इस वर्ष मार्च के अंतिम सप्ताह में ही गर्मी की तपिश बढ़ गई है और तापमान 37 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है. बढ़ते गर्म मौसम के कारण दुधारू पशुओं के दूध उत्पादन के साथ-साथ उत्पादन प्रतिरोधक क्षमता में भी कमी आने की आशंका है. इसलिए पशुपालकों को पशुधन का अधिक ध्यान रखना चाहिए. गर्मी के दिनों में आमतौर पर दूध का उत्पादन कम हो जाता है. पशुपालन विभाग सलाह दे रहा है कि जानवरों को तेज धूप में चरने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए, गर्मी में और गर्म पानी से उन्हें बचाना चाहिए. अगर पशुओं की अच्छी देखरेख होगी तो पशु दूध ज्यादा कम नहीं करेंगे.
कुछ दिनों से गर्मी बढ़ गई है, जवान से लेकर बूढ़े तक पसीने से तरबतर हो रहे हैं. मनुष्यों की तरह पशुधन का स्वास्थ्य भी बढ़ते तापमान से प्रभावित हो रहा है. इसलिए, लोग अपने पशुओं की देखरेख में विशेष सावधानी रखें. 2019 की जनगणना के अनुसार, धाराशिव जिले के भूम तालुक में गाय, बैल, भैंस, बकरी और भेड़ सहित 1 लाख 24 हजार 80 पशुधन हैं. दुधारू पशुओं की संख्या 74 हजार 427 है. इस पशुधन को गर्मियों में विशेष देखभाल की जरूरत होती है.
पशुपालन विभाग सलाह दे रहा है कि पशुपालकों को अपने पशुओं को चरने के लिए तेज धूप में नहीं छोड़ना चाहिए. खूंटियों में पशुओं को कस कर बांधने से बचें. मृत पशुओं का निपटान चरागाह क्षेत्रों में न करें साथ ही पशुओं को ठंडी जगह पर रखें. इससे पशु की सेहत ठीक रहेगी और वो दूध देना कम नहीं करेंगे. पशुधन विकास अधिकारी डॉ. प्रदीप बालवे का कहना है कि इस क्षेत्र में डेयरी उद्योग अधिक प्रचलित होने के कारण पशुधन की संख्या अधिक है.
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बालवे के अनुसार इस समय गर्मी के दिन हैं और इस दौरान पशुओं की भूख कम हो जाती है. सूखा चारा खाने, हिलने-डुलने से शरीर का तापमान बढ़ जाता है, जिससे पशुओं की सांस जोर-जोर से चलने लगती है. पसीना भी बहुत आता है. दूध उत्पादन कम होने के साथ-साथ प्रजनन क्षमता और रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम हो सकती है. इसलिए पशुओं की देखभाल धूप वाले मौसम में बहुत अच्छे से करनी होगी.
जानवरों को सुबह और शाम के समय चरने की अनुमति दी जानी चाहिए. मौसमरोधी शेड का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि शेड में हवा आ सके. छत पर सफेद चूना या पेंट लगाना चाहिए. इस पर गीली घास डालनी चाहिए, इससे सूर्य की किरणों को परावर्तित करने में मदद मिलेगी. जिससे गर्मी का असर काफी कम हो जाएगा. दोपहर के समय गौशाला के चारों ओर बारदाना, शेडनेट लगाना चाहिए.
पशु चिकित्सा अधिकारी ने कहा कि पशुओं को भरपूर मात्रा में ठंडा पानी उपलब्ध कराना चाहिए. कृषि कार्य सुबह या शाम के समय करना चाहिए. आवश्यकतानुसार ही पानी का प्रयोग करना चाहिए. चारा ठंडे वातावरण में खिलाना चाहिए, समय-समय पर टीकाकरण कराना चाहिए. भैंस की त्वचा का रंग काला होने तथा पसीने की ग्रंथियों की कम संख्या के कारण भैंस को गाय की तुलना में गर्मी अधिक लगती है. इसलिए उनकी अधिक देखभाल की जानी चाहिए.
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