प्लांट का प्रतीकात्मक फोटो.Profit from Dung गोबर के दिन फिर चुके हैं. और अगर गोबर देसी गाय का है तो फिर वो ब्रॉउन गोल्ड है. मतलब उसे बेचकर कभी भी खरे नोट हासिल किए जा सकते हैं. यही वजह है कि आज पशुपालकों को दूध से पहले गोबर के दाम मिल रहे हैं. कई ऐसे उदाहरण हैं जहां दूध से ज्यादा गोबर से कमाई हो रही है. इसीलिए अब गोबर न तो फिकता है, और न ही उसे जलाया जा रहा है. पशुपालक जब सुबह डेयरी प्लांट पर दूध बेचने जाते हैं तो साथ में गोबर लेकर भी जाते हैं.
प्लांट में एंट्री करने के साथ ही पहले गोबर बिकता है. बेचे गए गोबर का पेमेंट भी खाते में तुरंत ही हो जाता है. बड़ी-बड़ी डेयरी कोऑपरेटिव पशुपालकों से गोबर खरीद रही हैं. वाराणसी दुग्ध संघ हर महीने दो हजार टन गोबर की खरीद कर रहा है. वजह है कि आम के आम और गुठलियों के दाम की तर्ज पर गोबर का इस्तेमाल किया जा रहा है.
ग्रामीण क्षेत्रों में डेयरी कोऑपरेटिव हर रोज पशुपालकों से दूध खरीदती हैं.
कई बड़ी कोऑपरेटिव ने दूध संग गोबर की खरीदारी भी शुरू कर दी है.
पशुपालक रोजाना सुबह दूध के साथ-साथ गोबर लेकर भी आते हैं.
डेयरी कोऑपरेटिव पशुपालकों से 50 पैसे किलो के हिसाब से गोबर खरीद रही हैं.
वाराणसी दुग्ध संघ का वाराणसी प्लांट हर महीने करीब दो हजार टन गोबर खरीदता है.
इस प्लांट को गुजरात की बनास डेयरी चला रही है.
हाल ही में प्लांट ने पशुपालकों को गोबर का 2.5 करोड़ रुपये का भुगतान किया है.
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