सर्दी-गर्मी के मौसम में तो पशुपालक के सामने ये परेशानी होती है कि हरे चारे की कमी है, पशुओं को क्या खिलाएं और क्या ना खिलाएं. हालांकि सभी तरह के चारे की ये कमी और साल के 12 महीने की बन गई है. लेकिन बरसात का मौसम वो वक्त होता है जब हरा चारा तो खूब होता है, लेकिन उसे पशुओं को खिला नहीं सकते हैं. क्योंकि पता होता है कि ये हरा चारा ऐसे ही खिला दिया तो फिर इसे खाकर पशु फिर वो चाहें गाय-भैंस हो या भेड़-बकरी बीमार पड़ जाएंगे.
लेकिन एनिमल एक्सपर्ट की मानें तो पशुओं के लिए हर मौसम में हरा चारा बेहद जरूरी है. अगर हरा चारा नहीं खिलाया तो पशुओं को जरूरी मिनरल्स , प्रोटीन और खास विटामिन नहीं मिल पाएंगे. क्योंकि हरा चारा पशुओं के हैल्थ सुधाने के साथ-साथ दूध की क्वालिटी भी सुधारता है. पशु का होने वाला बच्चा भी हरे चारे की वजह से हेल्दी पैदा होता है. हालांकि बरसात के दौरान भी पशुओं को हरा चारा दिया जा सकता है. लेकिन उसे देने का भी एक तरीका है.
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केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के सीनियर साइंटिस्ट डॉ. अशोक कुमार का कहना है कि हरे चारे में प्रोटीन, मिनरल्स और विटामिन ए होता है. सभी तरह के पशुओं समेत खासतौर पर बकरी को इसकी बहुत जरूरत होती है. हरे चारे में शामिल विटामिन ए ना सिर्फ बकरी के लिए जरूरी होता है बल्कि उसके होने वाले बच्चे के लिए भी. अगर बच्चे में इसकी कमी हो जाए तो उसके शरीर की ग्रोथ रुक जाएगी, सिर बड़ा हो जाएगा और आंखों की परेशानी भी बढ़ जाएगी. आमतौर पर देखा जाता है कि बरसात के मौसम में हरा चारा खूब होता है. गांव ही नहीं शहरों में भी हरा चारा खूब उग आता है.
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लेकिन यही हरा चारा अगर भेड़-बकरियों ने ज्यादा खा लिया तो बकरी को डायरिया यानि दस्त हो जाते हैं और उसमे पोषण की कमी होने लगती है. इसके लिए जरूरी ये है कि बकरियों को जब भी हरा चारा खिलाएं तो उसमे सूखा और दानेदार चारा जरूर शामिल करें. या फिर हरे चारे को थोड़ा सुखाकर खिलाएं. हरा चारा खिलाने के दौरान एक और बात का खास ख्याल रखें कि खासतौर पर रिजका और बरसीम खाने के बाद बकरे-बकरी के पेट में गैस बनने लगती है. यह गैस जल्दी ही पास नहीं होती है. बकरे-बकरी को इससे निजात दिलाने के लिए आप उसे कोई भी खाने वाला तेल 50 एमएल दे सकते हैं. अगर इससे भी ठीक न हो तो खाने के 50 एमएल तेल में पांच एमएल तारपीन का तेल भी मिला सकते हैं.
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