
Gaolao Cow Dairy Farming: गाओलाओ मवेशियों की एक शुद्ध भारतीय नस्ल है, जिसे मुख्य रूप से मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में पाला जाता है. वहीं मध्य प्रदेश में बालाघाट, छिंदवाड़ा, दुर्ग और राजनांदगांव जिले, जबकि महाराष्ट्र के वर्धा और नागपुर जिले में पाला जाता है. गाओलाओ गाय को आर्वी और गॉलगानी गाय के नाम से भी जाना जाता है. इस नस्ल के मवेशियों की कद काठी अच्छी होती है. शरीर पर सफेद से सलेटी रंग होता है. सिर लंबा, कान के आकार मध्यम और सींग छोटे होते हैं. यह गाय प्रति ब्यांत में औसतन 470-725 लीटर दूध देती है. वहीं दूध में 4.32 प्रतिशत वसा की मात्रा होती है. गाओलाओ गाय की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह गाय ज्यादा से ज्यादा तापमान में रह लेती हैं.
इसके अलावा, इस नस्ल के मवेशी कठिन इलाकों में परिवहन के लिए उपयुक्त है. वहीं गाओलाओ गाय जल्दी बीमार नहीं पड़ती है. इस गाय का घी भी बहुत लाभकारी होता है. ऐसे में आइए गाओलाओ गाय की पहचान और विशेषताएं जानते हैं-
• गाओलाओ गाय की औसतन ऊंचाई 113.99 सेमी. होती है, जबकि बैलों की ऊंचाई 128.46 सेमी. होती है.
• गायें सुडौल और सुंदर होती हैं जबकि बैल हृष्ट-पुष्ट होते हैं.
• ये मवेशी सफेद और सलेटी रंग के होते हैं.
• थूथन और खुर काले रंग के होते हैं. बैलों में कूबड़, गर्दन और चेहरे और पीठ के कुछ क्षेत्र काले होते हैं.
• सिर सीधा और लंबा होता है.
• कान के आकार मध्यम होते हैं.
• सींग छोटे होते हैं.
• थन कटोरे के आकार का और मध्यम आकार का होता है.
• दूध की नस उभरी हुई लेकिन दिखने में मध्यम होती है.
• बैलों की शरीर की लंबाई औसतन 103.92 सेमी. और गायों की 96.05 सेमी. होती है.
• बैल के शरीर का वजन औसतन 400-450 किलोग्राम और गाय का वजन 300-350 किलोग्राम होता है.
• गाओलाओ नस्ल की गाय एक ब्यान्त में अधिकतम 725 लीटर तक दूध देती है.
• औसतन न्यूनतम एक ब्यान्त में 470 लीटर तक दूध देती है.
• दूध में औसतन वसा 4.32 प्रतिशत पाया जाता है.
• प्रथम ब्यांत के समय औसत आयु 4 से 4.5 वर्ष होती है.
• इस नस्ल का ब्यांत अंतराल 1 से 1.25 वर्ष होता है.
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आमतौर पर गायों की कीमत उम्र, ब्यान्त, दूध देने की क्षमता और बाहरी बनावट इत्यादि बातों पर निर्धारित होती है. वहीं गाओलाओ गाय की औसत कीमत 20 हजार से 40 हजार रुपये तक होती है.
अगर गाओलाओ नस्ल की गाय को होने वाली बीमारियों की बात करें तो पाचन प्रणाली की बीमारियां, जैसे- सादी बदहजमी, तेजाबी बदहजमी, खारी बदहजमी, कब्ज, अफारे, मोक/मरोड़/खूनी दस्त और पीलिया आदि होने की आशंका होती है, जबकि रोगों की बात करें तिल्ली का रोग (एंथ्रैक्स), एनाप्लाज़मोसिस, अनीमिया, मुंह-खुर रोग, मैगनीश्यिम की कमी, सिक्के का जहर, रिंडरपैस्ट (शीतला माता), ब्लैक क्वार्टर, निमोनिया, डायरिया, थनैला रोग, पैरों का गलना, और दाद आदि होने की आशंका होती है.
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