पशुओं में बढ़ रहा इस संक्रमण का खतराAnimal and Chatbot 1962 पशुओं के इलाज के लिए चैटबॉट 1962 की योजना कामयाब होती हुई दिख रही है. इसी साल राजस्थान के पशुपालन विभाग ने पशुओं की बीमारी और पशुपालकों की परेशानी को दूर करने के लिए चैटबॉट शुरू किया था. योजना इतनी कामयाब रही कि सिर्फ छह महीने में ही हजारों पशुओं को चैटबॉट की मदद से एक्सपर्ट डॉक्टर का इलाज मिल गया. केन्द्रीय पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के केन्द्रीय राज्यमंत्री डॉ. एसपी सिंह बघेल भी राज्य सरकार की इस पहल की तारीफ कर चुके हैं. बता दें कि चैटबॉट की मदद से पशुपालक पशुओं को हो रही परेशानी से जुड़ी बीमारी, लक्षण और संबंधित समस्याओं की जानकारी बता देते हैं.
इसके बाद एक एक्सपर्ट डॉक्टर की मदद से उन्हें इलाज बता दिया जाता है. इसका सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि पशुपालक को अपने पशु को लेकर कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं होती है. पशुपालन मंत्री जोराराम कुमावत का कहना है कि राजस्थान सरकार ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ पशुपालन को मजबूत बनाने के लिए लगातार कोशिश कर रही है. चैटबॉट जैसी तकनीकी पशुपालकों के जीवन में परिवर्तन ला रही हैं. हमारा लक्ष्य है कि हर पशुपालक को घर बैठे चिकित्सा सहायता उपलब्ध हो सके.
पशुपालन विभाग ने जानकारी देते हुए बताया है कि अप्रैल 2025 को राजस्थान में चैटबॉट 1962 योजना शुरू की गई थी. अगर बीते छह महीने की बात करें तो इस दौरान 65490 पशुओं का इलाज किया गया है. वहीं इसी दौरान 82713 पशुपालकों ने चैटबॉट की मदद से डॉक्टरों तक पहुंचने की कोशिश की है. इसका बड़ा फायदा ये हुआ कि एक तो पशुओं को जल्दी इलाज मिलने लगा जिसका असर पशुपालक के दूध उत्पादन पर नहीं पड़ा. वहीं दूसरी ओर बीमारियों के चलते पशुओं की मृत्यु दर भी कम हो गई. इसका एक फायदा ये भी है कि जिस पशु का इलाज चैटबॉट की मदद से मुमकिन नहीं होता है तो उस इलाके के पशु चिकित्सक को सूचना देकर पशुपालक के घर पर भेजकर पशु का इलाज कराया जाता है.
मंत्री जोराराम कुमावत का कहना है कि एमवीयू के साथ-साथ चैटबॉट का फायदा पशुपालकों तक पहुंचाने के लिए इस योजना का प्रचार अभियान पूरे प्रदेश में चलाया गया. इसके लिए कॉल सेंटर संचालनकर्ता फर्म द्वारा योजना के प्रचार-प्रसार के कंटेंट उपलब्ध कराया गया. 1962 सेवाओं की उपलब्धता के विषय में प्रदेश के 10 लाख से ज्यादा पशुपालकों को एसएमएस भेजकर जागरूक किया गया. सबसे पहले जागरूकता अभियान की शुरुआत उन जिलों से की गई जहां कम कॉल और उपचार दर्ज किए गए थे. 1962 सेवाओं के संबंध में गांवों और करीब 180 दूध संग्रहण स्थलों पर डिजिटल वॉल ब्रांडिंग की गई. गांव, ब्लॉक और बाजार क्षेत्रों में ई-रिक्शा, टैम्पो का इस्तेमाल कर ऑडियो जागरूकता अभियान चलाया गया. करीब सात लाख पर्चे भी बांटे गए. करीब 100 पशु चिकित्सालयों में साईन बोर्ड लगाये गए.
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