उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले में इंसेफेलाइटिस यानी दिमागी बुखार या मस्तिष्क ज्वर से प्रभावित 23 गांवों के तालाबों में गंबूसिया मछली डालने की तैयारी में जिला प्रशासन व मलेरिया विभाग जुटा है, ताकि यह मच्छरों के लार्वा को खा जाएं और मच्छरों से फैलने वाली बीमारी की रोकथाम की जा सके. दरअसल, उत्तरी अमरीका में पाई जाने वाली गंबूसिया मछली को पहले बंगाल से मंगाकर यहां के तालाबों में डाला जाता था लेकिन अब इसका प्रजनन/उत्पादन जनपद में ही कराया जा रहा है. मुख्य विकास अधिकारी रवींद्र कुमार ने बताया कि इसके लिए कुछ पोखरों को चिन्हित कर उसमें यह मछली डाली जाएंगी और जब इनका प्रजनन हो जाएगा, तो उन्हें आबादी वाले प्रभावित कस्बों व गांवों के तालाबों में डाला जाएगा ताकि मच्छरों से फैलने वाली घातक बीमारी पर रोक लगायी जा सके.
गौरतलब है कि पूर्वांचल का विशेष तौर पर देवरिया जनपद शुरू से ही इंसेफेलाइटिस से प्रभावित रहा है. सरकार दिमागी बुखार की रोकथाम के लिए लगातार प्रयासरत रही है. बावजूद इसके बच्चों व बुजुर्गों की जाने भी जाती रही है. सबसे महत्वपूर्ण यह है कि जब से उत्तर प्रदेश की कमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संभाली है तब से इस रोग समेत अन्य रोगों की रोकथाम के लिए विशेष पहल कर रोकथाम के लिए उसका क्रियांवयन कराया गया है.
मत्स्य अधिकारी नन्द किशोर ने बताया कि गंबूसिया एफिनिस मछली के बीज कुछ चिन्हित तालाबों जैसे हुनमान मंदिर, कठिनाइयां और नकटा नाला के समीप तालाब में डाले गए हैं जहां इनका तीन महीने बाद प्रजनन होगा उसके बाद यहां से निकालकर इन्हें प्रभावित आबादी वाले क्षेत्रों के तालाबों में डाला जाएगा. गंबूसिया मछली में नर का आकार दो इंच और मादा की तीन इंच होती है. एक हेक्टेयर के क्षेत्रफल वाले तालाब में दो हज़ार मत्स्य बीज डाला जाता है और इनका प्रजनन तीन महीने में होता है और छः महीने में मैच्यूर होने के बाद दुबारा ब्रीडिंग के लिए यह तैयार हो जाती हैं.
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चूंकि बारिश के ही समय यह बीमारी फैलती है. तालाबों व ज्यादे जगह इकट्ठा पानी में यह मच्छर फैलते हैं और इनके काटने से यह बीमारी संक्रमण का रूप ले लेती है लिहाजा इसकी रोकथाम के लिए गंबूसिया मछली ही कारगर है जिसका अब यहां उत्पादन किया जा रहा है. सीडीओ ने बताया कि इस बार गंबूसिया का यहां उत्पादन कराया जा रहा है. इसके बाद से उसे आबादी वाले चिन्हित गांव के तालाबों में छोड़ा जाएगा ताकि मच्छर जनित फैलने वाले रोगों पर रोक लगाई जा सके. क्योंकि यह मच्छर के लार्वा को खाती है और इंसेफेलाइटिस व मच्छर से फैलने वाली मलेरिया और कालाजार जैसी बीमारी पर रोक लगे.
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