प्रतीकात्मक फोटो.Halal Certificate Issue सिर्फ मीट ही नहीं खाने-पीने की वस्तु समेत इस्तेमाल करने वाली चीजों पर हलाल का नियम लागू होता है. लेकिन, अगर मीट की बात करें तो इस पर हलाल के नियमों को लेकर बहुत बारिकी से नजर रखी जाती है, खासतौर पर भारत में. सोशल मीडिया समेत दूसरी जगहों पर भी ऐसा भ्रामक प्रचार किया जाता है कि मशीन से होने वाली स्लॉटरिंग का मीट हलाल नहीं होता है. लेकिन मीट एक्सपर्ट के मुताबिक ये दावा गलत है. सोशल मीडिया पर ऐसे लोग ये दावा करते हैं जिन्हें हाईटेक तरीके से होने वाली स्लॉटरिंग के बारे में एबीसीडी भी नहीं पता है.
जबकि हकीकत ये है कि स्लॉटरिंग और मीट प्रोसेसिंग यूनिट में इस्तेमाल होने वाली मशीनों की टाइमिंग भी हलाल के नियमों के मुातबिक सेट की जाती है. बड़ी बात ये है कि अगर मशीनों की टाइमिंग हलाल के हिसाब सेट नहीं की गई होती है तो उस स्लॉटर और मीट प्रोसेस कंपनी को सर्टिफिकेट नहीं दिया जाता है. हलाल के नियमों के मुताबिक कंपनी में भेड़-बकरी या मुर्गे को हलाल (काटने) करने वाला कर्मचारी मुस्लिम होता है.
स्लॉटरिंग और चिकन प्रोसेसिंग यूनिट से जुड़े एक्सपर्ट ने बताया कि हलाल सर्टिफिकेट के मुताबिक एक मुर्गे को काटने के बाद 3.45 मिनट तक हवा में लटका कर रखना होता है, जिससे की उस मुर्गे का ब्लड पूरी तरह से बाहर निकल जाए. इसलिए मशीन की टाइमिंग इस तरह सेट की जाती है कि मुर्गा काटने के बाद तय वक्त तक मशीन के हैंगर से हवा में ही घूमता रहता है. जब टाइम पूरा हो जाता है तो उसे अगली प्रोसेसिंग के लिए भेजा जाता है. हलाल के इन सभी नियमों का पालन किया जा रहा है या नहीं, ये देखने के लिए हलाल कमेटी के एक्सपर्ट यूनिट का दौरा करते रहते हैं. मशीन की टाइमिंग को भी चेक करते हैं.
एक्सपर्ट का कहना है कि मुर्गे को काटने के लिए मुस्लिम स्टाफ रखा जाता है. ये कर्मचारी हलाल नियमों के मुताबिक छूरी की मदद से हाथ से ही मुर्गे की गर्दन काटता है. इस दौरान ये कर्मचारी पूरी तरह से हलाल के नियमों का पालन करता है. बिना इस नियम का पालन किए हलाल का सर्टिफिकेट नहीं मिलता है.
हरियाण की वीटा डेयरी हलाल दूध भी बेचती है. लेकिन ये सारा दूध एक्सपोर्ट होता है. इंडोनेशिया और मलेशिया की कंपनी ह दूध खरीदती हैं. लेकिन इस सौदे पर आखिरी मुहर तभी लगती है जब हम उन्हें हलाल दूध का सर्टिफिकेट दिखाया जाता है.
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