Cow-Buffalo Care: गाय-भैंस से जल्द दोबारा बच्चा चाहिए तो पहचान लें ये लक्षण और तुरंत कराएं इलाज
Pregnancy of Cow-Buffalo आमतौर पर पशुपालक बच्चा होने के तीन-चार घंटे बाद ही गाय-भैंस से नजर हटा लेते हैं. गाय-भैंस के बच्चा देने और जेर गिरने के बाद पशुपालक दूसरे काम में लग जाते हैं. गाय-भैंस की तरफ उनका कोई ध्यान नहीं रहता है. और यही लापरवाही उन्हें भारी पड़ती है. इससे पशु के बांझ होने और उत्पादन कम होने का खतरा बढ़ जाता है.
Pregnancy of Cow-Buffalo गाय-भैंस ने पहला बच्चा वक्त से बिना किसी परेशानी के दे दिया है तो इसका ये कतई मतलब नहीं है कि दोबारा भी इसी तरह से जल्दी बच्चा हो जाएगा. एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो गाय-भैंस में बच्चा देने से जुड़ी बहुत सारी परेशानियां तो पहला बच्चा होने के बाद ही आती हैं. इसलिए पहला बच्चा होने के बाद आराम से न बैठें. बच्चा होने के करीब तीन दिन तक बच्चा देने वाली गाय-भैंस की अच्छी तरह से देखभाल करें. इतना ही नहीं कुछ ऐसे लक्षण हैं जो खासतौर से इन तीन दिनों में दिखाई देते हैं. जैसे ही ये लक्षण दिखाई दें तो फौरन ही डॉक्टर से सलाह कर गाय-भैंस का इलाज कराएं.
वर्ना छोटी-छोटी सी दिखाई देने वाली ये परेशानियां आगे चलकर गाय-भैंस को बांझ तक बना सकती हैं. क्योंकि हर एक पशुपालक की चाहत होती है कि उसकी गाय या भैंस हर साल बच्चा दे. हालांकि गाय-भैंस का प्रजनन काल भी ऐसा है कि उससे हर साल एक बच्चा लिया जा सकता है. लेकिन बहुत सारी गाय-भैंस ऐसी होती हैं जो हर साल बच्चा नहीं देती हैं. और जब तक गाय-भैंस बच्चा नहीं देंगी तो उनका दूध उत्पादन भी शुरू नहीं होगा. और पशुपालक की कमाई तभी शुरू होती है जब दूध उत्पादन शुरू होता है.
बच्चा होने के बाद तीन दिन तक जरूरी है देखभाल
बच्चा देने के बाद कुछ भैसों के गर्भाशय में मवाद पड़ जाता है.
मवाद की मात्रा कुछ मिली से लेकर कर्इ लीटर तक हो सकती है.
बच्चा देने के दो महीने बाद तक गर्भाशय में संक्रमण हो सकता है.
मवाद पड़ने पर भैंस की पूंछ के आसपास चिपचिपा मवाद दिखार्इ देता है.
मवाद पड़ने पर भैंस की पूंछ के पास मक्खियां भिनकती रहती हैं.
भैंस के बैठने पर मवाद अक्सर बाहर निकलता रहता है.
मवाद देखने में फटे हुए दूध की तरह या लालपन लिए हुए गाढ़े सफेद रंग का होता है.
पूँछ के पास जलन होने के चलते पशु पीछे की ओर जोर लगा़ते रहते हैं.
जलन ज्यादा होने पर पशु को बुखार हो सकता है.
संक्रमण के चलते भूख कम हो जाती है और दूध सूख जाता है.
इलाज के तौर पर बच्चेदानी में दवार्इ रखी जाती है.
पीडि़त पशु को इंजेक्शन लगाकर भी इलाज किया जाता है.
पीडि़त पशु का इलाज कम से कम तीन से पांच दिन कराना चाहिए.
पूरा इलाज न करवाने पर पशु बांझ हो सकता है.
इस बीमारी के बाद पशु हीट में आए तो पहले डॉक्टरी जांच करा लें.
डॉक्टरी जांच के बाद ही प्राकृतिक या कृत्रिम गर्भाधान कराना चाहिए.
इस बीमारी के बाद हीट के एक-दो मौके छोड़ने पड़ सकते हैं.