पशु कितना दूध देगा या कितना नहीं देगा ये सब कुछ उसके खानपान पर निर्भर करता है. जितना अच्छा मतलब हरा चारा, सूखा चारा और मिनरल मिक्चर पशु को खाने में दिया जाएगा पशु उतना ही ज्यादा और अच्छी फैट वाला दूध देगा. लेकिन इसके साथ ही मौसम के हिसाब से किया जाने वाला पशुओं का रखरखाव भी उनके दूध उत्पादन को काफी हद तक प्रभावित करता है. किसी भी परेशानी के चलते अगर पशु तनाव में है तो समझ लिजिए कि उसका दूध उत्पादन घटना तय है.
इसलिए ये जरूरी है कि मौसम गर्मी-सर्दियों का हो या फिर मॉनसून का एनिमल एक्सपर्ट के मुताबिक पशुओं की देखभाल बहुत जरूरी है. ऐसा करने से उत्पादन तो बढ़ता ही है, साथ में पशु तमाम तरह की छोटी-बड़ी बीमारियों से भी बचा रहता है. जिससे पशुपालक इलाज के अतिरिक्त खर्चे से बच जाता है और उसकी उत्पादन लागत नहीं बढ़ती है.
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पशु शेड की छत मजबूत हो और पानी का रिसाव नहीं हो रहा हो.
हरा चारा खिलाने से पहले काटकर धूप में सुखाना चाहिए.
मॉनसून में पशुओं को खिलाने के लिए फीड ब्लॉक बेहतर उपाय है.
मॉनसून के दौरान पशुओं के पेट में निमेटोड, ट्रेमेटोड और सेस्टोड कीड़े हो जाते हैं.
बारिश की शुरुआत, बीच में और आखिर में पशुओं को पेट के कीड़ों की दवाई देनी चाहिए.
पशु शेड के पास सभी झाड़ियों और पौधों को काटकर साफ कर देना चाहिए.
घावों या कटी हुई चोटों को लोशन से धोने के साथ ही उन पर मलहम लगाना चाहिए.
पशु फार्म को बैक्टीरिया रहित बनाने के लिए कीटाणुनाशक दवाईयों का इस्तेमाल करना चाहिए.
चारा और उससे जुड़ी तमाम चीजों को बारिश या नमी से बचाने के लिए सूखी जगह रखना चाहिए.
बारिश के मौसम में दूध देने वाले पशुओं को चोट-संक्रमण से बचाना चाहिए.
बरसात के मौसम में पशुओं का टीकाकरण कराया जाना चाहिए
बरसात के दौरान पशुओं को खुले मैदान और खेत में नहीं चारा चाहिए.
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मॉनसून के मौसम का चारा हो या घास उसमे पानी की मात्रा ज्यादा होती है.
पशुओं के पीने के लिए साफ, पीने योग्य और ताजा पानी होना चाहिए.
पशुओं को अधिक दूध देने वाले हरे चारे के साथ सूखा चारा भी दिया जाना चाहिए.
पशुओं को खेत में जमा लाल पानी या कीचड़ वाला पानी नहीं पीने देना चाहिए.
प्रदूषित पानी पीने से पशुओं को सर्दी, दस्त, ब्लैक क्वार्टर समेत कई बीमारी हो सकती हैं.
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