकरियों को फार्म में पालते हैं और स्टाल फीड कराते हैं उन्हें इस बात का खास ख्याल रखना होगा.
अगर आप बकरे-बकरियों को फार्म में पालते हैं. उन्हें खुले मैदान और जंगल में चरने का मौका नहीं मिल पाता है. नीम, अमरुद, जामुन, मोरिंगा आदि पेड़-पौधे की पत्तियां आपको आसपास नहीं मिल पाती हैं तो इसमे परेशान होने की बात नहीं है. सीआईआरजी ऐसे पत्तोंा की दवाई बाजार में बेच रहा है.
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साइंटिस्ट नीतिका शर्मा ने बताया कि अगर हम खुले मैदान में या फिर किसी जंगल में जाएं तो हमे नीम गिलोय दिख जाएगा. यह नीम के पेड़ पर ही पाया जाता है. शायद इसीलिए इसे नीम गिलोय भी कहा जाता है. स्वाद में यह कड़वा होता है. अगर हम नीम गिलोय की पत्तियां बकरी के बच्चों को खिलाएं तो उनके शरीर में बीमारियों से लड़ने की ताकत आ जाएगी. यह बच्चे जल्द ही बीमार भी नहीं पड़ेंगे. जिसके चलते पशुपालक बकरियों की मृत्य दर को कम कर सकेंगे. यह हम सभी जानते हैं कि बकरी पालन में सबसे ज्यादा नुकसान बकरी के बच्चों की मृत्य दर से ही होता है.
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