क्या आपने कभी सोचा है कि चावल की भूसी और दूध की महंगाई में कोई सीधा कनेक्शन हो सकता है? अगर अभी तक नहीं सोचा है तो एक बार गौर कर लें. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि सरकार ने एक ऐसा कदम उठाया है जो बताता है कि चावल की भूसी और दूध की महंगाई में सीधा नाता है. इसका मतलब है कि चावल की भूसी महंगी होगी तो दूध भी महंगा होगा. अभी यही हो रहा है. आंकड़े बताते हैं कि हाल के महीनों में भूसी (Rice Bran) महंगी हुई है जिससे दूध के दाम में भी उछाल आया है. यही वजह है कि सरकार ने भूसी के निर्यात पर रोक लगा दी है.
चावल की भूसी से तेल निकालने के बाद कई तरह के आहार में उसका इस्तेमाल होती है. खासकर पशु आहार और पोल्ट्री फीड में उसका प्रयोग होता है. मछलियों के दाने में भी इसका उपयोग होता है. लेकिन कई महीनों से भूसी के दाम में तेजी देखी जा रही है. कुछ हफ्तों पहले भूसी का दाम 15,000 रुपये टन था जो कि अभी बढ़कर 18,000 से 18,500 रुपये प्रति टन हो गया है. रेट में वृद्धि के पीछे सप्लाई में आ रही तमाम तरह की अड़चनें भी शामिल हैं.
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देश में भूसी का दाम बढ़ने से निर्यात की कीमतें भी तेजी से बढ़ रही थीं. इससे विदेशी बाजारों में पोल्ट्री फीड और पशु आहार की महंगाई बढ़ी है. सरकार ने चावल की भूसी के निर्यात पर इसीलिए प्रतिबंध लगाया क्योंकि देश में भी इसकी महंगाई बढ़ रही थी. इस महंगाई का सीधा असर दूध के दाम में वृद्धि और पोल्ट्री से जुड़े प्रोडक्ट की महंगाई के रूप में देखा जा रही है. इसी वजह से सरकार ने चावल की भूसी का निर्यात बंद कर दिया है.
पिछले तीन साल में दूध का खुदरा मूल्य 22 परसेंट तक बढ़ा है जबकि एक साल में यह वृद्धि 10 फीसद की है. इसके पीछे कई वजहें बताई जा रही हैं. मसलन चारे की महंगाई, दाने के बढ़े रेट जिसमें भूसी का महंगा होना भी शामिल है. इसके अलावा, कोविड के दौरान ऑक्सीजन सिलेंडर की कमी रही जिससे पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान कम हुआ. इससे बछड़े कम पैदा हुए और दूध की मात्रा घट गई. सप्लाई घटने और और मांग के बढ़ने से दूध के दाम में तेज वृद्धि दर्ज की गई.
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भूसी के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से पहले सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर रोक लगाई थी. उससे पहले टुकड़ा चावल पर रोक और इंपोर्ट ड्यूटी लगाने जैसे कदम उठाए गए थे. इन सभी कदमों के पीछे वजह यही है कि सरकार चावल की महंगाई को कम रखना चाहती है. इसके लिए ओपन मार्केट सेल स्कीम के अंतर्गत सफेद चावल की खुले बाजार में बिक्री की जा रही है. सरकार ने इसके लिए 31 रुपये की दर निर्धारित की है. हालांकि इन सभी कदमों के बावजूद महंगाई बहुत कम होती नहीं दिख रही है.
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