
दिव्यांगता को भूलकर आगे बढ़ने का जज्बा ही आपको समाज में अलग खड़ा करता है. इसे पूरा कर रहे हैं मेरठ के दिव्यांग किसान सतेंद्र नागर, जो देसी गाय के गोबर का उपयोग करके सजावटी सामान बना रहे है. इस उपाय के माध्यम से वह स्वयं की आय कमा रहे हैं और साथ ही दूसरों को रोजगार का अवसर प्रदान कर रहे हैं. सबसे खास बात यह है कि सतेंद्र गाय के गोबर से बने उत्पादों को बेचकर पिछले साल 16 लाख रुपये के टर्नओवर का लक्ष्य हासिल किया था और अब उनका लक्ष्य इस साल 35 लाख का आंकड़ा पार करने का है.
किसान तक से बातचीत में किसान सतेंद्र नागर ने बताया कि कोरोना काल में लगे लॉकडाउन के दौरान हमने देसी गाय के गोबर से सजावटी आइटमों के प्रोडक्ट्स बनाने का काम शुरू किया था. उन्होंने बताया कि सबसे खास बात ये है कि हम लोग जैसे मिट्टी का दीए का इस्तेमाल करते है, लेकिन गोबर से बने दीए पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करते है, वहीं इसकी कीमत भी बहुत कम है, एक दीए को बनाने में 2 रुपये कीमत आती है. गोबर के दीए से ऑक्सीजन पैदा होता है और ये वातावरण को शुद्ध रखता है.
नागर आगे कहते हैं कि समाज में मौजूद दिव्यांग लोगों को सक्षम और सशक्त बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं और अपनी संस्था राजबाला दिव्यांग सेवा समिति से दिव्यांगजनों को जोड़कर स्वावलंबी बना रहे हैं. आज हमारी संस्था में 40 दिव्यांग लोग अलग-अलग प्रोडक्ट्स बनाने में जुटे है. उन्होंने बताया कि दिव्यांग लोगों को उनके घर पर दीए बनाने के लिए दिए जाते है.
किसान सतेंद्र नागर ने बताया कि हर आइटम को बनाने में अलग-अलग लागत आती है, जैसे दीए पर 2 रुपये, मूर्तियां जैसे दुर्गा, गणेश और लक्ष्मी जी, राधा कृष्ण, ओम श्री स्वास्तिक, मेमोन्टो को बनाने में 200-500 तक की लागत आती है. वहीं देश में देसी गायों के संरक्षण और संवर्धन पर हो रहे काम को देखते हुए उन्होंने गाय के गोबर से बनने वाले प्रोडक्टस बनाए हैं और यह सभी उत्पाद लोगों को खूब पसंद आ रहे हैं. उनकी समिति से जुड़े दिव्यांगजन ही उन सभी उत्पादों को बनाते हैं.
वे बताते हैं कि उनकी आइटम्स की पेंटिंग 2 साल तक सुरक्षित रहेगी और उसके बाद भी आपको उसे पानी में रखकर उपयोग करने का विकल्प मिलता है. इस तरीके से, उनकी उत्पादों की दीर्घकालिक उपयोगिता और टूटे फूटे आइटमों के प्रति स्थायित आवश्यकता को ध्यान में रखा गया है. सतेंद्र ने बताया कि अयोध्या, मथुरा और वाराणसी में एक स्टोर खोलने का इरादा है, जिससे गोबर के गाय से बने प्रोडक्ट्स की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मार्केटिंग हो सके.
बता दें कि सतेंद्र नागर की पत्नी भी दिव्यांग हैं और स्वय सहायता समूह से जुड़ी है. सतेंद्र ने एमएससी के साथ ही इग्नू से सोशल वर्क में मास्टर डिग्री हासिल की है, उनकी पत्नी सीमा नागर सीए हैं और समिति से जुड़े वित्तिय कार्य भी उनकी देख रेख में होते हैं. एक साल की उम्र में पोलियो के शिकार हुए सतेंद्र नागर की पहल आज समाज में एक बड़ा संदेश दे रहे हैं.
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