हर एक पशु-पक्षी का दाना और चारा खाने और चुगने का अपना तरीका होता है, ठीक वैसे ही मछलियों का भी अपना तरीका है. पढ़ने में शायद आपको अटपटा लगे, लेकिन यह हकीकत है कि तालाब में दाना खाने के लिए ब्रीड के हिसाब से मछलियों की अपनी एक तय जगह होती है. जब आप तालाब में मछलियों के लिए दाना डालते हैं तो वो अपनी-अपनी जगह पर आ जाती हैं. जैसे आपके तालाब में तीन तरह की मछलियां हैं तो तीनों ही अपनी-अपनी जगह आकर घूमने लगती हैं. कोई भी एक-दूसरे के इलाके में नहीं जाती है.
मछली पालक शरीफ अली का कहना है, खाने के लिए रोहू मछली बहुत पसंद की जाती है. इसके मीट में बहुत स्वाद होता है. इसका मीट नरम भी होता है. यूपी, दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में रोहू की डिमांड पूरी करने के लिए तालाबों में बहुत पाली जाती है. जब तालाब में मछलियों के लिए दाना डाला जाता है तो रोहू तालाब की तली से दो फुट ऊपर और तालाब की सतह से दो फुट नीचे बीच में आकर दाना खाती है.
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नरेन मछली को नॉर्थ इंडिया में नैनी के नाम से भी जाना जाता है. पेट भरने के लिए नैनी तालाब के तले में रहकर ही इंतजार करती है. बेशक मछली पालक दाना डालने में कितनी ही देर कर दे, लेकिन नैनी तालाब की सतह पर जाकर दाने की तलाश नहीं करती है. वैसे भी नैनी को तालाब की तली में ही रहना ज्यादा पसंद है.
नॉर्थ इंडिया में रोहू के बाद खाने के लिए अगर किसी और मछली को पसंद किया जाता है तो वो कतला है. फिश फ्राई में भी कतला मछली का खासा चलन है. बाजार में एक से डेढ़ किलो वजन की कतला मछली हाथों-हाथ बिकती है. लेकिन अपना पेट भरने के लिए कतला तालाब की सतह पर ही रहकर इंतंजार करती है.
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नदी-समुंद्र में तो मछलियां खुद से पल जाती हैं, लेकिन इसके अलावा तीन और तरीके से मछलियों को पालकर बड़ी इनकम की जा सकती है. जाल लगाकर,घर-खेत में टैंक बनाकर और तालाब खोदकर. सबसे बेहतर तालाब में मछली पालन माना गया है. कम खर्च में ज्यादा मछलियां पल जाती हैं. तालाब में मछलियों की देखभाल भी अच्छी तरह से हो जाती है. और अगर देखभाल सही तरीके से की जाए तो मछलियों में बीमारी भी कम होती है.
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