Jharkhand News: चांडिल डैम में शुरू हुई मोती की खेती, सरकार से किसानों ने मांगी मार्केटिंग की सुविधा

Jharkhand News: चांडिल डैम में शुरू हुई मोती की खेती, सरकार से किसानों ने मांगी मार्केटिंग की सुविधा

चांडिल जलाशय में पर्यटकों की भीड़ उमड़ने लगी है. लोगों को यह नई चीज देखने को मिल रही है. क्रेज कल्चर के जरिए जलाशय में मोती की खेती. इसमें पहले मछली पालन किया जाता था. अब विस्थापित लोग डैम में मोती की खेती करने लगे हैं. 

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Jharkhand News: चांडिल डैम में शुरू हुई मोती की खेती, सरकार से किसानों ने मांगी मार्केटिंग की सुविधाPearl Farming

चांडिल डैम में विस्थापित लोगों ने पहली बार मोती की खेती शुरू की. पहले डैम के विस्थापित लोग यहां केवल मछली पालन करते थे. एक बार एक पर्यटक ने उन्हें जलाशय में मोती की खेती के लिए तैयार किया और प्रशिक्षण लेने के बाद उन्होंने सबसे पहले जमशेदपुर के आसपास के स्थानों से शिप खरीदी और पहली बार 15 हजार सीप तैयार कर पानी में छोड़ दी.

चांडिल जलाशय में पर्यटकों की भीड़ उमड़ने लगी है. लोगों को यह नई चीज देखने को मिल रही है. क्रेज कल्चर के जरिए जलाशय में मोती की खेती. इसमें पहले मछली पालन किया जाता था. अब विस्थापित लोग डैम में मोती की खेती करने लगे हैं. 

इन तरह की जा रही मोती की खेती

चांडिल डैम में 116 गांवों के 84 मौजा विस्थापित हुए थे. ग्रामीण विस्थापन के शिकार लोगों ने एक समिति बनाकर पहले मछली पालन किया और फिर अपना रोजगार बढ़ाने के लिए मोती की खेती शुरू की. चांडिल बांध जलाशय नौकायन में 15 हजार मोती के गोले छोड़े गए. इसे ठंड में छोड़ कर अच्छी गुणवत्ता के मोती शंख तैयार किए जा रहे हैं. सीप को कई जगहों से लाया जाता है, फिर उसके अंदर बीज डाला जाता है. फिर सीप का मुंह खुलता है और उसे कैंची से बाहर निकाला जाता है. इस बार सीप के अंदर दो तरह की न्युकेलाशी डाली गई हैं जो डेढ़ साल में बनकर तैयार होती हैं. सिर्फ मार्केटिंग की जरूरत है, सरकार की ओर से अब तक मार्केटिंग की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करायी गयी है.

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22000 हजार हेक्टेयर में हो रहा मछली पालन

मछली पालन के साथ-साथ मोती पालन भी अच्छी आय का जरिया बन गया है. इसे देखकर विस्थापित किसानों ने जलाशयों के अंदर और खुले में मोती की खेती शुरू की है. आज 22000 हजार हेक्टेयर जलाशय में मछली पालन किया जाता है. उन्हीं जलाशय में शिप को एक बैग के अंदर 24 सीपियाँ डालकर रखा जाता है और फिर उन्हें 15 से 20 फीट की गहराई में पानी में छोड़ दिया जाता है. चांडिल जलाशय में मोती की खेती प्राकृतिक रूप से सीप के अंदर न्यूक्लियस (नाभिक) रखकर की जाती है, जिससे एक से डेढ़ साल में प्राकृतिक रूप से मोती तैयार हो जाता है.

एक लाख मोती तैयार करने का लक्ष्य

आज हमारे पास मोती तो हैं लेकिन मार्केटिंग की सुविधा नहीं है. यहां मोती केवल पर्यटकों के आने पर ही बिकते हैं. जिसकी लागत मात्र 500 रुपये है. हम चांडिल डैम में मछली पालन करते हैं. एक दिन एक पर्यटक यहां आया, उसने मछली पालन देखा और हमसे मोती की खेती के बारे में बात की. हमें रांची में ट्रेनिंग दी गयी. वहां से वापस आकर हमने 15 हजार मोती तैयार कीं. हम और अधिक कर सकते थे, लेकिन हम यह देखना चाहते थे कि इस पानी में मोती की खेती की जा सकती है या नहीं. बाज़ार की कोई जानकारी भी नहीं है. पर्यटक आते हैं और इसे ले जाते हैं. अगली बार एक लाख मोती तैयार करने का लक्ष्य है.

किसानों ने सरकार से मांगी मदद!

यहां डैम में पहली बार मोती की खेती की गई है. हम आसपास के इलाकों से सीप लाते हैं और फिर उसमें बताई गई तकनीक से बीज डाले जाते हैं. हमें नहीं पता था कि यहां के पानी में इसे तैयार किया जा सकता है. हमारे पास बाजार नहीं है, अगर सरकार कोई मदद कर दे तो हम नये रोजगार से जुड़ जायेंगे. जब हम पहली बार यहां आए तो देखा कि यहां मछली पालन के साथ-साथ मोती की खेती भी हो रही है. यह देख काफी अच्छा लगा. (अनूप सिन्हा की रिपोर्ट)

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