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पोल्ट्री और सूअर पालन में भी मददगार है वेस्ट डी-कंपोजर, ऐसे उठा सकते हैं लाभ

पोल्ट्री और सूअर पालन में भी मददगार है वेस्ट डी-कंपोजर, ऐसे उठा सकते हैं लाभ

डी-कंपोजर एक पर्यावरण-अनुकूल समाधान है, जो पौधों के विकास को बढ़ावा देकर मिट्टी के स्वास्थ्य और उर्वरता को बहाल करने में मदद करता है. यही वजह है कि डी-कंपोज खाद खेती में तेजी से लोकप्रिय समाधान बनता जा रहा है. अब तो मार्के में डी-कंपोज खाद की बिक्री भी होती है.

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सूअर के कचरे को भी खेती में कर सकते हैं उपयोग. (सांकेतिक फोटो) सूअर के कचरे को भी खेती में कर सकते हैं उपयोग. (सांकेतिक फोटो)

कचरे को खाद बनाने में वेस्ट डी-कंपोजर का बड़ा रोल है. यह जैविक कचरे को सड़ा-गला कर खाद में बदल देता है. तभी आजकल वेस्ट-डीकंपोजर की मांग बढ़ती जा रही है. सरकार भी इसे बढ़ावा दे रही है, क्योंकि इससे पराली जैसी समस्या से आसानी से निजात मिल रही है. इस डी-कंपोजर का प्रयोग पोल्ट्री से लेकर सूर या पशुपालन में बड़े पैमाने पर हो रहा है. पशुपालन से निकले कचरे को डी-कंपोजर की मदद से जैविक खाद में बदल सकते हैं, वह भी बेहद कम खर्च में. इन कचरों को आप खेत में डाल सकते हैं और उस पर वेस्ट डी-कंपोजर डाल कर उसे खाद में परिवर्तित कर सकते हैं. इससे फसलों को सस्ते में जैविक खाद मिल जाएगी.

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मिट्टी की बनावट में होता है सुधार

डी-कंपोजर की मदद से बनाए गए कंपोस्ट को प्राकृतिक उर्वरक भी कहा जाता है. यह कम्पोस्ट उत्पादन एक उत्कृष्ट जैविक उर्वरक के रूप में कार्य करता है, जो नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है. यह उर्वरक मिट्टी के स्वास्थ्य और फसल की पैदावार में सुधार करता है. यह मिट्टी की संरचना और नमी बनाए रखने को बढ़ाता है. साथ ही कम्पोस्ट से कार्बनिक पदार्थ मिट्टी के कणों से जुड़ते हैं और पानी और पोषक तत्वों को बेहतर बनाए रखने में मदद करते हैं. इससे मिट्टी की बनावट और पौधों की वृद्धि में सुधार होता है.

किस तरह तैयार करें डी-कंपोज

फसल अवशेषों को भी डी-कंपोजर की मदद से जैविक खाद बनाया जा सकता है. अगर आप चाहें, तो फसल के बचे हुए डंठल, तने और पत्तियों को अपशिष्ट डीकंपोजर इकाई में डालकर खाद बना सकते हैं. इसके अलावा मवेशियों, मुर्गी और सूअरों के बेकार चारे को भी डी-कंपोजर से खाद बनाया जा सकता है. अगर आप चाहें, तो खराब हो चुके पशु आहार को भी कंपोस्ट के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. साथ ही खरपतवार, चारे, पराली और गीली घास को भी डी-कंपोस्ट कर खाद बनाया जा सकता है. इसके लिए इन्हें कुछ समय के लिए मिट्टी में दबाना होगा. इससे मिट्टी की नमी को संरक्षित करने में मदद मिलेगी.

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