
लद्दाखी नस्ल के मवेशी उच्च ऊंचाई वाले रेगिस्तानी क्षेत्र में वहां पाए जाते हैं जहां पानी का मुख्य स्रोत पहाड़ों पर शीतकालीन बर्फबारी होती है. इस नस्ल के मवेशियों का मूल निवास स्थान जम्मू-कश्मीर का लेह-लद्दाख क्षेत्र है, और इनका प्रजनन क्षेत्र जम्मू-कश्मीर के लेह और कारगिल जिलों में और उसके आसपास है. इस नस्ल के मवेशी ठंडी जलवायु और हाइपोक्सिक (ऑक्सीजन आपूर्ति में कमी) स्थितियों में भी आसानी से रह लेते हैं. इसके अलावा, इस नस्ल के मवेशी जल्दी बीमार नहीं पड़ते हैं, क्योंकि इस नस्ल के मवेशियों का रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होता है. इस गाय का पालन करना छोटे पशुपालकों के लिए लाभकारी होता है.
आमतौर पर लद्दाखी नस्ल के मवेशियों को दूध, चारा और खाद के लिए पाला जाता है. लद्दाखी गाय का दूध, A2 दूध का बहुत अच्छा स्रोत होता है. वहीं, यह गाय प्रति दिन लगभग 2 से 5 लीटर तक दूध देती है. इस नस्ल का दूध स्थानीय लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण प्रोटीन स्रोत के रूप में काम करता है, खासकर कम सर्दियों के दौरान. चूंकि इस गाय के दूध में वसा का प्रतिशत अधिक होता है, इसलिए इसका उपयोग मक्खन और चुरपी बनाने के लिए किया जाता है - जो स्थानीय भोजन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. ऐसे में आइए लद्दाखी गाय की पहचान और विशेषताएं जानते हैं-
• लद्दाखी नस्ल के मवेशी छोटे आकार और छोटे कद के होते हैं.
• इस नस्ल के मवेशी ज्यादातर काले रंग के होते हैं, लेकिन भूरे रंग के भी देखे जाते हैं.
• सींग थोड़े ऊपर और आगे की ओर मुड़े हुए होते हैं, जो नुकीले सिरों पर समाप्त होते हैं.
• माथा सीधा, छोटा और बालों वाला है और चेहरा थोड़ा लंबा होता है.
• थन आकार में छोटा और कटोरे के आकार का होता है.
• बैल और गाय दोनों की शरीर की लंबाई औसतन 88 से 89 सेमी होती है.
• बैल और गाय दोनों की ऊंचाई औसतन 93 सेमी होती है.
• प्रथम ब्यांत के समय औसत आयु 48 महीने होती है.
• दूध की पैदावार की क्षमता प्रतिदिन लगभग 2 से 5 लीटर होती है.
• दूध में वसा का औसत 5.24 प्रतिशत होता है.
इसे भी पढ़ें- Ghumusari Cow: घुमुसारी नस्ल के मवेशी जल्दी नहीं पड़ते हैं बीमार, जानें- पहचान और विशेषताएं
आमतौर पर लद्दाखी नस्ल की गाय जल्दी बीमार नहीं पड़ती है. वहीं लद्दाखी नस्ल की गाय को होने वाली बीमारियों की बात करें तो पाचन प्रणाली की बीमारियां, जैसे- सादी बदहजमी, तेजाबी बदहजमी, खारी बदहजमी, कब्ज, अफारे, मोक/मरोड़/खूनी दस्त और पीलिया आदि होने की आशंका होती है, जबकि रोगों की बात करें तिल्ली का रोग (एंथ्रैक्स), एनाप्लाज़मोसिस, अनीमिया, मुंह-खुर रोग, मैग्नीशियम की कमी, सिक्के का जहर, रिंडरपैस्ट (शीतला माता), ब्लैक क्वार्टर, निमोनिया, डायरिया, थनैला रोग, पैरों का गलना, और दाद आदि होने की आशंका होती है.
Copyright©2025 Living Media India Limited. For reprint rights: Syndications Today